सुल्तानपुर में संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को तिकोनिया पार्क में प्रदर्शन किया। इस दौरान जिलाध्यक्ष शारदा प्रसाद पाण्डेय के नेतृत्व में किसानों ने अपनी दस प्रमुख मांगें रखीं। राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से अतिरिक्त मजिस्ट्रेट को सौंपा गया। मोर्चा की प्रमुख मांगों में सभी फसलों के लिए सी2+50%के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी हेतु संसद और सभी राज्य विधानसभाओं में तत्काल कानून पारित करना शामिल है। उन्होंने सभी ब्लॉकों में सरकारी मंडियां स्थापित करने और गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (SAP) 500 रुपए प्रति क्विंटल करने की मांग की। साथ ही, गन्ने के सभी लंबित भुगतानों को ब्याज सहित शीघ्र निपटाने की भी मांग की गई।किसानों और कृषि मजदूरों के लिए व्यापक ऋण माफी योजना घोषित करने की मांग की गई। इसके तहत ऋणग्रस्त लोगों के उत्पीड़न पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करने और किसानों को ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करने की बात कही गई। इसके अलावा, बिजली बिल 2025 को तुरंत वापस लेने और सभी परिवारों को प्रति माह 300 यूनिट तथा खेती के लिए मुफ्त बिजली देने की भी मांग की गई। किसानों ने हाल ही में अधिसूचित चार श्रम संहिताओं को तुरंत वापस लेने की मांग की। उन्होंने न्यूनतम वेतन 26,000 रुपए प्रति माह करने, असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों और कृषि मजदूरों को 10,000 रुपए मासिक वृद्धावस्था पेंशन एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की वकालत की। मनरेगा का बजट बढ़ाकर 200 दिन का काम और 700 रुपए दैनिक मजदूरी सुनिश्चित करने की भी मांग की गई।प्रदर्शनकारियों ने भारत पर लगाए गए 50%अमेरिकी शुल्क को देश की संप्रभुता पर हमला मानते हुए सख्त प्रतिकारी कार्रवाई की मांग की, ताकि भारतीय गणराज्य की गरिमा की रक्षा हो सके। उन्होंने 84,000 करोड़ रुपए की उर्वरक सब्सिडी बहाल करने, डीएपी और यूरिया की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा कालाबाजारी रोकने की भी मांग की। किसानों पर नैनो यूरिया और नैनो डीएपी थोपने पर रोक लगाने की बात भी कही गई। मोर्चा ने सभी भीषण बाढ़ और भूस्खलनों को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की। उन्होंने सभी आपदा प्रभावितों को 1 लाख करोड़ रुपये और विशेष रूप से पंजाब को 25,000 करोड़ रुपए का मुआवजा देने की बात कही। इसके अतिरिक्त, जनता पर ‘बुलडोजर राज’ समाप्त करने, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के बिना भूमिहीनों तथा गरीबों के विस्थापन को रोकने और राज्यों के संघीय अधिकारों की रक्षा करने की भी मांग की गई।
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