भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष की खोज के बीच पश्चिम क्षेत्र के अध्यक्ष को लेकर भी चर्चा तेज है। माना जा रहा है कि युवा जाट नेता मोहित बेनीवाल को फिर से पश्चिम की कमान सौंपी जाए। दरअसल, जाट नेता भूपेंद्र चौधरी को यूपी की कमान सौंपे जाने के बाद तत्कालीन क्षेत्रीय अध्यक्ष बेनीवाल को पद से हटा दिया गया था। बेनीवाल, वर्तमान में एमएलसी हैं और प्रदेश संगठन में उपाध्यक्ष हैं। बताया जा रहा है कि जातीय समीकरण को साधने के लिए वेस्ट की कमान जाट नेता को सौंपने की कवायद हो रही है। हालांकि, प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा होने के बाद ही संगठन का विस्तार होगा। वेस्ट यूपी अध्यक्ष रह चुके मोहित बेनीवाल रेस में सबसे आगे मोहित बेनीवाल वेस्ट यूपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। इस बार वेस्ट अध्यक्ष की रेस में उनका नाम सबसे आगे माना जा रहा है। वह 2020 से 2022 तक भाजपा के पश्चिमी क्षेत्र के अध्यक्ष थे। 2022 में भूपेंद्र चौधरी को जब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो मोहित बेनीवाल को हटा दिया गया। उनकी जगह पर सतेंद्र सिसोदिया को नया क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। अब सिसोदिया का कार्यकाल खत्म हो रहा। ऐसे में दूसरे नामों की चर्चा तेज हो गई है। बेनीवाल के अलावा कई और जाट नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं। इन नामों में मेरठ के चौधरी देवेंद्र सिंह के नाम भी शामिल हैं।बेनीवाल, वर्तमान में भूपेंद्र चौधरी की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष हैं। वह वर्तमान में एमएलसी भी हैं। यूपी में भाजपा के 6 क्षेत्र भाजपा ने पूरे यूपी को 6 क्षेत्रों में बांट रखा है। प्रत्येक क्षेत्र में कम से कम 12 से 14 जिले हैं। ये हैं भाजपा के 6 क्षेत्र भाजपा के पश्चिम क्षेत्र में 14 जिले भाजपा के पश्चिम क्षेत्र में कुल 14 जिले हैं। भाजपा संगठन में महानगर अध्यक्ष को भी संगठनात्मक दृष्टि से जिला माना गया है। इसलिए पश्चिम में 14 जिलाध्यक्ष और 5 महानगर अध्यक्ष नियुक्त होते हैं। सहारनपुर, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, बुलंदशहर, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, रामपुर, संभल, हापुड़ में जिलाध्यक्ष होता है। इसके अलावा मुरादाबाद महानगर, मेरठ महानगर, सहारनपुर महानगर, गाजियाबाद महानगर और गौतमबुद्ध नगर महानगर का अलग अध्यक्ष होता है, जिसे महानगर अध्यक्ष कहा जाता है। वेस्ट में अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं, वैश्य समाज की दावेदारी वेस्ट यूपी में अध्यक्ष की कुर्सी पर लंबे समय तक भूपेंद्र चौधरी खुद काबिज रहे हैं। मुरादाबाद के रहने वाले चौधरी भूपेंद्र सिंह ने वेस्ट यूपी अध्यक्ष के रूप में एक लंबी पारी खेली है। वह कैबिनेट में गए तो यह कुर्सी अश्वनी त्यागी को मिली। उनके बाद मोहित बेनीवाल और फिर सतेंद्र सिसोदिया इस पद पर आए। लंबे समय तक जाट नेता के बाद, त्यागी और ठाकुर बिरादरी से जुड़े चेहरे इस सीट पर काबिज रह चुके हैं। वैश्य समाज भी इस सीट पर दावेदारी पेश कर सकता था लेकिन पार्टी ने पहले ही मुरादाबाद, मेरठ और गाजियाबाद में वैश्य समाज को बड़े पैमाने पर प्रतिनिधित्व दे रखा है। वेस्ट में कई विधायक, मेयर और जिलाध्यक्ष वैश्य समाज से हैं। मंत्री कपिलदेव अग्रवाल भी वेस्ट से ही हैं। ब्राह्मणों की भी दावेदारी, बशर्ते बाकी क्षेत्रों में ब्राह्मण न बने अध्यक्ष वेस्ट यूपी में ब्राह्मण नेता को भी कमान सौंपी जा सकती। हालांकि, अन्य क्षेत्रों का समीकरण इसके लिए साधना होगा। जानकार बताते हैं कि ब्राह्मण क्षेत्रीय अध्यक्ष को मनोनीत करने के लिए यह देखना होगा कि प्रदेश अध्यक्ष कौन बनता है। यदि प्रदेश अध्यक्ष कोई ब्राह्मण नेता बनता है तो वेस्ट में ब्राह्मण अध्यक्ष की दावेदारी स्वतः ही कमजोर पड़ जाएगी। यदि पार्टी पिछड़ा वर्ग से किसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाती है, तो भी वेस्ट में ब्राह्मण अध्यक्ष बनने की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि प्रदेश के बाकी पांच क्षेत्रों में ब्राह्मण अध्यक्ष न हों। ——— ये खबर भी पढ़िए एक्सक्लूसिव- यूपी में भाजपा ने उतारी BLA की फौज:सपा-कांग्रेस के निशाने पर बीएलओ, SIR में सियासी दल कितने सक्रिय? यूपी में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया पर सपा ने सवाल उठाया है। सपा ने इसकी समय अवधि बढ़ाने की मांग की है। ऐसी ही शिकायत कांग्रेस की भी है। आरोप लग रहे हैं कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को ट्रेनिंग नहीं दी जा रही। उस पर दबाव बनाकर जबरन फॉर्म सब्मिट पर टिक कराया जा रहा। जिन सीटों पर सपा के समर्थक ज्यादा हैं, वहां से 50-50 हजार लोगों के नाम काटने की साजिश रची जा रही। सपा का दावा है कि ये सारी बातें उनके पीडीए प्रहरी दे रहे हैं। SIR की तमाम खामियां उजागर कर रहे हैं। वहीं, बसपा का कहना है कि फॉर्म घर न पहुंचने की शिकायत आ रही है। लेकिन, BLO तक हमारे कार्यकर्ता पहुंच रहे हैं और समस्याओं का समाधान हो जा रहा। उधर, भाजपा का कहना है कि फॉर्म भरने में परेशानी आ रही है। इसलिए वे डमी फॉर्म देकर समझा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में SIR को लेकर पार्टियां इतनी सक्रिय हैं? जो दिक्कत विपक्षी सपा-कांग्रेस को है, वो भाजपा को क्यों नहीं? बसपा SIR को लेकर इतनी आक्रामक क्यों नहीं दिख रही? पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
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