मिर्जापुर में बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़ी एक मजबूत आवाज गुरुवार को हमेशा के लिए खामोश हो गई। संगठन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के चर्चित बाल अधिकार कार्यकर्ताओं में शुमार 96 वर्षीय रामशंकर चौरसिया का निधन हो गया। उन्होंने लालडिग्गी स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों के चलते वे पिछले कई महीनों से अस्वस्थ थे। उनके निधन की पुष्टि उनके ज्येष्ठ पुत्र और समाजसेवी राजेश चौरसिया ने की। परिवार ने बताया कि रामशंकर चौरसिया की अंतिम यात्रा शुक्रवार सुबह 10 बजे उनके आवास से चौबे घाट के लिए प्रस्थान करेगी। चौरसिया राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व सदस्य भी रहे थे और बाल अधिकारों के क्षेत्र में उनका योगदान अमूल्य माना जाता है। 1990 के दशक में जब नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने मिर्जापुर–भदोही क्षेत्र से बाल श्रम के खिलाफ आंदोलन छेड़ा, तब रामशंकर चौरसिया उनके प्रमुख सहयोगी बने। दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर हजारों बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने का अभियान चलाया। वर्ष 1993 में झारखंड से दिल्ली तक निकाली गई बच्चों की बंधुआ मजदूरी के खिलाफ पहली ऐतिहासिक पदयात्रा में भी चौरसिया सत्यार्थी के साथ अग्रिम पंक्ति में रहे। लगातार संघर्ष और सक्रिय भूमिका के चलते उन्हें संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। 80 हजार से ज्यादा बच्चों को दिला चुके हैं आजादी‘ बचपन बचाओ आंदोलन’ की टीम ने 1990 से अब तक 80 हजार से ज्यादा बच्चों को बाल मजदूरी और शोषण से मुक्त कराया। इस दौरान बड़े औद्योगिक घरानों तक से टकराव की नौबत आई, लेकिन रामशंकर चौरसिया कभी पीछे नहीं हटे। उन्हें ऐसे कार्यकर्ताओं में गिना जाता है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी बाल अधिकारों की लड़ाई को रुकने नहीं दिया। अपने जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने परिवार के बीच शांतिपूर्वक समय बिताया और अपने पैतृक घर में ही अंतिम सांस ली।उनके निधन से सामाजिक कार्यों की दुनिया में शोक की लहर है।
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