इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। अब यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि ‘पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश नहीं मान सकते।’ अब इस मामले पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्य कांत की गंभीर टिप्पणी आई है। सीजेआई ने कहा कि ”हम हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करेंगे और ट्रायल को जारी रहने देंगे।” इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकीलों ने गहराई से तर्क रखे। सर्वोच्च अदालत ने दलीलों को गंभीरता से सुनने के बाद आदेश को खारिज करने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया कि इससे पहले ”इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में यह टिप्पणी की थी कि चूंकि रात का समय था, इसलिए यह एक आमंत्रण जैसा था, यहां तक कि कलकत्ता हाईकोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट ने भी इस तरह के अवलोकन किए हैं।” वरिष्ठ अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि “आज सत्र न्यायालय की कार्यवाही में भी… एक लड़की को ‘इन कैमरा’ (बंद कमरे की) कार्यवाही के दौरान भी परेशान किया गया।” इस पर सीजेआई ने कहा कि ”यदि आप इन सभी उदाहरणों का हवाला दे सकते हैं, तो हम दिशा-निर्देशों का एक समूह जारी कर सकते हैं… कोई भी टिप्पणी… यह पीड़िताओं पर डरावना प्रभाव (chilling effect) डाल सकती है… साथ ही, कभी-कभी शिकायत वापस लेने के लिए इस तरह की कार्यप्रणाली भी अपनाई जाती है।” मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ”शुरुआत में यह बताया जाता है कि आरोपी को एजेंसी द्वारा दो बार नोटिस दिया गया है, और वे उपस्थित नहीं हुए हैं और इन कार्यवाही का विरोध नहीं किया है। सीनियर एडवोकेट फूलका कहते हैं कि आरोपी ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में भाग ले रहे हैं और उन्हें यहाँ के मामले की जानकारी है। एसएचओ (SHO) को अगली तारीख पर शामिल होने के विकल्प के साथ इन कार्यवाहियों के बारे में जानकारी देने दें और अगली तारीख पर सर्विस (नोटिस तामील) आदि के लिए मामले को स्थगित नहीं किया जाएगा।” 17 मार्च को हाईकोर्ट ने लिया था स्वतः संज्ञान कोर्ट ने कहा था ‘पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश नहीं मान सकते।’ यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने की। जस्टिस मिश्रा ने 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली। अदालत ने आरोपी आकाश और पवन पर IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत लगे आरोपों को घटा दिया। अब उन पर धारा 354 (b) (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा। साथ ही निचली अदालत को नए सिरे से सम्मन जारी करने का निर्देश दिया। 4 साल पुराना मामला, मां ने दर्ज कराई थी FIR दरअसल, कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई। आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब पीड़िता की मां आरोपी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने अदालत का रुख किया। आरोपियों ने निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण ली। इस मामले में तीन सवाल उठाए गए क्या लड़की के स्तनों को पकड़ना, पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे खींचने की कोशिश करना बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में आता है? क्या विशेष न्यायाधीश ने समन जारी करते समय उचित न्यायिक विवेक का प्रयोग किया था? आरोपी पक्ष ने तर्क दिया कि यह मामला रंजिशन था। क्योंकि इससे पहले आकाश की मां ने 17 अक्टूबर, 2021 को शिकायतकर्ता के रिश्तेदारों के खिलाफ छेड़छाड़ की FIR दर्ज करवाई थी। आरोपियों की ओर से वकील अजय कुमार वशिष्ठ ने तर्क दिया कि अभियुक्तों पर लगाई गई धाराएं सही नहीं हैं। वहीं, शिकायतकर्ता की ओर से वकील इंद्र कुमार सिंह और राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि समन जारी करने के लिए केवल प्रथम दृष्टया मामला साबित करना आवश्यक होता है, न कि विस्तृत सुनवाई करना। अदालत ने अपने आदेश में कहा- केवल यह तथ्य कि अभियुक्तों ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ लिया, पायजामे की डोरी तोड़ दी, और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, लेकिन कुछ लोगों के हस्तक्षेप पर वे भाग गए। यह अपने आप में बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं बनाता।
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