गन्ना बनेगा ग्रीन गोल्ड! चौंकिए नहीं गन्ने को ग्रीन गोल्ड बनाने में एथनॉल की होगी अहम भूमिका। अब भारत धीरे धीरे उस स्थित में पहुंच गया है जब वह एथनॉल के निर्यात के बारे में सोच सकता है करीब चार महीने पहले केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री से ये बात कही थी।
निकट भविष्य में जब भी ऐसा होगा तब उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक लाखों किसान सबसे लाभ में होंगे। यकीनन इसके पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विजन है। उनके विजन का ही नतीजा है कि आज उत्तर प्रदेश न सिर्फ गन्ना,बल्कि चीनी और एथनॉल के उत्पादन में भी देश में नंबर वन है। फिलहाल गन्ना किसानों के हित में जो योजनाएं बनीं हैं उनको संदर्भ में रखकर देखें तो यह सिलिसिला जारी ही रहेगा। क्योंकि अब तो योगी सरकार शुगर कॉम्प्लेक्स भी बना रही है। मथुरा के छाता को शुगर कॉम्प्लेक्स के रूप में विकसित करने की योजना है। इस कॉम्प्लेक्स में चीनी के साथ, एथनॉल, कोजेन,बायोगैस प्लांट और डिस्टलरी का भी उत्पादन होगा।
पिछले दिनों जब योगी सरकार ने गन्ना मूल्य बढ़ाया था तब अपने सरकारी आवास पर आयोजित एक कार्यक्रम में भी उन्होंने शुगर कॉम्प्लेक्स का जिक्र किया था।
शुगर कॉम्प्लेक्स में बायोगैस प्लांट लगने से पराली जलाने की समस्या कम करने में भी मदद मिलेगी। एथनॉल की संभावनाओं को देखते हुए सरकार मक्के, धान की भूसी आदि से भी इसका उत्पादन बढ़ाने की सोच रही है। मक्के से एथनॉल बनाने पर सरकार का फोकस गन्ने के अलावा एथनॉल के उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार का सर्वाधिक फोकस मक्के पर है।
उल्लेखनीय है कि बहुउपयोगी होने के कारण मक्के की खेती का क्रेज यूं भी कम नहीं था। भारत का दुनियां का पांचवा सबसे उत्पादक देश होना इसका सबूत है। पर हाल के वर्षों में पेट्रोल में एथेनॉल के मिश्रण को अनिवार्य किए जाने से इसकी मांग बढ़ने से इसकी खेती का क्रेज और बढ़ा है। सरकार द्वारा मक्के को एमएसपी के दायरे में लाने से किसानों को इसका वाजिब दाम भी मिलने लगा। इसलिए किसानों में भी तीनों फसलों सीजन (रबी खरीफ और मक्के) में की जाने मक्के की खेती के प्रति और क्रेज बढ़ा है। यही वजह है कि एक दशक के दौरान मक्के के उत्पादन में करीब दो गुने तक की वृद्धि हुई है।
डायरेक्टर ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टैटिक्स मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फॉर्मर्स वेलफेयर के आंकड़ों के अनुसार 2013/2014 से 2015/2016 के दौरान देश के मक्के का औसत उत्पादन 2.35 करोड़ टन था। मौजूदा समय में यह बढ़कर 4.23 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। केंद्र सरकार ने 2047 के लिए 8.6 लाख करोड़ टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यूपी की संभावनाओं के बाबत क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स एक्सपर्ट्स के मुताबिक पिछले दशक में भारत और उत्तर प्रदेश दोनों में मक्के का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि अधिक तेज रही है। उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण उत्पादक बना हुआ है, लेकिन इसका राष्ट्रीय योगदान कुछ कम हुआ है। भविष्य में, सरकारी योजनाएं और तकनीकी प्रगति उत्तर प्रदेश में उत्पादन बढ़ाने की भरपूर संभावना है। सरकार द्वारा इसके लिए बीज सब्सिडी, सिंचाई सुधार और तकनीकी