‘यूपी में 2027 में होने वाला विधानसभा चुनाव सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। उनके नेतृत्व पर जो सवाल उठाएगा, उसे बागी समझा जाएगा। ये मैसेज सिर्फ राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए भी है।’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS का ये मैसेज BJP लीडरशिप के लिए है। 2 दिसंबर को लखनऊ में RSS और BJP की मीटिंग थी। सोर्स बताते हैं कि बैठक में उठे मुद्दे और मैसेज दोनों RSS ने तय किए। बैठक में मोहर लगा दी गई कि यूपी में योगी ही चेहरा हैं। RSS का टिकट बंटवारे से लेकर मुद्दे तय करने में भी दखल रहेगा। एक मैसेज ये भी दिया गया कि लोकसभा चुनाव की तरह BJP और RSS के बीच मतभेद नहीं हैं। इस मीटिंग से पहले 24 नवंबर 2025 को RSS चीफ मोहन भागवत और CM योगी आदित्यनाथ अयोध्या में मिले थे। क्या ये RSS के ‘मिशन यूपी’ की शुरुआत है? यह सवाल हमने दिल्ली और यूपी में RSS से जुड़े पदाधिकारियों, BJP नेताओं और एक्सपर्ट से पूछा। लखनऊ में करीब सवा 4 घंटे मीटिंग
लखनऊ के RSS कार्यालय में पहले RSS की बैठक हुई। करीब 3 घंटे चली इस मीटिंग में संगठन मंत्री बीएल संतोष, सह सरकार्यवाह अरुण कुमार और BJP के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी मौजूद थे। इसके बाद एक बैठक BJP ऑफिस में हुई। इसमें CM योगी आदित्यनाथ और यूपी के दोनों डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी जुड़ गए। ये मीटिंग करीब सवा घंटे चली। मीटिंग में RSS के तीन बड़े मैसेज 1. तनातनी से विधानसभा-लोकसभा चुनाव में सीटें घटीं, ऐसा दोबारा न हो
RSS के सोर्स बताते हैं, ‘लखनऊ में हुई बैठक की कमान RSS के हाथ में ही थी। मीटिंग में साफ कर दिया कि यूपी चुनाव की बागडोर पूरी तरह पार्टी के हाथों में नहीं दी जाएगी, यानी विधानसभा चुनाव में RSS की बड़ी भूमिका होगी। रणनीति से लेकर फैसलों तक में उसकी भूमिका रहेगी।’ ‘दरअसल 2022 का विधानसभा चुनाव पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ा था। इस पर पार्टी के अंदर सवाल उठे। उस वक्त कई नाम सीएम की रेस में आ गए थे। इसका असर ये हुआ कि 2017 के मुकाबले BJP की 57 सीटें घट गईं। पार्टी ने 2017 में 312 सीटें जीती थीं, जो 2022 में 255 रह गईं।’ ‘इस खींचतान का असर 2024 के चुनाव में भी दिखा। 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP को यूपी से 62 सीटें मिलीं थीं। 2024 में ये घटकर 33 रह गईं। इसलिए RSS ने चुनाव से करीब डेढ़ साल पहले ही यूपी में नेतृत्व को लेकर किसी भी तरह का असमंजस पालने वालों को संदेश दे दिया है।’ ‘RSS की तरफ सें मैसेज दिया गया है कि 2022 जैसी स्थिति दोबारा मंजूर नहीं है। योगी के नेतृत्व पर उंगली उठाने वाले को बागी समझा जाएगा। पार्टी में जल्द ही बड़े बदलाव किए जाएंगे।’ ‘मतलब साफ है कि योगी के खिलाफ लॉबिंग करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा और कुछ नए चेहरे शामिल होंगे। ये भी कहा गया कि ये मैसेज सिर्फ बैठक तक सीमित न रहे। इसे आम लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं तक पहुंचाना है।’ 2. योगी के खिलाफ न कोई बयान दे, न खबरें फैलाए
दूसरा बड़ा मैसेज पार्टी हाईकमान के लिए था। RSS की तरफ से कहा गया कि BJP के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी योगी पर कोई बयान न दें और न ही विवादित खबरों को हवा दें। लोगों और विपक्ष के बीच ये संदेश पूरी ताकत के साथ पहुंचाया जाए कि योगी और गृहमंत्री अमित शाह या PM मोदी में मनमुटाव की खबरों का कोई आधार नहीं है। RSS ने ये साफ कर दिया कि योगी ही उसकी पहली पसंद हैं। चाहे चुनावों में टिकटों का बंटवारा हो या नए प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव, योगी की राय लिए बिना कोई फैसला नहीं होगा। 3. यूपी में हिंदूवादी संगठनों और साधु-संतों का बड़ा सम्मेलन
