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मेट्रो कॉरिडोर-2 के लिए पहली ट्रेन कानपुर पहुंची:सीएसए मेट्रो यार्ड परिसर में अनलोडिंग, ‘मेक इन इंडिया’ के तहत गुजरात में बनी

कानपुर मेट्रो के कॉरिडोर-2 (सीएसए–बर्रा-8) के लिए तैयार पहली मेट्रो ट्रेन शनिवार को शहर में पहुंच गई। सीएसए परिसर में बन रहे नए डिपो पर 40 टन वजनी तीन कोचों की सुरक्षित अनलोडिंग विशेष क्रेनों की मदद से की गई। कॉरिडोर-2 के लिए ऐसी कुल 10 ट्रेनें मिलनी हैं। यह पहली डिलीवरी है। ट्रेनें ‘मेक इन इंडिया’ के तहत गुजरात के सावली स्थित प्लांट में तैयार की जा रही हैं। कॉरिडोर-1 की सभी 29 ट्रेनें पहले ही गुरुदेव चौराहा स्थित डिपो में उपलब्ध हैं। यूपीएमआरसी एमडी बोले-यह ऐतिहासिक उपलब्धि ट्रेन की अनलोडिंग के मौके पर यूपीएमआरसी के प्रबंध निदेशक सुशील कुमार ने टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि कॉरिडोर-2 की ट्रेन का आगमन शहर के सार्वजनिक परिवहन में होने वाले बदलाव की झलक है। उन्होंने बताया कि जल्द ही डिपो में इस ट्रेन के परिचालन से जुड़े सभी परीक्षण शुरू होंगे। इसके लिए ट्रैक, थर्ड रेल इंस्टॉलेशन और सिग्नलिंग का काम तेजी से चल रहा है। डिपो में 33 केवी ऑग्जिलरी-कम-ट्रैक्शन सब-स्टेशन भी तैयार है। दोनों कॉरिडोरों के लिए कुल 39 ट्रेनें उपलब्ध होंगी और हर ट्रेन में 3–3 कोच रहेंगे। कानपुर मेट्रो ट्रेनों की प्रमुख विशेषताएं 1. पूरी तरह ‘मेक इन इंडिया’ ट्रेनें वडोदरा के पास सावली प्लांट में बनी हैं। ये संचार आधारित ट्रेन नियंत्रण प्रणाली (CBTC) पर चलती हैं, जिससे ऑटोमैटिक ट्रेन ऑपरेशन संभव होता है। 2. ऊर्जा संरक्षण तकनीक रीजेनरेटिव ब्रेकिंग और आधुनिक प्रॉपल्शन सिस्टम से ट्रेनें बिजली बचाती हैं और वायु प्रदूषण कम करती हैं। 3. CO₂ सेंसर आधारित एसी एसी सिस्टम यात्रियों की संख्या के अनुसार काम करता है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है। 4. बेहतर क्षमता और स्पीड प्रत्येक ट्रेन में 974 यात्री सफर कर सकते हैं। डिज़ाइन स्पीड 90 किमी/घंटा व ऑपरेशन स्पीड 80 किमी/घंटा। 5. दिव्यांगों के लिए खास सुविधा पहले और आखिरी कोच में व्हीलचेयर स्पेस। पास में ‘लॉन्ग स्टॉप रिक्वेस्ट बटन’ मिलता है, जिससे ट्रेन ऑपरेटर दरवाजा अधिक देर तक खुला रख सकता है। 6. आपात स्थिति में सीधा संपर्क यात्री पीईआई या पैनिक बटन दबाकर सीधे ट्रेन ऑपरेटर से बात कर सकते हैं। लोकेशन और सीसीटीवी फुटेज तुरंत मॉनिटर पर दिखता है। 7. फायर और क्रैश सेफ्टी स्मोक डिटेक्टर, सीसीटीवी, फायर एस्टिंग्यूशर समेत सभी आधुनिक सुरक्षा मानक। हर ट्रेन में 56 USB चार्जिंग पॉइंट और 36 LCD पैनल। 8. थर्ड रेल से ऊर्जा आपूर्ति खंभों और तारों की जरूरत नहीं पड़ती। पटरियों के समानांतर तीसरी रेल से बिजली मिलती है, जिससे कॉरिडोर का लुक और इंफ्रास्ट्रक्चर साफ-सुथरा दिखता है।


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