इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम वाराणसी के सरकारी आवास के बगल स्थित भूखंड से बेदखली को लेकर जारी नोटिस के तहत कार्यवाही पर रोक लगा दी है। साथ ही इस मामले में जवाब के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति कुणाल रवि सिंह ने की विजय कुमार व पांच अन्य की याचिका पर उनके अधिवक्ता सुधीर कुमार सिंह व स्थायी अधिवक्ता को सुनकर दिया है।
याचिका में सिटी मजिस्ट्रेट वाराणसी द्वारा जारी नोटिस की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा गया कि राजेश कुमार, छेदी लाल, राजेंद्र कुमार एवं छट्टू को ये नोटिस इस आधार पर जारी किए गए हैं कि वाराणसी के तहसील सदर परगना देहात के मोहल्ला कैंटोनमेंट स्थित क्रमशः 0.019 हेक्टेयर, 0.0195 हेक्टेयर, 0.024 हेक्टेयर और 0.0177 हेक्टेयर क्षेत्रफल का प्लॉट संख्या 15/2 उनके अवैध कब्जे में है और इसलिए उन्हें इससे बेदखल किया जाना है। याचियों के अधिवक्ता सुधीर कुमार सिंह ने अपनी बहस में कहा कि उक्त नोटिस प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार रहित हैं क्योंकि संपत्ति छावनी बोर्ड के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार में है। सिटी मजिस्ट्रेट को अधिकार नहीं इस प्रकार सिटी मजिस्ट्रेट को छावनी बोर्ड के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार स्थित संपत्ति के लिए नोटिस जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि शुरू में यह भूमि काशी नरेश द्वारा 1925 में याचियों के पूर्ववर्तियों को 10 बीघा क्षेत्रफल में पट्टे पर दी गई थी। इसके बाद 1952 में वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट का आवास वहां बनाया गया लेकिन याचियों के पूर्ववर्तियों ने 1925 में उन्हें पट्टे पर दी गई भूमि पर कब्जा और उसका उपयोग जारी रखा। इसके बाद 1955 में कलक्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट बनारस की मुहर से होरी लाल को संबोधित नोटिस जारी किया गया, जिसमें उन्हें प्लॉट संख्या 15/2 क्षेत्रफल 5.50 एकड़ को खाली करने के लिए कहा गया। ऐसा न करने पर उन्हें बेदखल करने के लिए कदम उठाए जाने की बात कही गई।
उक्त नोटिस पर होरी लाल ने यूनियन ऑफ इंडिया, उत्तर प्रदेश राज्य और कलेक्टर वाराणसी के खिलाफ सिविल वाद दाखिल किया। इस वाद का फैसला होरी लाल के पक्ष में प्लॉट संख्या 15/1 के लिए सुनाया गया और वादी के पक्ष में प्लॉट संख्या 15/1 के संबंध में स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान की गई। शेष प्लॉट के संबंध में वाद यह मानते हुए खारिज कर दिया गया कि याचियों का प्लॉट संख्या 15/2 पर कोई अधिकार नहीं था। याचियों के अधिवक्ता का तर्क है कि वाद का निर्णय और डिक्री अंतिम हो गई, क्योंकि प्रतिवादियों ने इसमें कोई अपील नहीं की थी। इसके बाद राजस्व निरीक्षक की रिपोर्ट के माध्यम से यूपी अधिनियम संख्या 1/1951 की धारा 122 बी के तहत इस आधार पर कार्यवाही शुरू की गई कि प्लॉट संख्या 15/2 क्षेत्रफल 0.0191 हेक्टेयर यूनियन सरकार के नाम पर दर्ज है। उक्त कार्यवाही 17 मार्च 2018 को अंतिम रूप से की गई, जिसमें मूल चंद को उक्त प्लॉट से बेदखल करने और हर्जाना वसूलने का निर्देश दिया गया। इस आदेश को मुख्य राजस्व अधिकारी वाराणसी के समक्ष पुनरीक्षण के माध्यम से चुनौती दी गई थी। मुख्य राजस्व अधिकारी ने अपने निर्णय से मामले को वापस भेज दिया, जिसमें यह विशिष्ट निर्देश दिया गया था कि संबंधित अधिकारी पहले यह पता लगाएंगे कि उक्त प्लॉट पर धारा 122 बी लागू है या नहीं।
मुख्य राजस्व अधिकारी वापसी आदेश के अनुसरण में धारा 122 बी के तहत नोटिस वापस ले लिया गया और धारा 122 बी के तहत कार्यवाही इस आधार पर समाप्त कर दी गई कि विवादित प्लॉट गैर ज़ेडए भूमि है और उक्त अधिनियम के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होते। याचियों के अधिवक्ता ने कहा कि ये कार्यवाही अब राज्य सरकार के खिलाफ अंतिम है और भूमि पर कब्ज़े के संबंध में उनके अधिकार अब फलीभूत हो गए हैं। स्थायी अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मूल सिविल वाद के निर्णय के अनुसार प्लॉट संख्या 15/2 के संबंध में वाद यह मानते हुए खारिज कर दिया गया था कि याचियों के पूर्वज समझौते के अनुसार केवल एक वर्ष के लिए ही कब्जे में थे और उसके बाद यूनियन सरकार का नाम उस पर दर्ज किया गया था। इसलिए सिटी मजिस्ट्रेट द्वारा जारी नोटिस पूरी तरह न्यायसंगत है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने मामले को विचारणीय मानते हुए स्थायी अधिवक्ता से तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने और उसके बाद दो सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने का समय देते हुए अगले आदेशों तक राजेश कुमार, छेदी लाल, राजेंद्र कुमार व छट्टू के विरुद्ध क्रमशः वाद संख्या 1/25, 2/25, 3/25 और 4/25 से संबंधित आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
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