सोर्स बताते हैं कि तीसरा अहम मुद्दा सीधे चुनाव से जुड़ा है। बैठक में तय हुआ कि 2026 में यूपी में हिंदूवादी संगठनों और साधु-संतों का बड़ा सम्मेलन किया जाएगा। इसमें देशभर के साधु-संतों और हिंदूवादी संगठनों को बुलाया जाएगा। इसमें RSS के पदाधिकारी और BJP के राष्ट्रीय स्तर के नेता शामिल होंगे। इसका मकसद हिंदुओं को एकता का संदेश देना है। अयोध्या में 90 मिनट योगी-भागवत की सरप्राइज मीटिंग
24 नवंबर, 2025 को RSS चीफ मोहन भागवत अयोध्या में थे। वे गुरु तेग बहादुर सिंह के 350वें शहादत दिवस समारोह में शामिल होने आए थे। अचानक दोपहर में दर्शन के लिए राममंदिर पहुंच गए। शाम को अयोध्या में RSS के कार्यालय ‘साकेत निलयम’ गए। इसी दिन CM योगी आदित्यनाथ भी अयोध्या में थे। वे राम मंदिर में ध्वजारोहण समारोह की तैयारियां देखने गए थे। शाम करीब 7 बजे योगी सीधे RSS कार्यालय पहुंचे और मोहन भागवत से मिले। RSS के प्रांत प्रचारक स्तर के पदाधिकारियों और हमारे सोर्सेज के मुताबिक, योगी-भागवत ने पूरे टाइम अकेले में बात की। ये सरप्राइज मीटिंग करीब डेढ़ घंटे तक चली। ये मीटिंग उस वक्त हुई, जब BJP यूपी में नए अध्यक्ष और कैबिनेट में विस्तार की तैयारी कर रही थी। यूपी में काम कर रहे एक पदाधिकारी से हमने इस मीटिंग पर बात की। वे कहते हैं, ‘बिहार चुनाव के नतीजे आने के हफ्ते भर बाद डॉ. भागवत दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव में हिस्सा लेने लखनऊ पहुंचे थे। वहीं से वे अयोध्या चले गए। योगी दोनों मौकों पर संघ प्रमुख के साथ मौजूद रहे, लेकिन अयोध्या में संघ कार्यालय में वे उनके साथ 1 घंटे से ज्यादा बैठे।’ ‘इस मुलाकात पर CM योगी और डॉ. भागवत ने कुछ नहीं कहा। RSS में चल रही बातों के आधार पर मैं ये जरूर कह सकता हूं कि जातीय समीकरण, राम मंदिर आंदोलन के बाद हिंदुत्व की नई परिभाषा और यूपी में BJP-RSS के बीच रणनीति जैसे मुद्दों पर ये बैठक अहम मानी जा रही है।’ ‘बिहार चुनाव में RSS के करीब-करीब सारे प्रयोग सफल रहे हैं। इसका नतीजा भी सभी ने देखा। अब इसी तरह के प्रयोग बंगाल और उसके बाद यूपी में आजमाने की बारी है। इसे देखते हुए ये बैठक प्रदेश में संगठन और सरकार के बीच बेहतर समन्वय बनाने की शुरुआत के तौर पर देखी जा रही है।’ RSS से जुड़े संगठन विद्या भारती से जुड़े भास्कर दुबे कहते हैं, ‘RSS का मकसद सरकार के संचालन पर निगाह रखना और समाज के उन वर्गों को अपने साथ जोड़ना है, जिससे भविष्य में संघ को मजबूती मिल सके।’ अयोध्या की मुलाकात का असर लखनऊ में
योगी-भागवत जब-जब मिले हैं, यूपी में सरकार के फैसलों पर इसका असर दिखा है। सोर्स के मुताबिक, योगी-भागवत की इस मुलाकात के बाद 26 नवंबर से 2 दिसंबर तक लखनऊ में RSS पदाधिकारियों और BJP नेताओं के बीच 6 बार मीटिंग हुई हैं। ये बैठकें डिप्टी CM बृजेश पाठक, श्रम एवं रोजगार मंत्री अनिल राजभर, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, पर्यावरण मंत्री अरुण सक्सेना, पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह के आवास पर हुईं। राज्यसभा सांसद अमरपाल मौर्य और BJP किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कामेश्वर सिंह मीटिंग के कोऑर्डिनेटर रहे। दोनों को RSS का करीबी माना जाता है। सोर्सेज के मुताबिक, इन बैठकों में RSS ने शासन से जुड़े मुद्दों पर फीडबैक लिया। साथ ही संगठन और सरकार के बीच प्लानिंग बेहतर करने के सुझाव दिए। RSS के क्षेत्र सह प्रचार प्रमुख (पूर्वी यूपी) मनोज कांत बताते हैं- संगठन और सरकार के बीच ऐसी बैठकें होती रहती हैं। इसमें संघ और सरकार से जुड़े नेता आपस में फीडबैक लेते रहते हैं। ये मीटिंग भी उसी का हिस्सा हैं। एक्सपर्ट बोले- यूपी में पैचवर्क कर रहा RSS