प्रशिक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है। किसान अब सिर्फ खरीफ के ही सीजन में नहीं रबी और जायज के सीजन में भी मक्के की खेती करने लगे हैं एथनॉल उत्पादन के लिए क्यों बेहतर है मक्का हालांकि एथनॉल उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश में नंबर वन है। अभी एथनॉल का मुख्य स्रोत गन्ना, धान और सीमित मात्रा में मक्का है। गन्ने और धान की खेती में अपेक्षाकृत पानी की अधिक जरूरत होती है। ग्लोबल वार्मिंग के नाते वर्षा अप्रत्याशित हुई है। साथ ही इसकी समयावधि भी घटी है। कम समय में अधिक वर्षा होना और बारिश में सूखे दिनों का अंतराल आम हो गया है। सूखे के दौरान सिंचाई करने से धान और गन्ने की लागत भी बढ़ जाती है। और गन्ना तो साल भर फसल है।
ऐसे में तीनों फसली सीजन (रबी, खरीफ और जायद) में होने वाले मक्के को एथनॉल बनाने का मुख्य स्रोत बना रही है योगी सरकार। इससे मक्के के जरिये किसान अन्नदाता के साथ ईंधनदाता भी बनेंगे। साथ ही बहुपयोगी मक्के के अन्य उपयोग का भी उनको लाभ मिलेगा। अब तक की प्रगति
मिली जानकारी के अनुसार इस बाबत कृषि और गन्ना विभाग के बीच बैठकें भी हो चुकीं है। हर चीनी मिल के परिक्षेत्र में संभावित मक्के के रकबे का भी चिन्हीकरण किया जा चुका है। प्रदेश में एथनॉल बनाने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ाई जाएगी। इससे अतिरिक्त रोजगार के अवसर मिलेंगे। साथ ही इस क्षेत्र में नया निवेश भी आएगा।इसके लिए कच्चे माल के रूप में बड़ी मात्रा में मक्के की जरूरत होगी। योगी सरकार ने इसके लिए बहुत पहले से ही तैयारी कर रखी है। अगले दो साल में योगी सरकार का लक्ष्य 3.2 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन का अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती दिनों में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मक्के का रकबा और प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाने का लक्ष्य कृषि विभाग को दे दिया था। लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार ने त्वरित मक्का विकास योजना शुरू की है। अभी प्रदेश में करीब 8.30 लाख हेक्टेयर रकबे में मक्के की बोआई होती है। उत्पादन है करीब 21.16 लाख टन। योगी सरकार ने 2027 तक 27.30 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। क्योंकि यहां उपज बढ़ाने की अब भी भरपूर संभावना है। योगी सरकार इस बाबत प्रयास भी कर रही है। डायरेक्टर ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टैटिक्स मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फॉर्मर्स वेलफेयर के आंकड़ों के अनुसार 2013/2014 से 2015/2016 के दौरान उत्तर प्रदेश में 1.30 मिलियन टन था। यह देश के कुल उत्पादन का करीब 5.5% था। 2018-19 में उत्पादन बढ़कर लगभग 2.0 मिलियन मीट्रिक टन हो गया, जो राष्ट्रीय उत्पादन का 8% था। 2023-24: उत्पादन 2.1 मिलियन मीट्रिक टन के आसपास रहा। 2025 के अनुमानित के आंकड़ों के अनुसार, उत्पादन 2.12 मिलियन मीट्रिक टन रहा, जो राष्ट्रीय उत्पादन का 6% है
