ब्रिटेन में बढ़ते करों के कारण स्टील टायकून लक्ष्मी मित्तल ने UK छोड़कर स्विट्ज़रलैंड में अपना टैक्स रेजिडेंसी स्थापित कर लिया है। UK के उच्च कर ढांचे और अप्रवासी धन पर लगने वाले भारी करों से असहमत मित्तल ने लंदन का महंगा आवास बेच दिया और स्विट्ज़रलैंड जाने का फैसला किया। ब्रिटेन के धनी वर्ग के कई लोग भी इसी प्रवृत्ति का अनुसरण कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लेबर सरकार की कर नीति और ‘नॉन-डॉम’ टैक्स नियमों का अंत UK में समृद्ध निवेशकों के पलायन का बड़ा कारण बन रहा है।
देखा जाये तो स्टील उद्योग के महाशिल्पी और विश्व के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में गिने जाने वाले लक्ष्मी मित्तल द्वारा ब्रिटेन छोड़कर स्विट्ज़रलैंड जाना सिर्फ एक व्यक्ति का टैक्स निर्णय नहीं है, यह ब्रिटेन की आर्थिक नीतियों, उसकी प्रतिस्पर्धा क्षमता और अमीर वर्ग के प्रति उसके दृष्टिकोण पर गहरा प्रश्नचिह्न है। लक्ष्मी मित्तल जैसे वैश्विक प्रभाव वाले उद्योगपति किसी देश में सिर्फ इसलिए रहते हैं कि वहाँ कर संरचना और नीति वातावरण उनके अनुकूल हो। उनका प्रस्थान इस बात का संकेत है कि ब्रिटेन खुद अपने सबसे मूल्यवान करदाताओं और निवेशकों को दूर धकेल रहा है।
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ब्रिटेन की लेबर सरकार ने जिस तरह से ‘नॉन-डॉम’ टैक्स स्टेटस को खत्म किया, जिससे विदेशी धन रखने वाले रेजिडेंटों को अतिरिक्त कर देना पड़ेगा, उसने उच्च-धन संपन्न प्रवासियों में बेचैनी पैदा की है। लक्ष्मी मित्तल के मामले में वह बेचैनी प्रतिक्रिया बनकर सामने आई है। एक ऐसे उद्योगपति, जिसने UK में अरबों पाउंड निवेश किए, हजारों नौकरियाँ पैदा कीं और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई—उसके दूसरे देश में टैक्स रेजिडेंसी चुनने का अर्थ है कि ब्रिटेन अब उच्च धन-संपन्न व्यक्तियों के लिए आकर्षक नहीं रहा। यह केवल टैक्स की बात नहीं; यह भरोसे का मसला है। कर नियमों में अनिश्चितता, टैक्स दरों में लगातार वृद्धि और राजनीतिक बयानबाज़ी—ये सब ब्रिटेन को निवेश के लिहाज़ से अस्थिर बनाते हैं।
लक्ष्मी मित्तल ने स्विट्ज़रलैंड को अपना टैक्स बेस बनाकर एक और संकेत दिया है— आर्थिक रूप से ज़िम्मेदार राष्ट्र हमेशा प्रतिभा और पूँजी को आकर्षित करते हैं। हम आपको बता दें कि स्विट्ज़रलैंड की नीति सरल है। कम व्यक्तिगत कर, स्थिर और पूर्वानुमेय नीतियाँ, व्यवसाय-हितैषी माहौल, टैक्स पारदर्शिता आदि बड़े कारण हैं जिससे सैकड़ों यूरोपीय अरबपति वहाँ बसते हैं। ब्रिटेन यदि प्रतिस्पर्धा बनाए रखना चाहता है, तो उसे यह स्वीकार करना होगा कि सिर्फ ऐतिहासिक प्रतिष्ठा और लंदन की चमक अब पूँजी को रोक नहीं पाएगी।
देखा जाये तो ब्रिटेन पिछले एक दशक से आर्थिक अनिश्चितता में डूबा हुआ है— ब्रेक्ज़िट, राजनीतिक अस्थिरता और अब भारी करों की मार। लेबर सरकार की नई नीतियों का संदेश बेहद स्पष्ट है, अमीर लोग अधिक कर दें। लेकिन यह नीति उल्टी दिशा में जा रही है। अमीर लोग कर नहीं दे रहे, वे देश छोड़ रहे हैं। जिन लोगों से ब्रिटेन उम्मीद करता है कि वे अर्थव्यवस्था को सहारा देंगे, वही लोग अब ब्रिटेन की कर नीति के कारण पलायन कर रहे हैं। यह वही गलती है जो फ्रांस ने की थी और उसका परिणाम यह हुआ कि हजारों करोड़ की पूँजी लंदन और ज्यूरिख में पहुँची। अब वही लंदन अपने ही निवेशकों को स्विट्ज़रलैंड भेज रहा है।
हम आपको बता दें कि लक्ष्मी मित्तल भारतीय मूल के हैं, लेकिन उनका वैश्विक निवेश यूरोप, अमेरिका और दक्षिण एशिया तक फैला है। उनका ब्रिटेन छोड़ना भारत के लिए एक संकेत है। आज की दुनिया में पूँजी वहीं जाएगी जहाँ टैक्स नीति निश्चित, स्थिर और व्यवसाय-हितैषी हो। भारत यदि पूँजी आकर्षित करना चाहता है, तो उसे ब्रिटेन की गलती से सीखना होगा—अत्यधिक कर और जटिल नीतियाँ निवेशकों को भागने पर मजबूर करती हैं।
देखा जाये तो उच्च-नेटवर्थ व्यक्तियों के जाने से आयकर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। लग्ज़री बाजार, रियल एस्टेट, दान और सामाजिक निवेश, उद्योग और रोजगार, सबकी रीढ़ टूटती है। वैसे लक्ष्मी मित्तल अकेले नहीं, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कई दर्जन अन्य धनाढ्य परिवार भी ब्रिटेन से पलायन की तैयारी कर रहे हैं। यह एक आर्थिक ट्रेंड बन चुका है, जो आने वाले वर्षों में ब्रिटेन की आर्थिक सेहत को कमजोर करेगा।
सवाल उठता है कि जो देश दशकों तक वैश्विक पूँजी का केंद्र रहा, क्या वह आज अपनी कर नीतियों के कारण पतन की ओर जा रहा है? देखा जाये तो यदि ब्रिटेन उच्च करों को ही आर्थिक न्याय मानता रहा, तो उसे समझना चाहिए कि आर्थिक न्याय तब ही संभव है जब अर्थव्यवस्था मजबूत हो। और मजबूत अर्थव्यवस्था वही बनाए रखते हैं— जो धन पैदा करते हैं।
बहरहाल, लक्ष्मी मित्तल का जाना सिर्फ एक उद्योगपति का टैक्स निर्णय नहीं, यह ब्रिटेन की गलत आर्थिक दिशा का प्रमाण है। उनका स्विट्ज़रलैंड जाना बताता है कि वैश्विक पूँजी किसी देश की भावनाओं या राजनीतिक विचारधारा से नहीं, बल्कि उसकी कर नीति और स्थिरता से बँधती है। यदि ब्रिटेन ने अपनी नीति नहीं बदली, तो आने वाले वर्षों में वह यूरोप का आर्थिक केंद्र नहीं, बल्कि आर्थिक पलायन का केंद्र बन जाएगा। और इतिहास गवाह है— जब पूँजी जाती है, तो उसके साथ विकास, नवाचार और समृद्धि भी चली जाती है।
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