यूपी में RSS और BJP की पॉलिटिक्स पर नजर रखने वाले प्रमोद गोस्वामी कहते हैं, ‘यूपी में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सीटें कम ह BJP और RSS दोनों के लिए चिंता की बात है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी केशव प्रसाद मौर्य और योगी के बीच अनबन देखी गई। उसका पैचवर्क करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व को सामने आना पड़ा। हो सकता है कि योगी-भागवत के बीच अयोध्या में यही बातें हुई हों।’ योगी की हिंदू फायर ब्रांड इमेज RSS को पसंद
सीनियर जर्नलिस्ट सुरेंद्र दुबे कहते हैं, ‘योगी कभी RSS से नहीं जुड़े, न ही वे BJP के टिकट पर चुनाव लड़ते थे। वे हिंदू महासभा की तरफ से चुनाव लड़ते थे। BJP हिंदूवादी चेहरे के तौर पर उन्हें सपोर्ट करती थी। 2017 में BJP हाईकमान ने योगी को यूपी की कमान सौंप दी। पार्टी का ये प्रयोग कामयाब रहा और योगी हिंदू फायर ब्रांड नेता के तौर पर उभरे।’ ‘धीरे-धीरे लोगों को योगी की बातचीत का स्टाइल, बुलडोजर और माफिया को मिट्टी में मिलाने वाले डायलॉग पसंद आने लगे। आज वो देश के हर चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं।’ वे मुद्दे, जिनकी वजह से RSS और BJP के बीच खाई हुई… 1. राममंदिर पर RSS की हर सलाह किनारे की
लोकसभा चुनाव से पहले RSS और BJP के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। RSS के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, ‘राम मंदिर के मामले में BJP ने RSS की बात सुननी बंद कर दी थी। शुरुआत श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप से हुई थी।’ ‘RSS ने चंपत राय को चित्रकूट की प्रतिनिधि सभा में बुलाया और सख्त चेतावनी भी दी। इसके बाद BJP ने राम मंदिर का मसला सीधा अपने हाथ में ले लिया। RSS की सलाह पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा।’ 2. RSS की सलाह थी, प्राण प्रतिष्ठा लोकसभा चुनाव के बाद हो
RSS की तरफ से कहा गया था कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा चुनाव के ठीक बाद हो। मशविरा दिया गया था कि अगर प्राण प्रतिष्ठा पहले हुई, तो लोग चुनाव आते-आते इस मुद्दे को भूल जाएंगे। प्राण प्रतिष्ठा बाद में हुई, तो लोग मंदिर का मुद्दा याद रखेंगे। चुनाव के दौरान उनके दिमाग में ये बना रहेगा। राम मंदिर बनने की आशा को बचाए रखना था, ये तभी होता जब प्राण प्रतिष्ठा चुनाव के बाद होती, लेकिन BJP को जल्दी थी। इसका नतीजा ये हुआ कि कई धर्मगुरु भी BJP के फैसले के विरोध में आ गए। 3. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शंकराचार्यों को तवज्जो नहीं
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मामले में भी RSS, BJP से बहुत नाराज था। RSS चाहता था कि सभी शंकराचार्य और धर्मगुरु आयोजन में शामिल हों। उन्हें तवज्जो दी जाए। BJP ने हड़बड़ी में किसी को मनाने की जरूरत नहीं समझी, जो नाराज थे, उन्हें नाराज ही रहने दिया। BJP ने अपने गेस्ट बुलाए, जो ग्लैमर और बिजनेस की दुनिया से थे। 4. लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे पर सहमत नहीं था RSS
लोकसभा चुनाव में यूपी ने BJP को बड़ा झटका दिया। इस झटके को RSS ने टिकट बंटवारे के वक्त ही भांप लिया था। RSS ने 10 से ज्यादा सीटों पर कैंडिडेट पर असहमति जताई थी। इनमें प्रतापगढ़, श्रावस्ती, कौशांबी, रायबरेली और कानपुर जैसी सीटें शामिल थीं। कानपुर के अलावा सभी सीटों पर BJP कैंडिडेट हार गए। RSS का कहना था कि कुछ सांसदों को छोड़कर, हमें नए लोगों को टिकट देना चाहिए, जैसा दिल्ली में किया है। हालांकि, टिकट बंटवारे के मामले में भी RSS बेबस ही दिखा। ………………………………..
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