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Vanakkam Poorvottar: Assam में बहुविवाह नहीं कर पाएंगे मुसलमान, Minority Schools मनमानी फीस भी नहीं बढ़ा पाएंगे

असम विधानसभा के शीतकालीन सत्र में बुधवार का दिन कई महत्वपूर्ण विधायी पहलों का साक्षी बना, जब राज्य सरकार ने शिक्षा और सामाजिक सुधारों से जुड़े दो महत्त्वपूर्ण बिल पेश किए। पहला है असम नॉन-गवर्नमेंट एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस (रेगुलेशन ऑफ फीस) (अमेंडमेंट) बिल 2025, जिसका उद्देश्य राज्य में अल्पसंख्यक-चलित निजी शैक्षणिक संस्थानों में मनमानी फीस वृद्धि पर अंकुश लगाना है। इस बिल के तहत 200 से अधिक अल्पसंख्यक संचालित स्कूल अब अनिवार्य फीस नियमन ढांचे के दायरे में आएंगे। दूसरा बड़ा कदम रहा असम प्रोहिबिशन ऑफ पॉलिगेमी बिल, 2025 की पेशकश। यह एक ऐतिहासिक पहल है जो बहुविवाह को पूरी तरह प्रतिबंधित कर उसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाती है। इसके अलावा, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने 1983 के नेल्ली नरसंहार समेत उस दौर की हिंसा से जुड़े न्यायमूर्ति टीयू मेहता और टीपी तिवारी आयोग की रिपोर्टें भी सदन में उपलब्ध कराईं, जिससे पारदर्शिता की दिशा में एक नया अध्याय जुड़ा।
देखा जाये तो असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा जिस गति और संकल्प के साथ सामाजिक-शैक्षिक सुधारों की जमीन तैयार कर रहे हैं, वह न केवल प्रशंसनीय है बल्कि देश के अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारतीय लोकतंत्र अक्सर इस आलोचना का सामना करता है कि सरकारें कठिन निर्णयों से बचती हैं, परंतु असम में एक अलग ही तस्वीर दिखती है। यहाँ सरकार संवेदनशील प्रश्नों पर निर्णय लेने से कतराती नहीं, बल्कि उन्हें प्रभावी साहस के साथ आगे बढ़ाती है।

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यह सर्वविदित है कि निजी शिक्षा संस्थानों में फीस वृद्धि अक्सर पारदर्शिता से परे होती है। अल्पसंख्यक-चलित स्कूल अब तक नियमन से बाहर थे, जिससे कई परिवारों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ता था। असम के शिक्षा मंत्री राणोज पेगू ने बताया है कि इन संस्थानों के पास “फीस फिक्सेशन सर्टिफिकेट” नहीं होने से वार्षिक फीस बिना किसी उचित कारण के बढ़ाई जा सकती थी। यहाँ सरकार का तर्क बिल्कुल वाजिब है कि शिक्षा, चाहे किसी भी समुदाय द्वारा संचालित क्यों न हो, यह एक सेवा है, जिसे पारदर्शिता और जवाबदेही से मुक्त नहीं रखा जा सकता। बिल में यह प्रावधान कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित निजी स्कूलों को शहरी स्कूलों की तुलना में 25% कम एडमिशन फीस लेनी होगी, ग्रामीण परिवारों के हित में एक साहसिक और न्यायपूर्ण कदम है। इससे यह संदेश भी जाता है कि सरकार केवल नियमन के लिए नियमन नहीं ला रही, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करने का लक्ष्य रखती है।
हालांकि ईसाई मिशनरी संस्थानों द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ भी अपनी जगह हैं क्योंकि वे स्वतंत्रता और गुणवत्ता की चिंता कर रहे हैं, परंतु यह मानना होगा कि पारदर्शिता किसी भी संस्थान का शत्रु नहीं, बल्कि उसकी विश्वसनीयता को मजबूत करने वाला स्तंभ है। जब राज्य के सभी निजी संस्थान एक समान नियमन से गुजरेंगे, तब शिक्षा व्यवस्था में अपेक्षित समानता और संतुलन आएगा।
इसके अलावा, असम प्रोहिबिशन ऑफ पॉलिगेमी बिल, 2025 एक ऐतिहासिक कानून बनने की क्षमता रखता है। भारत में जहाँ अधिकांश समुदायों में बहुविवाह प्रतिबंधित है, वहीं कुछ वैयक्तिक कानूनों की वजह से यह अब भी कुछ वर्गों में जारी है। इस कानून के तहत यदि कोई व्यक्ति वैध विवाह के रहते दूसरा विवाह करता है, तो उसे सात साल तक की जेल और भारी जुर्माने का प्रावधान है। यदि पूर्व विवाह को छुपाया गया है, तो सजा दस साल तक जा सकती है।
यह कदम केवल कानूनी सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक मर्यादा और लैंगिक सम्मान का भी संरक्षण है। बहुविवाह की प्रथा अक्सर महिलाओं के मानसिक-सामाजिक शोषण, आर्थिक असुरक्षा और टूटे हुए परिवारों की ओर ले जाती है। इस कानून में महिलाओं के लिए मुआवज़े की व्यवस्था जोड़कर सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल दंडात्मक कानून नहीं बना रही, बल्कि पीड़ितों के पुनर्वास को भी उतनी ही गंभीरता से देख रही है। विपक्ष का यह कहना कि यह “राजनीतिक कदम” है, तर्कहीन प्रतीत होता है। यदि महिलाओं की सुरक्षा, समानता और सम्मान को राजनीतिक कहना है, तो निस्संदेह यह राजनीति समाज के हित में सबसे आवश्यक है।
इसके अलावा, नेल्ली नरसंहार और 1983 की हिंसा से जुड़ी आयोग रिपोर्टों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना एक बड़ा संस्थागत सुधार है। दशकों तक यह रिपोर्टें सीमित पहुंच में रहीं, जबकि असम के सामाजिक-राजनीतिक घाव आज भी ताज़ा हैं। पारदर्शिता, चाहे कितनी भी असहज क्यों न हो, यह लोकतंत्र की आत्मा है। मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि इतिहास को छिपाकर नहीं, स्वीकार करके ही राज्य आगे बढ़ सकता है।
बहरहाल, असम आज उन राज्यों में अग्रणी खड़ा है जहाँ नेतृत्व संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेने का साहस दिखा रहा है। शिक्षा में समानता, महिलाओं के अधिकारों की मजबूती और इतिहास के प्रति जवाबदेही, ये तीनों कदम मिलकर एक ऐसे असम की नींव रख रहे हैं जो आधुनिक, न्यायपूर्ण और सामाजिक रूप से संतुलित है।


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