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‘चकला’ बन गया था नेहरू का जन्मस्थल:कांग्रेस ने भुला दिया, क्योंकि वो इलाका बाद में रेडलाइट एरिया बन गया

इलाहाबाद के मीरगंज की तंग गलियों में एक घर था। ऊंची छत, लकड़ी की खिड़कियां और आंगन में नीम का एक पेड़। 14 नवंबर, 1889 की सुबह, इसी घर में एक बच्चे ने जन्म लिया, नाम रखा गया जवाहरलाल। किसे पता था कि ये बच्चा आगे चलकर आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बनेगा। मगर वक्त का खेल देखिए, जिस घर में नेहरू ने जन्म लिया वो बाद में ‘चकला’ और वो मोहल्ला शहर का सबसे बदनाम रेडलाइट एरिया बन गया। आज कोई पूछे कि नेहरू का जन्म कहां हुआ था, तो लगभग सभी जवाब देंगे, आनंद भवन। लेकिन इतिहास की किताबें, स्थानीय रिकॉर्ड और इलाहाबाद म्यूजियम कुछ और ही कहानी कहते हैं। कहते हैं, नेहरू का असली जन्मस्थान आनंद भवन नहीं, मीरगंज का एक घर था। कल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का 136वां जन्मदिवस है। इस मौके पर करते हैं उनके जन्मस्थल की पड़ताल… इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं कि नेहरू का जन्म आनंद भवन में नहीं, मीरगंज के मकान नंबर- 77 में हुआ था। करीब 10-12 साल वे वहीं रहे। इसके बाद नेहरू परिवार वहां से निकलकर सिविल लाइन और फिर ‘आनंद भवन’ चला गया। उसके काफी समय बाद मीरगंज रेडलाइट एरिया में तब्दील हुआ। जब नेहरू वहां रहते थे, तब वह एलिट क्लास के लोगों का एरिया था। प्रो हेरंब कहते हैं कि रेडलाइट एरिया बनने की वजह से कांग्रेस ने मीरगंज वाले उस मकान से दूरी बना ली। नेहरू की छवि ‘मॉडर्न इंडिया’ के प्रतीक के रूप में गढ़ी जा रही थी। इसलिए पार्टी ने तय किया कि जन्मस्थान की चर्चा वहीं तक सीमित रखी जाए, जहां छवि चमकती है यानी आनंद भवन तक। इतिहासकार शालिग्राम श्रीवास्तव अपनी किताब ‘प्रयाग प्रदीप’ में लिखते हैं कि जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद के मीरगंज में मकान नंबर-77 में हुआ था। सीनियर जर्नलिस्ट पंकज चतुर्वेदी की किताब ‘जवाहरलाल हाजिर हों’ में भी यही उल्लेख है। यहां तक कि इलाहाबाद म्यूजियम में रखा गया ‘नेहरू भवन मॉडल’ भी इसी बात की पुष्टि करता है। मॉडल के नीचे लिखा है, “14 नवंबर, 1889, पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म मकान नंबर- 77, मीरगंज, इलाहाबाद में हुआ।” जब मीरगंज था पॉश एरिया आज मीरगंज काफी तंग और भीड़भाड़ वाला इलाका है। लेकिन, 19वीं सदी के अंत में ये इलाहाबाद का पॉश एरिया हुआ करता था। जवाहर के पिता बैरिस्टर मोतीलाल नेहरू साल 1886-87 के बीच आगरा से इलाहाबाद शिफ्ट हुए थे। दरअसल, पहले ‘यूनाइटेड प्रॉविंस ऑफ आगरा एंड अवध’ यानी आज के उत्तर प्रदेश का हाईकोर्ट आगरा में हुआ करता था। साल 1869 में ब्रिटिश सरकार ने इसे इलाहाबाद शिफ्ट किया। इसके बाद इलाहाबाद में बैरिस्टरों और जजों की बड़ी आबादी बसने लगी। मीरगंज तब अंग्रेजों और बड़े वकीलों के परिवारों का पसंदीदा इलाका था। यही वजह है कि जब मोतीलाल आगरा से इलाहाबाद आए तो मीरगंज में ही एक मकान किराए पर ले लिया। यह मकान जिस गली में था, उसी में राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन और पंडित मदनमोहन