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इटावा डिस्ट्रिक्ट कॉपरेटिव बैंक घोटाला आरोपियों की संपत्ति जब्त हो:बैंक अध्यक्ष आदित्य यादव ने रखी मांग, कहा- बेल देना गलत संदेश

इटावा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड में सामने आए करोड़ों रुपये के घोटाले को लेकर पहली बार बैंक अध्यक्ष आदित्य यादव इस मुद्दे को लेकर मीडिया के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने घोटाले में शामिल कर्मचारियों, बैंक को हुए आर्थिक नुकसान, जांच की स्थिति, बेल के मुद्दे और प्रदेश में सहकारिता व्यवस्था की अनदेखी पर खुलकर अपनी बात रखी। घोटाले में शामिल कर्मचारियों और संपत्ति नीलामी का मुद्दा अध्यक्ष आदित्य यादव ने कहा कि बैंक के कई कर्मचारी, उनके परिवार और रिश्तेदार घोटाले में लिप्त पाए गए हैं। ये सभी इस समय जेल में हैं। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के रूप में और पूरी प्रबंध समिति ने सरकार को भरोसा दिलाया है कि जांच और कार्रवाई में पूरा सहयोग दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि बैंक को जो बड़ा वित्तीय नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई सबसे जरूरी है। इसके लिए जो भी कर्मचारी इस घोटाले में शामिल हैं और जिनकी चल अचल संपत्ति इस धांधली से जुड़ी है, उनकी नीलामी कर बैंक का पैसा वापस लाया जाना चाहिए। इस मांग को लेकर प्रशासन से लगातार आग्रह किया जा रहा है। बेल का विरोध और सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग अध्यक्ष ने कहा कि बैंक घोटाले की जांच को लगभग एक साल पूरा होने जा रहा है। इस दौरान जेल में बंद कर्मचारी लगातार कोर्ट में बेल के लिए आवेदन कर रहे हैं। प्रबंध समिति का साफ मानना है कि अगर इन लोगों को बेल दी गई तो यह समाज में गलत संदेश देगा और भविष्य में ऐसे घोटाले और बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसी वजह से सरकार से बार बार मांग की जा रही है कि दोषियों की बेल न होने दी जाए। साथ ही उनकी जमीन और संपत्ति को जल्द से जल्द जब्त और सीज किया जाए, ताकि बैंक को हुए नुकसान की भरपाई हो सके। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार इस प्रक्रिया में देरी क्यों कर रही है। इनकम टैक्स जांच और सहकारिता व्यवस्था पर सवाल पिछले दिनों बैंक में आयकर विभाग की जांच को लेकर आदित्य यादव ने कहा कि वर्ष 2021-22 का इनकम टैक्स जमा नहीं हो पाया था। इसकी जिम्मेदारी प्रबंधन ने ली है और इसे पूरा कराया जाएगा। इसके बाद के सभी वर्षों का इनकम टैक्स समय पर जमा किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में सहकारिता व्यवस्था की लगातार अनदेखी हो रही है। हाल ही में खाद वितरण के दौरान देखा गया कि समितियों और संघों को खाद उपलब्ध नहीं कराई गई। इससे साफ होता है कि सरकार सहकारी संस्थाओं को कमजोर करना चाहती है, जबकि किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था इन्हीं पर निर्भर है।


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