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‘कहीं कुछ गड़बड़ है’ ट्रायल कोर्ट जज को फटकार:हाईकोर्ट ने बुजुर्ग व्यक्ति के खिलाफ 20 साल पुराने मामले में कार्रवाई की चेतावनी दी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज की एक निचली अदालत को 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले में ‘सुस्त’ रवैये के लिए फटकार लगाई है। न्यायालय ने कहा कि अदालत के नियमित स्थगन और अभियोजन पक्ष द्वारा पिछले 13 वर्षों से एक भी गवाह पेश न कर पाने के कारण 73 वर्षीय आरोपी को ‘पीड़ित’ किया गया है।
यह देखते हुए कोर्ट ने कहा कि अधीनस्थ न्यायालय के कामकाज में “कहीं न कहीं कुछ गड़बड़” प्रतीत होती है। न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने पीठासीन अधिकारी को एक महीने के भीतर मुकदमे को पूरा करने या अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना करने का सख्त अल्टीमेटम दिया। हाईकोर्ट 73 वर्षीय श्रीश कुमार मालवीय द्वारा दायर आवेदन पर विचार कर रहे थी, जो 2005 से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 129 के तहत अभियोजन का सामना कर रहे हैं। इस अपराध के लिए अधिकतम छह महीने की सजा का प्रावधान है, फिर भी यह मुकदमा 20 वर्षों से चल रहा है। निचली अदालत के आर्डर शीट पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति सिंह ने इस तथ्य पर कड़ी आपत्ति जताई कि अभियुक्त पिछले 13 वर्षों से नियमित रूप से कोर्ट में पेश हो रहा है, लेकिन अभियोजन पक्ष एक भी गवाह पेश करने में विफल रहा है। न्यायालय ने कहा कि मामले में आरोपपत्र 9 सितम्बर, 2005 को प्रस्तुत किया गया था, लेकिन आरोप सात वर्ष बाद 2012 में तय किये गये। कहा गया है कि तब से ट्रायल कोर्ट गवाहों को जुटाने के लिए प्रभावी कदम उठाए बिना अभियोजन पक्ष को ‘उदारतापूर्वक’ तारीखें दे रहा है। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि गवाहों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट लगभग 11 वर्षों की देरी के बाद दिसंबर 2023 में ही जारी किए गए, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि, ” यह एक बहुत ही गंभीर मामला है, जहां लगभग 73 वर्ष की आयु के एक वरिष्ठ नागरिक को ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है और प्रथम दृष्टया, रिकॉर्ड के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रायल कोर्ट अपने कर्तव्य के निर्वहन में सुस्त है और अभियोजन पक्ष की ओर से मांगे गए अनावश्यक स्थगन को मंजूरी देने के अलावा कुछ नहीं कर रहा है। ट्रायल कोर्ट ने इस न्यायालय के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की पूरी तरह से अनदेखी की है, जिसमें निर्देश दिया गया है कि पुराने मामलों का जल्द से जल्द निपटारा/निर्णय किया जाना चाहिए। ” हाईकोर्ट ने आम आदमी के प्रति अधीनस्थ न्यायपालिका की जिम्मेदारी पर भी जोर दिया और कहा, ” राज्य के अन्य सभी अंगों की तरह न्यायपालिका भी लोगों के प्रति समान रूप से जवाबदेह है। इसलिए, निचली अदालत के पीठासीन अधिकारी को आम आदमी के प्रति अपनी जवाबदेही का एहसास होना चाहिए। ” कोर्ट ने कहा कि पीठासीन अधिकारी पुराने मामलों को नियमित तरीके से स्थगित कर रहे हैं, जिससे यह आभास होता है कि “कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है”। न्यायालय ने कहा कि पुराने मामलों को, कठिनाइयों की परवाह किए बिना, प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाना चाहिए। न्यायालय ने मामलों के शीघ्र निपटान के संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा जारी परिपत्रों की अनदेखी करने के लिए अधिकारी की भी आलोचना की। अदालत ने कहा कि आवेदक लंबी सुनवाई के लिए दोषी नहीं था; बल्कि अभियोजन पक्ष ने ही स्थगन की मांग की थी। पीठ ने कहा कि निचली अदालत को मूकदर्शक बनने के बजाय अभियोजन पक्ष के साक्ष्य बहुत पहले ही बंद कर देने चाहिए थे। याची को और अधिक परेशान होने से बचाने के लिए, हाईकोर्ट ने अब ट्रायल कोर्ट को आदेश प्रस्तुत करने की तिथि से एक महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने आगे निर्देश दिया है कि यदि अभियोजन पक्ष अगली तारीख पर साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो ऐसा करने का उनका अवसर समाप्त कर दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया गया है कि वह एक महीने बाद मुकदमे के निष्कर्ष की सूचना उच्च न्यायालय को दे। आदेश में चेतावनी दी गई है कि ऐसा न करने पर, इस न्यायालय के पास समय-समय पर इस न्यायालय द्वारा जारी किए गए विभिन्न निर्देशों का पालन न करने के लिए दोषी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। रजिस्ट्रार (अनुपालन) को आदेश की एक प्रति जिला न्यायाधीश, प्रयागराज को भेजने का निर्देश दिया गया। हाईकोर्ट ने इस केस को 6 जनवरी, 2026 को अनुपालन हेतु सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।


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