प्रयागराज के राष्ट्रीय शिल्प मेले का पांचवां दिन सांस्कृतिक संध्या के नाम रहा। शुक्रवार को लोकसंगीत, नृत्य और जनजातीय परंपराओं से सराबोर इस प्रोग्राम में बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश की लोककलाओं की झलक देखने को मिली। अलग-अलग राज्यों से आये कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि योगेन्द्र मिश्रा ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर केंद्र निदेशक सुदेश शर्मा ने उन्हें अंगवस्त्र और पौधा भेंट कर सम्मानित किया। उद्घाटन के बाद लोकगीतों और नृत्यों की एक श्रृंखला शुरू हुई, जिसने पूरे परिसर को संगीत और ताल से भर दिया। सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत ईश्वरचंद्र विश्वकर्मा के लोक आंचलिक गीतों से हुई। उन्होंने “जल भरइ हिलोर हिलोर कड़े की भक्तिन माँ”, “खेलत राम आँगना दशरथ ललना”, “चल पड़ी सखी पनघट ओरिया लई डोर सँवरिया” और “प्रयाग में लागल ब शिल्प मेला, बलम चला हमका दिखाई दा हो” जैसे गीतों से लोकभावना को जीवंत किया। इसके बाद श्रुति चौहान ने अपनी मधुर आवाज़ में “एक राधा एक मीरा”, “झीनी रे झीनी चदरिया”, “श्री राम जानकी बैठे हैं” और “तू माने न माने दिलदारा” जैसे लोकप्रिय गीतों की प्रस्तुति दी। उनकी प्रस्तुति पर श्रोताओं ने तालियों से उनका उत्साह बढ़ाया। बिहार से आए उदय सिंह और उनके साथी कलाकारों ने महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले झिंझिया नृत्य का प्रदर्शन किया। दीपक से सजे मटकों के साथ प्रस्तुत इस नृत्य को प्रकृति के प्रति आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक माना जाता है। पारंपरिक गीत और ताल-संगति ने इस प्रस्तुति को बेहद आकर्षक बना दिया। महाराष्ट्र की लोक कलाकार दिव्या सुधीर भावे और उनकी टीम ने लावणी नृत्य की दमदार प्रस्तुति दी। उनकी ऊर्जावान प्रस्तुति ने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। झारखंड से सृष्टिधर महतो ने महिषासुर मर्दिनी पर आधारित छाऊ नृत्य प्रस्तुत किया, जिसने शौर्य और शक्ति का भाव जगाया। वहीं, माँ शरदा डांस ग्रुप ने कजरी नृत्य और एस. ममीनाथन ने तमिलनाडु के थुटुमबट्टम और ऊरुत्तुम नृत्य की प्रस्तुति देकर सांस्कृतिक संध्या को यादगार बनाया।
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