लखनऊ विश्वविद्यालय के 105वें स्थापना सप्ताह के अवसर पर मालवीय सभागार में एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। ‘संस्कृतिकि’ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कुलपति ने शुभकामनाएँ दीं, जबकि कार्यकारी कुलपति प्रो. अरविंद मोहन ने इसकी सराहना की। इस अवसर पर डॉ. रहीस सिंह (सूचना सलाहकार, उत्तर प्रदेश शासन), डॉ. वाई.पी सिंह (पूर्व विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग) और प्रो. अजय आर्य (महासचिव, लखनऊ विश्वविद्यालय एथलेटिक एसोसिएशन एवं भूगर्भशास्त्री) अतिथि-विशिष्ट के रूप में उपस्थित रहे।सांस्कृतिक संध्या में कविता पाठ, नृत्य, गायन और बैंड प्रस्तुति सहित विभिन्न उत्कृष्ट प्रदर्शन हुए। इस संध्या का उद्देश्य विश्वविद्यालय की विरासत का सम्मान करना कविता पाठ में प्रतीक मिश्रा ने अपनी रचना ‘मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने’ प्रस्तुत की, जबकि पीयूष सुंद्रीयाल और अच्युत बाजपेयी ने भी कविताएँ सुनाईं। नृत्य प्रस्तुतियों में श्रेया शर्मा का राजस्थानी नृत्य, मानसी तिवारी का शिव तांडव, अपराजिता बाबू और दिशा दत्त का समूह नृत्य, तथा शालिनी तिवारी का राधा-मीरा गीत शामिल थे। वेदान्शु ने गायन प्रस्तुत किया और वृंदा दीक्षित ने नृत्य प्रदर्शन किया। एक बैंड प्रस्तुति ने कार्यक्रम में उत्साह और ऊर्जा का संचार किया।डायरेक्टर संस्कृतिकि प्रो. अंचल श्रीवास्तव और छात्र समन्वयक निशीथा ओझा ने बताया कि इस संध्या का उद्देश्य विश्वविद्यालय की 105 वर्षीय विरासत का सम्मान करना और छात्रों को सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़ना था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने आयोजक टीम और छात्रों के प्रयासों की सराहना की।
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