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आसाराम की जमानत रद्द करने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी:पीड़िता के पिता बोले- जेल में हो आम कैदियों जैसा इलाज, बाहर रहने से परिवार को खतरा

शाहजहांपुर में आसाराम प्रकरण की पीड़िता के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने आसाराम की जमानत रद्द करने की मांग की है। पीड़िता के पिता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए कहा है कि आसाराम पूरी तरह स्वस्थ हैं। पिता ने कहा कि उसे आम कैदियों की तरह जेल में ही इलाज मिलना चाहिए। पीड़िता के पिता ने बताया कि उन्होंने अपने वकील से बात की थी और आसाराम की जमानत रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने को कहा था। उनके वकील ने संभवतः सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी है। पिता ने जोर देकर कहा कि आसाराम पूरी तरह स्वस्थ हैं। उनके वकील ने भी आसाराम की लगातार यात्राओं का जिक्र करते हुए उनके स्वस्थ होने की बात कही है। पीड़िता के पिता ने आशंका जताई है कि यदि आसाराम जेल से बाहर रहते हैं, तो उनके पूरे परिवार की जान को खतरा बना रहेगा। उन्होंने बताया कि आसाराम के समर्थकों ने उनके परिवार को खत्म करने की चुनौती दी है, जिसके कारण वे हर समय डर में रहते हैं। उनकी मांग है कि आसाराम का इलाज अन्य कैदियों की तरह जेल के अंदर ही हो। गौरतलब है कि एक समय था जब पीड़िता का पूरा परिवार आसाराम का अनुयायी था। साल 2013 में एक दिन लड़की क्लास में बेहोश हो गई थी। आसाराम के एक साधक ने इसे भूत-प्रेत का साया बताकर कहा था कि इसका इलाज केवल आसाराम ही कर सकते हैं। इसके बाद 14 अगस्त, 2013 को नाबालिग को छिंदवाड़ा से जोधपुर के मनई आश्रम ले जाया गया। 15 अगस्त, 2013 की रात आसाराम ने नाबालिग से दुष्कर्म किया। इस घटना के पांच दिन बाद, 20 अगस्त, 2013 को पीड़िता ने दिल्ली पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई। उस समय दिल्ली के निर्भया दुष्कर्म मामले के बाद नए और कठोर कानून लागू हो चुके थे, जिसके तहत आसाराम पर सख्त धाराएं लगाई गईं। इस मामले में आसाराम को 31 अगस्त, 2013 को गिरफ्तार कर लिया गया था। 25 अप्रैल, 2018 को जोधपुर की अदालत ने इस मामले में दोषी आसाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तभी से आसाराम सेंट्रल जेल जोधपुर में बंद है। इतने साल में आसाराम पहली बार पैरोल पर बाहर आया है। बता दें कि पीड़िता के पिता ने शाहजहांपुर में जमीन आसाराम के ट्रस्ट के नाम की थी। उस पर निर्माण भी पीड़िता के पिता ने कराया था। हालांकि उन्होंने उस जमीन को वापस लेने की पूरी कोशिश की लेकिन कामयाबी नही मिल पाई। पीड़िता और उसके परिवार को बदनाम करने के लिए आसाराम के गुर्गों ने कई हथकंडे अपनाए। अलग अलग समय पर शहर में आसाराम की किताबों को बटवाया गया। जिसके माध्यम से उनको बेकसूर बताया जाता था।


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