कुशीनगर के खड्डा में रहने वाले एक परिवार के लिए मंगलवार की दोपहर किसी खुशी से कम नहीं थी। अचानक घर के दरवाजे पर एक व्यक्ति आया, जिसे देखकर परिवार के लोग हैरान रह गए। वह उनका बेटा तैयब अली था, जो 45 साल पहले घर छोड़कर चला गया था। अब उसकी उम्र लगभग 60 वर्ष हो चुकी है। उसे देखकर परिवार की आंखों में आंसू आ गए और पूरा माहौल भावुक हो गया। सिसवा गोपाल के सिसही गांव में ऐसा दृश्य दशकों बाद देखने को मिला। तैयब अली ने 1980 में, केवल 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। घर में रोज़-रोज़ झगड़े होते थे, भाइयों में मनमुटाव था और माहौल बिगड़ा रहता था। इससे वह मानसिक रूप से परेशान हो गया और बिना किसी को बताए गांव छोड़ दिया। किसी ने यह नहीं सोचा था कि वह इतने वर्षों बाद वापस लौट आएगा। तैयब बताते हैं -“घर के झगड़ों से मैं इतना परेशान हो गया था कि लगा अब यहां रह नहीं पाऊंगा, इसलिए मैं निकल पड़ा।” पंजाब से राजस्थान-फिर गुजरात घर छोड़ने के बाद तैयब अली सबसे पहले पंजाब पहुंचे। वहां करीब 15 साल तक मजदूरी, पोदरी और अन्य काम किए। इसके बाद जीवन की तलाश उन्हें राजस्थान ले गई, जहां कुछ वर्षों तक रेलवे में लेबर के तौर पर काम किया। फिर वह गुजरात पहुंचे और गांधीधाम के कांदला शहर में रहने लगा कुछ साल बाद वह उत्तर प्रदेश के शामली जनपद में जाकर लेबर का काम करने लगा। शामली जनपद में ही उनकी मुलाकात मैरून नाम की महिला से हुई और दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद दो बच्चे हुए। धीरे-धीरे परिवार बढ़ा और वही परिवार ही उनका सहारा बन गया। बाद में शामली जिले के कांधला शहर में घर किराए पर लेकर रहना शुरू कर दिया। जब SIR फॉर्म भरने की बात आई तो पिता का दस्तावेज मंगा गया उस समय वहां के निवासी नहीं होने के वजह से कोई प्रमाण नहीं था फिर वापस अपने गांव आने के लिए मजबूर हो गया सरकार के ‘SIR’ ने जोड़ा टूट चुका रिश्ता तैयब अली के घर लौटने की पूरी कहानी में एक अहम वजह है—एस.ए.आर. (SIR) फॉर्म, जिसे सरकार इन दिनों भरवा रही है। इस फॉर्म में पिता के दस्तावेज की आवश्यकता पड़ती है। दस्तावेज के लिए उन्हें अपने गांव जाना जरूरी हो गया। पहले मन नहीं था, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें वर्षों पुरानी देहरी की ओर मोड़ दिया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- हम जैसे बिछड़े हुए लोगों के लिए SIR अच्छा है। इसने हमें हमारे परिवार से मिलवा दिया। घर आने का मन नहीं था, लेकिन SIR ने आने के लिए मजबूर कर दिया। बच्चों की जिद बनी भावुक कारण तैयब बताते हैं कि उनके बच्चे हमेशा अपने दादा-दादी, चाचा-चाची और पूरे परिवार से मिलने की इच्छा जताते थे। बच्चे बहुत बार कहते थे कि हमें अपने असली घर ले चलो। उनकी जिद बढ़ती गई। कई बार मुझे गुस्सा तक आ जाता था, लेकिन आज लगता है कि बच्चों की वही जिद हमें यहां ले आई। गांव में स्वागत, भावनाओं का सैलाब तैयब को अचानक देखकर परिवार के लोग हैरान रह गए। कुछ क्षण के लिए लोग पहचान भी नहीं पाए, लेकिन जब सच सामने आया तो घर में रोते-हँसते हुए गले मिलने का सिलसिला शुरू हो गया। गांव के लोगों ने कहा “हमने सोचा ही नहीं था कि तैयब कभी लौटेगा।”गांव के लोगों में भी उत्सुकता बढ़ गई। पुराने लोग उन्हें पहचानकर भावुक हो उठे, वहीं नए लोगों ने वर्षों बाद की इस ‘वापसी’ को अलग अनुभव के रूप में देखा। तैयब अली ने गांव में प्रवेश करते हुए कहा, 45 साल में बहुत कुछ बदल गया, लेकिन घर की खुशबू आज भी वैसी ही है।
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