वर्ष 2027-28 के लिए योगी सरकार ने 3.2 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। तब बहुपयोगी मक्का और होगा उपयोगी मक्का यूं भी बहुपयोगी फसल है। ऐसे में एथनॉल बनने से इसकी उपयोगिता और बढ़ जाएगी। केंद्र सरकार ने पेट्रोल में 20 फीसद एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है। मक्का जब एथनॉल का प्रभावी विकल्प बनेगा तो किसानों को इसका वाजिब दाम मिलेगा। इससे उनकी आय और खुशहाली दोनों बढ़ेगी। यही योगी सरकार की भी मंशा है। उत्पादन बढ़ाने में किसान और कृषि वैज्ञानिकों की रही महत्वपूर्ण भूमिका मक्के का उत्पादन बढ़ाने में सरकार ,किसान और कृषि वैधानिक ,तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सरकार से मिले प्रोत्साहन और एमएसपी के समर्थन के कारण किसानों का मक्के की खेती के प्रति रुझान बढ़ा। केंद्रीय कृषि मंत्री के मुताबिक इस दौरान ICAR ने मक्के की कुल 112 प्रजातियों का विकास किया। इनमें से 77 संकर और 35 जैव फोर्टीफाइड थीं। अब वैज्ञानिकों का जोर बेहतर उपज और अधिक स्टार्च वाली प्रजातियों के विकास पर है। अभी मक्के में स्टार्च की मात्रा अलग अलग प्रजातियों के अनुसार 65 से 70% है। इसे बढ़ाकर 70% करने का लक्ष्य है। अब तो एथनॉल के बाई प्रोडक्ट से प्रोटीन और फाइबर से भरपूर पशु आहार भी बनने लगे
अब तो एथनॉल के बाई प्रोडक्ट से कुछ नामचीन कंपनियां प्रोटीन और फाइबर युक्त पोषक पशुआहार भी बना रही हैं। मसलन गोरखपुर स्थित गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण स्थित इंडिया ग्लाइकॉल्स लिमिटेड (आईजीएल) ने ऐसे पशु आहार का सफल ट्रायल किया है। अब वह इसका
वाणिज्यिक उत्पादन करने जा रही है।
आईजीएल के डिस्टलरी प्लांट में ग्रेन बेस्ड (मक्का एवं चावल) एथनॉल बनता है। एथनॉल बनाने के बाद बचे अनाज के अवशेष से आईजीएल ने पशु आहार बनाना शुरू किया है। कंपनी के बिजनेस हेड एसके शुक्ला बताते हैं कि बाई प्रोडक्ट में कुछ और पोषक तत्व मिलाकर इसका ट्रायल शुरू किया। यह डीडीजीएस (डिस्टिलर्स ड्राईड ग्रेन्स विथ सॉल्यूबल्स) पशु आहार है। आईजीएल ने तैयार पशु आहार को क्षेत्र के कई पशुपालकों को प्रयोग के तौर पर दिया गया। पशुपालकों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार पंद्रह दिन लगातार यह पशु आहार देने के बाद प्रति दुधारू पशु दो लीटर अधिक दूध प्राप्त होने लगा। बिजनेस हेड के अनुसार अब कंपनी ने ‘प्रोटीजीएस’ ब्रांड से वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने की तैयारी कर रही है। एथनॉल उत्पादन एक नजर
केंद्र सरकार ने 2025/2026 तक पेट्रोल में 20% एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वह हर संभव (गन्ना ,चावल, गुड़,मक्का, चावल की भूसी आदि) तरीके से एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। जून 2025 तक देश में एथनॉल का सालाना उत्पादन करीब 1822 करोड़ लीटर तक पहुंच गया है। सरकार की एथनॉल नीतियों के कारण देश के किसानों की कमाई करीब 45 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त जुड़ गए हैं। निर्यात बढ़ने से स्वाभाविक है,यह लाभ भी बढ़ेगा और इससे सर्वाधिक लाभ उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को होगा। अपने पहले कार्यकाल से ही किसानों के हितों के प्रतिबद्ध योगी सरकार की मंशा भी यही है। अपने ही पहले कार्यकाल दौरान अपनी पहली ही कैबिनेट में प्रदेश के 86 लाख लघु सीमांत किसानों का कर्जा माफ कर उन्होंने अपनी मंशा साबित कर दी थी। तबसे ये सिलसिला लगातार जारी है।
सिंचन क्षमता में 23 लाख हेक्टेयर का विस्तार, अपेक्षाकृत पिछड़े बुंदेलखंड और पूर्वांचल को केन्द्र में रखकर विश्वबैंक की मदद से शुरू की गई यूपी एग्रीज जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं इसका प्रमाण हैं।
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