माँ अन्नपूर्णा के 17-दिवसीय महाव्रत का उद्यापन बड़े ही भक्तिभाव और पारंपरिक भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ। यह व्रत काशी-पूर्वांचल क्षेत्र में अन्न-समृद्धि तथा खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से किसानों के जीवन में इसकी अनन्य महत्ता है, क्योंकि वे अपनी पहली फसल की धान की बालियाँ माता के चरणों में अर्पित कर आगामी कृषि वर्ष के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उद्यापन के अवसर पर अन्नपूर्णा मंदिर का वातावरण आध्यात्मिक आस्था और ग्रामीण समृद्धि से सराबोर दिखा। मंदिर परिसर को कइयों कुंतल धान की सुनहरी बालियों से सजाया गया था। मुख्य गर्भगृह से लेकर बाहरी प्रांगण तक हर द्वार, तोरण और दीवारों पर प्राकृतिक धान की बालियों का सुंदर श्रृंगार किया गया। पहले देखें तस्वीर… अब जानिए क्या है परम्परा महंत शंकर पुरी ने बताया कि यह महाव्रत अत्यंत कठोर माना जाता है। व्रती 17 दिन तक 17 गांठों और 17 धागों का संकल्प धारण करते हैं, जो मन, वचन और कर्म की पवित्रता के प्रतीक होते हैं। पूरे व्रत-काल में वे केवल एक समय फलाहार करते हैं, जिसमें नमक तक का प्रयोग नहीं किया जाता। व्रत का उद्देश्य न केवल शरीर को संयमित करना है, बल्कि मन को सात्त्विक एवं कृतज्ञ भाव से परिपूर्ण करना भी है। मंदिर को धान की बालियों से सजाया उद्यापन के दिन सुबह से ही मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी। मंगला आरती के बाद धान की बालियों से विशेष मंडप सजाया गया, जिसमें माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार हुआ। संध्या के समय विशेष आरती और भोग लगाए गए, जिसमें पारंपरिक रूप से अन्न-समृद्धि के प्रतीक खाद्यान्न, फल और विशेष पकवान अर्पित किए गए।
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