कानपुर में महिला आयोग सदस्य अनीता गुप्ता के बर्रा थाने निरीक्षण के बाद उठे विवाद का मामला अब राजनीतिक रंग ले चुका है। जेसीपी क्राइम एवं हेडक्वार्टर विनोद कुमार सिंह द्वारा जारी पत्र के बाद विपक्षी दल इस मुद्दे पर खुलकर सरकार और पुलिस प्रशासन को घेरते नजर आए। विपक्ष का आरोप है कि सरकार और उसके अधिकारी संवैधानिक पदों और प्रक्रियाओं का सम्मान करना ही भूल गए हैं। विपक्षियों ने आपत्तिजनक भाषा बताई सीसामऊ विधानसभा के विधायक अमिताभ बाजपेयी ने जेसीपी द्वारा भेजी गई चिट्ठी को आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि पत्र की भाषा बिल्कुल अनुचित है।उन्होंने कहा कि किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से बातचीत करने की एक मर्यादा होती है। पत्र में ‘दृढ़ता पूर्वक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल गलत है। नौकरशाही में ईश्वरीय शक्ति का उन्माद हावी है और नेता ही सबसे अधिक चोट खा रहे हैं। यदि निरीक्षण का अधिकार नहीं था तो विनम्रता से फोन कर मना किया जा सकता था। अमिताभ बाजपेयी ने यह भी कहा कि यदि पत्र भेजना ही था तो महिला आयोग की अध्यक्ष को भेजा जाता। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सरकार महिला सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीर नहीं है और अधिकारी भी उसी राह पर चल रहे हैं। निरीक्षण किया तो इसमें गलत क्या है वहीं, कांग्रेस के पूर्व शहर अध्यक्ष नौशाद आलम मंसूरी ने कहा कि थाने का निरीक्षण करना महिला आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। उन्होंने जेसीपी के रुख को अधिकारों की अनदेखी करार दिया। उनका कहना था कि महिला आयोग की सदस्य ने महिला अपराधों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए निरीक्षण किया। इसमें गलत क्या है? पुलिस को भी अधिकार पता होने चाहिए और आयोग के सदस्यों को भी। लेकिन हालात ऐसे हो गए हैं कि सरकार के अधिकारी खुद को राजा समझने लगे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में महिला उत्पीड़न के मामलों में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा। यदि निरीक्षण में कोई कमी मिलती है तो आयोग सरकार और वरिष्ठ अधिकारियों को सुधार की बात बताता है, लेकिन यहां सुधार की जगह ‘नेता नगरी’ और अहंकार दिखाया जा रहा है।
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