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CISF अपनी पॉलिसी में ला रही बदलाव, ताकि ‘माननीयों’ को पहचानने में न हो चूक

अगले महीने एक दिसंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। दिल्ली में 10 नवंबर को लालकिले के सामने हुए टेरर अटैक के बाद संसद का यह पहला सत्र होगा। इसके लिए सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम किए जा रहे हैं। संसद भवन की सुरक्षा का दायित्व संभालने वाला केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) संसद की सुरक्षा में तैनात कर्मियों के लिए अपनी स्थानांतरण नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव लागू करने वाला है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि संसद की सुरक्षा में तैनात 2,500 कर्मियों के मौजूदा तीन साल के स्थानांतरण चक्र को अब चार या पाँच साल तक बढ़ा दिया जाएगा।

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खबर है कि संसद भवन की सुरक्षा संभालने वाली सीआईएसएफ माननीय सांसदों के लिए अपनी श्री ईयर ट्रांसफर-पोस्टिंग में बदलाव कर चार से पांच साल वाली ट्रांसफर-पोस्टिंग पॉलिसी ला रही है। यह पॉलिसी केवल संसद भवन के लिए होगी। एयरपोर्ट, मेट्रो या अन्य सेक्टर में तैनात सीआईएसएफ के जवानों के लिए नहीं। सूत्रों का कहना है कि शुरुआत में कुछ सांसदों ने सीआईएसएफ के जवानों पर उन्हें ना पहचानने जैसे आरोप लगाए, जिस कारण ऐसे बदलाव किए जा रहे हैं। इसके तहत सीआईएसएफ ने अपने इंटरनल सिस्टम में रिव्यू करके संसद भवन के लिए यह तय किया है कि यहां की सुरक्षा में लगे जवानों का तीन साल में नहीं, बल्कि चार से पांच साल में ट्रांसफर किया जाए। जबकि पॉलिसी के तहत सीआईएसएफ अपनी हर यूनिट में तैनात जवानों का अधिकतम तीन साल में एक यूनिट से दूसरी यूनिट में ट्रांसफर कर देती है।

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संसद भवन में सीआईएसएफ की वर्तमान तैनाती

मई 2024 में संसद भवन की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभालने के बाद से, सीआईएसएफ ने संसद भवन में 2,500 से ज़्यादा जवानों और कमांडो को तैनात किया है। इन जवानों को सांसदों के चेहरे याद रखने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है और वे संसद भवन के लेआउट और सुरक्षा प्रोटोकॉल से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं। इन प्रयासों के बावजूद, कई बार सांसदों ने शिकायत की है कि सुरक्षाकर्मी उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं, जिसके कारण स्थानांतरण नीति की समीक्षा और संशोधन किया गया है


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