मालवीय जैसे लोग भी रहते थे। मीरगंज के उसी मकान की पहली मंजिल पर जवाहरलाल का जन्म हुआ था। मीरगंज में रहने वाले एक बुजुर्ग रमाशंकर त्रिपाठी बताते हैं कि हमारे पुरखे बताते थे, नेहरूजी का जन्म इस गली में हुआ था। तब यह इलाका बहुत साफ-सुथरा और पॉश हुआ करता था। किसी को क्या पता था कि ये गली आगे चलकर ‘बदनाम गली’ कहलाएगी। कैसे एक पॉश इलाका बन गया रेडलाइट एरिया 1857 में अंग्रेजों ने अपने अफसरों के लिए इलाहाबाद का सिविल लाइंस एरिया बसाना शुरू किया। कुछ दशक बाद जब संभ्रांत लोग भी सिविल लाइंस में रहना शुरू किया। अब सिविल लाइंस यहां का पॉश एरिया था। मीरगंज के लोग एक-एक करके वहां बसते गए। मोतीलाल नेहरू की वकालत भी चल पड़ी थी। अब वे बड़ा नाम हो गए, उनकी फीस बढ़ गई थी। कुछ सालों बाद उन्होंने मीरगंज में किराए का मकान को छोड़कर सिविल लाइन एरिया में एक मकान खरीदा और वहां शिफ्ट हो गए। धीरे-धीरे ज्यादातर लोग सिविल लाइन एरिया में चले गए और मीरगंज के मकान खाली हो गए। ब्रिटिश शासन के दौरान हर बड़े शहर में एक ‘नोटिफाइड रेडलाइट एरिया’ बनाया जाता था। ये वो एरिया होता था जहां खुलकर वेश्यावृत्ति चलती थी। तब के इलाहाबाद में अंग्रेजों ने दो इलाकों मीरगंज और गढ़ी सराय चौक को रेडलाइट एरिया बनाया। धीरे-धीरे मीरगंज का वो मोहल्ला, जहां कभी बैरिस्टर रहते थे, तवायफों के कोठों में बदल गया। कहा जाता है कि जहां जवाहर पैदा हुए उसे किसी तवायफ ने खरीद लिया था। वहां मुजरा और गलत काम होता था। 1930 के दशक तक यह इलाका ‘चकला’ कहलाने लगा। नेहरू जहां पैदा हुए थे, वो 77 नंबर का मकान जर्जर हो गया था। इस कारण नगर पालिका ने 1931 में उसे गिरा दिया। प्रयागराज के सीनियर जर्नलिस्ट सुनील शुक्ला बताते हैं- गढ़ी सराय का चकला, माफिया चांद बाबा ने बंद कराया था, क्योंकि वो उसका मोहल्ला था। चांद बाबा वहां रोज बमबाजी करता था। उसके डर से सारी तवायफें और दलाल एरिया छोड़कर भाग गए, लेकिन मीरगंज का चकलाघर चलता रहा। आजादी के बाद इसे बंद कराने के लिए NGO, महिला संगठन और कुछ स्थानीय लोग सालों तक संघर्ष करते रहे, पर इलाके की बदनामी खत्म नहीं हुई। आखिरकार 2016 में कोर्ट के आदेश पर इसे बंद कराया गया। अब ये पूरी तरह से सिविल एरिया है, लेकिन बदनामी इसका पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही। कांग्रेस की असहजता और चुप्पी सीनियर जर्नलिस्ट पवन द्विवेदी कहते हैं कि कांग्रेस नेहरू को आधुनिक भारत के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर रही थी। इसलिए इस ‘रेडलाइट एरिया’ वाले प्रसंग से दूरी बनाए रखना जरूरी था। आनंद भवन शिक्षा, आंदोलन और राजनीतिक बैठकों का सेंटर बन चुका था। एक आदर्श प्रतीक था। यही कारण था कि पार्टी ने धीरे-धीरे मीरगंज का नाम ही गायब कर दिया। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के मीडिया स्टडीज डिपार्टमेंट के कोऑर्डिनेटर डॉ. धनंजय चोपड़ा कहते हैं कि नेहरू के जन्म के समय मीरगंज बदनाम इलाका नहीं था। कांग्रेस चाहती तो वहां एक स्मारक बना सकती थी। लेकिन, उसने उस जगह को नजरअंदाज कर दिया। नेहरू ने भी अपनी किसी किताब या भाषण में उस जगह का जिक्र नहीं किया। उन्होंने अपनी जीवनी में भी इसका उल्लेख नहीं किया। उन्होंने बस इतना लिखा है कि उनका जन्म इलाहाबाद में हुआ था। मीरगंज में आंदोलन हुआ, लेकिन नतीजा कुछ नहीं साल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील सुनील चौधरी ने मीरगंज में राष्ट्रीय स्मारक बनाने और रेडलाइट एरिया खत्म करने के लिए आंदोलन चलाया। लगातार 8 महीने तक आंदोलन चला। चौधरी बताते हैं कि हमने मीरगंज की गलियों में मार्च किया, नारे लगाए, धरना दिया। मैंने 8 महीने तक दाढ़ी नहीं बनाई। रेडलाइट एरिया के उन लोगों ने हम पर जानलेवा हमले भी कराए। उल्टा शांति भंग के आरोप में मुझे और कुछ साथियों को जेल भेज दिया गया। कुछ दिनों बाद हमने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। तब कोर्ट ने तीन मेंबर्स की कमेटी बनाई, ताकि पता लगाया जा सके कि जिस मकान में नेहरू का जन्म हुआ था, वह मकान कौन-सा है। एक ही सर्वे में पता चल गया कि मकान नंबर- 77 कौन-सा है? रिपोर्ट भेजी गई। इस दौरान स्थानीय लोगों को लगा कि अगर नेहरू का स्मारक बना तो ज्यादा जगह की जरूरत होगी। तोड़फोड़ होगी, इसमें उनके मकान भी टूटेंगे। दूसरी बार विस्तृत जांच के लिए कमेटी पहुंची, उससे पहले ही मीरगंज के लोगों ने अपने घर के बाहर लिखे नंबर मिटा दिए। इससे ये पहचान नहीं हो पाई कि वह घर कौन-सा था। स्थानीय लोगों ने इस जांच का विरोध भी किया। एडमिनिस्ट्रेशन ने कोर्ट को रिपोर्ट दी कि अगर वहां स्मारक बना तो माहौल बिगड़ सकता है। इसके बाद बात आई-गई हो गई। चौधरी कहते हैं कि इसके बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्‌ठी लिखी और उन्हें सारे सबूत भेजे, लेकिन आज-तक कोई जवाब नहीं आया। शायद कांग्रेस खुद नहीं चाहती कि उनके नेता का स्मारक बने, क्योंकि ये कभी रेडलाइट एरिया था। आनंद भवन कैसे बना नया प्रतीक शहर कांग्रेस कमेटी, प्रयागराज के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप मिश्र अंशुमन बताते हैं कि मोतीलाल नेहरू जब आगरा से इलाहाबाद आए, तो पहले उन्होंने मीरगंज में मकान लिया। कुछ साल बाद उन्होंने अंग्रेजों से एक बंगला खरीदा जो पहले सर सैयद अहमद खान को दिया गया था- महमूद मंजिल। इसी को मोतीलाल नेहरू ने बाद में आनंद भवन नाम दिया। आजादी की लड़ाई के दौरान उन्होंने ये भवन कांग्रेस को दे दिया। फिर खुद एक नया घर बनवाया, जिसका नाम स्वराज भवन रखा। कांग्रेस के लिए आनंद भवन सभ्यता, संघर्ष और आधुनिक भारत का एक प्रतीक बन गया। जब इतिहास लिखा गया, तो मीरगंज धीरे-धीरे गायब कर दिया गया। नेहरू का जन्मस्थान राजनीतिक सुविधा की बलि चढ़ गया। इलाहाबाद म्यूजियम में बाकी हैं कुछ निशान इलाहाबाद म्यूजियम में नेहरू भवन का एक मॉडल आज भी मौजूद है। नीचे तख्ती पर साफ लिखा है- “पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को मकान नंबर 77, मीरगंज, इलाहाबाद में हुआ।” यही शायद एकमात्र आधिकारिक दस्तावेज है जो मीरगंज को नेहरू की जन्मस्थली साबित करता है। मगर उस जगह पर आज कोई पत्थर नहीं, कोई निशान नहीं है। वहां सिर्फ तंग गलियां, भीड़ और कुछ बुजुर्गों की यादें बची हैं। नेहरू की प्रतिमा इलाहाबाद के हर कोने में लगी है, पर जहां उनका जन्म हुआ, वहां एक तख्ती तक नहीं है।


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