लखनऊ में उर्दू अदब के शायर ‘मजाज़’ लखनवी की 70 वीं बरसी पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन (अमूबा) की ओर से निशातगंज कब्रिस्तान में उनकी क़ब्र पर श्रधंजलि दी गई। संगठन के सदस्यों ने श्रद्धासुमन अर्पित कर याद किया । इस मौके पर ए.एम.यू. के पूर्व छात्रों के साथ बड़ी संख्या में मजाज़ के प्रशंसक मौजूद रहे और उनके अदबी योगदान को याद किया। अध्यक्ष एस एम शोएब ने कहा कि ‘उर्दू के कीट्स’ कहे जाने वाली मजाज़ 19 अक्टूबर 1911 को रुदौली में पैदा हुए। मात्र 44 वर्ष की उम्र में 5 दिसंबर 1955 को लखनऊ में इस दुनिया से विदा हो गए । कम उम्र के बावजूद मजाज़ ने उर्दू शायरी पर वह छाप छोड़ी, जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता । उनकी रोमांटिक और क्रांतिकारी शायरी ने उन्हें खास पहचान दिलाई। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मशहूर तराना ‘ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं अपने चमन का बुलबुल हूं’ उनकी ही रचना है। मशहूर शायर जोश मलीहाबादी ने मजाज़ की मौत पर कहा था कि ‘अगर मजाज़ और ज़िन्दा रहते तो इस सदी के सबसे बड़े शायर होते।’ कार्यक्रम में प्रो. शकील अहमद ने कहा कि हमारा शहर उर्दू अदब के नाम से पूरी दुनिया में चर्चित है। इसमें मजाज़ जैसे महान शायरों का बड़ा योगदान रहा है। मजाज़ की शायरी ने इस शहर को नई पहचान दिलाई। हम लोगों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि मजाज़ की शायरी और शख्सियत को युवा पीढ़ियां तक पहुंचाएं और बताएं कि उर्दू का यह शायर कितना महान था और इसकी शायरी कितनी शानदार। इस खास मौके पर प्रो. रियाज़ मेहदी, डॉ. हाशमी, डॉ. एहतिशाम अहमद ख़ां, अफ़ज़ाल अहमद सिद्दीक़ी और अनवर हबीब अल्वी समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
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