बलरामपुर पुलिस ने अपहरण और दुराचार के एक मामले में 14 वर्षीय नाबालिग पीड़िता और उसके पिता को पॉलीग्राफ टेस्ट कराने का नोटिस भेजा है। इस मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बलरामपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के शपथपत्र को झूठा करार दिया है। न्यायालय ने प्रमुख सचिव, गृह को व्यक्तिगत शपथपत्र दाखिल कर जवाब देने या अगली सुनवाई पर उपस्थित होने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन और न्यायमूर्ति बबीता रानी की खंडपीठ ने नाबालिग पीड़िता के पिता की याचिका पर पारित किया। याचिका में घटना से संबंधित एफआईआर की जांच किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। बलरामपुर एसपी ने अपने जवाबी शपथपत्र में कहा कि पीड़िता द्वारा 28 अक्टूबर 2024 और 19 मार्च 2025 को दिए गए बयानों में अंतर है, इसलिए उसे और उसके पिता को पॉलीग्राफ टेस्ट का नोटिस दिया गया। याची के वकील ने न्यायालय को बताया कि 22 अक्टूबर 2024 को दर्ज एफआईआर के संबंध में पीड़िता ने स्थानीय पॉक्सो कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था। इसमें कहा गया था कि 28 अक्टूबर 2024 को दिया गया उसका बयान अभियुक्त और पुलिस के दबाव में था, इसलिए उसका बयान दोबारा दर्ज किया जाए। इस प्रार्थना पत्र पर पॉक्सो कोर्ट ने 8 जनवरी 2025 को बयान पुनः अंकित करने का आदेश दिया, जिसके बाद 19 मार्च को बयान दर्ज कर लिया गया। हालांकि, राज्य सरकार ने 8 जनवरी के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी है। मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को निर्धारित की गई है। न्यायालय ने आश्चर्य जताया कि जिस आदेश को अभियुक्त चुनौती दे सकता था, उसके विरुद्ध राज्य सरकार को आखिर क्यों याचिका दाखिल करने की आवश्यकता पड़ी। वहीं न्यायालय के संज्ञान में यह भी लाया गया कि पॉलीग्राफ टेस्ट से सम्बंधित पुलिस के प्रार्थना पत्र को भी स्थानीय अदालत द्वारा 1 दिसम्बर को ही खारिज कर दिया गया लेकिन एसपी ने अपने शपथ पत्र में उक्त प्रार्थना पत्र के विचाराधीन होने की बात कही। न्यायालय ने झूठा शपथ पत्र दाखिल करने व नाबालिग पीड़िता का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के विषय पर प्रमुख सचिव, गृह को व्यक्तिगत हलफ़नामा दाखिल करने का आदेश दिया।
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