सुल्तानपुर में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की बेटी हजरत फातिमा ज़हरा की शहादत के अवसर पर मजलिसों का आयोजन किया गया। इन धार्मिक कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। करीमपुर में 21 से 25 नवंबर तक ‘खम्सा मजलिस’ का आयोजन हुआ, जबकि हुसैनिया बादल खां में मंगलवार को तीन मजलिसें हुईं। सुरौली में भी कार्यक्रम आयोजित किए गए। करीमपुर में आयोजित खम्सा मजलिस में मौलाना मौनिस हैदर खान ने तकरीर की। उन्होंने बताया कि अल्लाह को राजी करने के लिए इंसान नमाज़ पढ़ता है, रोज़े रखता है, हज करता है और ज़कात अदा करता है। मौलाना ने पैगंबर के हवाले से कहा कि जिसने फातिमा को राजी किया, उसने मुझे राजी किया और जिसने मुझे राजी किया, उसने अल्लाह को राजी किया। उन्होंने फातिमा को राजी रखने पर जोर दिया। इन मजलिसों की निगरानी जनाब अब्बास करबलाई ने की, जिन्होंने सभी श्रद्धालुओं का स्वागत किया। हुसैनिया बादल खां में मौलाना ज़ायर हसन खान की ओर से मंगलवार को तीन मजलिसें आयोजित की गईं। इन मजलिसों को मौलाना ज़ीशान हैदर खान, मौलाना सैयद बाकर मेहदी (अंबेडकरनगर) और मौलाना अली अब्बास ज़ैनबी (हल्लौर) ने खिताब किया। मौलाना ज़ीशान हैदर खान ने अपने संबोधन में कहा कि हजरत फातिमा ज़हरा ऐसी बेटी थीं जिनसे अरब की महिलाएं शिक्षा लेने उनके घर आती थीं। उन्होंने महिलाओं को ऐसा ज्ञान दिया जिससे हर महिला ने बेटी, बहन, मां और पत्नी के रूप में समाज में एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया, जिसने लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया कि समाज को महिलाओं की आवश्यकता है। इस प्रकार, फातिमा ने अरब की उस संस्कृति को बदल दिया, जहाँ पहले लोग महिलाओं से घृणा करते थे और उन्हें समाज में नीचा स्थान दिया जाता था। उधर, सुरौली में मौलाना गुलाम पंजतन ने मजलिस को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि रसूल की बेटी फातिमा ज़हरा दुनिया के लिए बेहतरीन मॉडल हैं। उन्होंने महिलाओं को जीवन जीने का तरीका बताया। मौलाना ने कहा कि एक महिला के जीवन के तीन चरण होते हैं – पहले वह बेटी होती है, फिर पत्नी और फिर मां। इन तीनों चरणों में फातिमा के बराबर कोई नहीं है।
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