भारत सरकार की महत्वाकांक्षी ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा, जिसका उद्देश्य गरीब परिवारों को 100 दिन का सम्मानजनक रोजगार प्रदान करना है, नौगढ़ ब्लॉक में भ्रष्टाचार का आसान ज़रिया बन गई है। यहां कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने इस योजना को अपनी कमाई का माध्यम बना लिया है। सरकार ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए जियो-टैगिंग, ऑनलाइन मस्टर रोल और फोटो-आधारित उपस्थिति जैसी प्रणालियां लागू की थीं। हालांकि, नौगढ़ में इन्हीं तकनीकों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े के लिए किया जा रहा है। 17 नवंबर से 30 नवंबर तक की अवधि में मस्टर रोल में कुल 1931 मजदूरों की उपस्थिति दर्ज की गई और ₹4,86,612 का भुगतान दिखाया गया। जबकि मौके पर प्रतिदिन केवल 10 से 14 मजदूर ही काम करते पाए गए। वास्तविक मजदूरी लगभग 252 बनती थी, जिसकी लागत लगभग ₹63,504 होती। इस तरह, वास्तविक भुगतान से लगभग ढाई गुना अधिक फर्जी भुगतान किया गया। यह कोई सामान्य गलती नहीं, बल्कि एक संगठित और व्यवस्थित अपराध है, जिसमें विकास विभाग की चुप्पी मिलीभगत की ओर इशारा करती है।
जगदीशपुर राजा गांव में तो घोटाले की हदें और भी आगे निकल गईं। यहां मिट्टी काटने का पूरा काम ट्रैक्टर रोटावेटर जैसी मशीनों से कराया गया, लेकिन मस्टर रोल में 521 मजदूरों की मजदूरी दर्ज कर दी गई।जियो-टैग्ड तस्वीरों में बार-बार वही 14 मजदूर अलग-अलग कोणों से खड़े दिखाई देते रहे, जबकि काम मशीनों से हो रहा था। यह तकनीकी अपराध विकास विभाग के भीतर तक फैली मिलीभगत को उजागर करता है, क्योंकि बिना पासवर्ड एक्सेस और “ओके” सिग्नल के कोई भी फोटो अपलोड करना संभव नहीं है।
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