इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कूट रचित शासनादेश के आधार पर कार्यकारिणी परिषद के प्रस्ताव से कुलसचिव संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के आदेश से विक्रय अधिकारी पद से डायरेक्टर प्रकाशन पद पर याची की प्रोन्नति को सही माना है। कोर्ट ने उसे 60 साल के बजाय 62 साल में सेवानिवृत्त करने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने डायरेक्टर प्रकाशन डा पद्माकर मिश्र की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा याची की फर्जी शासनादेश 31 दिसंबर 2003 से पदोन्नति की गई। बाद में जांच के बाद शासनादेश कूट रचित पाया गया और 17 सितंबर 19 के आदेश से पूर्व शासनादेश निरस्त कर दिया गया। किन्तु इसका प्रभाव याची पर नहीं पड़ा। न तो कार्यकारिणी परिषद का उसे पदोन्नति देने का प्रस्ताव रद्द हुआ और न ही याची की प्रोन्नति ही निरस्त की गई और वह कार्यरत है। कुलसचिव ने याची को डायरेक्ट प्रकाशन पद पर नियुक्ति के अयोग्य होने के कारण 60 साल में 30 नवंबर 25 को सेवानिवृत्त करने का आदेश दिया। जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए रद्द कर दिया कि याची ने पदोन्नति पाने में कोई धोखाधड़ी नहीं की है और शासन ने डायरेक्टर प्रकाशन की सेवानिवृत्ति आयु 62 साल निर्धारित करने का आदेश जारी किया है। इसलिए याची 62 साल की आयु तक कार्यरत रहने का हकदार हैं। कोर्ट ने कहा यदि विश्वविद्यालय कोई प्रतिकूल आदेश जारी करता है तो याची को नोटिस देकर ही जारी करें। मालूम हो कि 18 अगस्त 98 को कुलसचिव ने याची को विक्रय अधिकारी पद पर नियुक्ति दी। 31 दिसंबर 2003 के शासनादेश से राज्यपाल ने डायरेक्टर प्रकाशन पद को पदोन्नति से भरने की अनुमति दी।याची की डायरेक्टर शिक्षण शोध एवं प्रकाशन पद पर पदोन्नति की गई। इसके कई साल बाद 2019 मे बताया गया कि 31 दिसंबर 2003 का शासनादेश फर्जी था। निरस्त कर दिया गया है।याची की 23 अगस्त 12 को प्रोन्नति कर दी गई थी।
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