हाथरस के सादाबाद की छात्रा राखी और उसका साथी हरीश मर्चेंट नेवी में नौकरी के सपने लेकर घर से निकले थे। लेकिन वही सपना उनके लिए सबसे खौफनाक हकीकत बन गया। दोनों को जॉब दिलाने के नाम पर ठगों ने विदेश में बंधक बना लिया, दो महीने तक साइबर गिरोह के लिए काम करवाया और काम न करने पर 3-3 दिन तक भूखा रखा। दोनों की मानें तो “हमने दोबारा वतन लौटने की उम्मीद ही छोड़ दी थी।” पीड़ितों के अनुसार, 7 सितंबर को वे बैंकॉक पहुंचे। एयरपोर्ट के बाहर वही कार सवार व्यक्ति मिला, जिसका जिक्र एजेंट संजय ने किया था। भरोसा कर दोनों कार में बैठ गए। छह घंटे तक कार उन्हें घुमाती रही। भाषा समझ न आने पर मोबाइल ट्रांसलेट से बात करने की कोशिश की, लेकिन चालक बार-बार यही कहता रहा–“आपको सही जगह पहुंचा दूंगा।” छह घंटे बाद कार एक होटल पर रुकी। कुछ देर बाद दूसरी कार, फिर तीसरी… कई बार गाड़ियां बदलने पर दोनों को शक हो गया कि बात कुछ और ही है। आखिरकार कार उन्हें एक सुनसान जंगल में छोड़कर चली गई। कुछ देर बाद चार बाइकों पर लोग पहुंचे। दो बाइकों पर सामान लदा था, जबकि दो पर बैठाकर दोनों को दूर एक झोपड़ी में ले जाया गया।रात उसी झोपड़ी में कटनी पड़ी, और वहीं से उनकी असली कैद शुरू हुई। काम से मना किया तो भूखा रखा, मारपीट की… पीड़ितों ने बताया कि उन्हें साइबर गिरोह के लिए टाइपिंग और ऑनलाइन धोखाधड़ी से जुड़े काम करने को मजबूर किया गया। काम से मना किया तो तीन-तीन दिन तक खाना नहीं दिया गया।मारपीट भी की जाती थी। भूख और डर से डरे सहमे दोनों को मजबूरन गिरोह का काम करना पड़ा। परिजन आज भी दहशत में हैं। लड़की के परिवार ने कैमरे पर आने से इनकार कर दिया और कहा—ये लड़की का मामला है… हम कुछ नहीं कहना चाहते। युवक ने भी बिना कैमरे के जो बताया वह इतना भयावह था कि पूरा परिवार आज भी सदमे में है। पासपोर्ट-मोबाइल छीन लिया गया कार उन्हें थाईलैंड की सीमा पार कराकर म्यांमार ले गई। वहां एक एजेंट के हवाले कर दिया गया।कमरे में बंद कर उनके पासपोर्ट और मोबाइल छीन लिए गए। पीड़ित के मुताबिक, बाद में पास की ही एक “कंपनी” में ले जाया गया, जहां चाइनीज लोगों की देखरेख में टाइपिंग का काम कराया जाता था।यहीं से उनकी असली मुश्किलें बढ़ीं—“अगर हाथ रुक जाए तो गाली, अगर विरोध करें तो भूख… यही रूटीन था।”
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