रविवार को दिल्ली के इंडिया गेट पर वायु प्रदूषण के नाम पर इकट्ठा हुए प्रदर्शनकारियों ने अचानक तब माहौल बदल दिया जब उन्होंने कुख्यात माओवादी कमांडर हिडमा के समर्थन में खुलेआम नारे लगाने शुरू कर दिए। दिल्ली पुलिस पर हमला किया गया, पेपर स्प्रे चलाया गया और सड़कों को अवरुद्ध कर अराजकता फैलाई गई। यह दृश्य किसी शांतिपूर्ण नागरिक आंदोलन का नहीं था, बल्कि भारत के लोकतंत्र और सुरक्षा बलों को चुनौती देने वाली संगठित साजिश का प्रतीक था। और इसी शर्मनाक हरकत के जवाब में मंगलवार को उसी इंडिया गेट पर दिल्ली पुलिस के समर्थन में आम नागरिक एकत्र हुए— हाथों में तख्तियां और दिलों में क्रोध लेकर। जहाँ अर्बन नक्सलियों ने नारा लगाया था “हर घर से हिडमा निकलेगा”, वहीं राष्ट्रवादी प्रदर्शनकारियों ने गरजकर जवाब दिया— “जिस घर से हिडमा निकलेगा, उस घर में घुसकर मारेंगे!” यह सिर्फ नारे नहीं थे, बल्कि भारत के धैर्य, उसकी सहनशीलता और उसके आत्मसम्मान की सीधी प्रतिक्रिया थी।
दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब अर्बन नक्सल विचारधारा ने किसी लोक-हित से जुड़े मुद्दे की आड़ लेकर समाज में ज़हर घोलने की कोशिश की हो। वायु प्रदूषण, किसानों की समस्या, महिला सुरक्षा, हर मुद्दे का इस्तेमाल इन तत्वों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के हथियार की तरह किया है। रविवार का प्रदर्शन भी अपवाद नहीं था। “साइंटिस्ट्स फॉर सोसाइटी” जैसे मासूम-से दिखने वाले संगठन हों या “BSCEM” और “हिमखंड” जैसे छद्म समूह, ये सभी उस अर्बन नक्सली पारिस्थितिकी के अंग हैं जो देश की हर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दूषित करने में लगी है।
देखा जाये तो आजकल जिहादी और नक्सली “सोशल एक्टिविस्ट” का मुखौटा लगाकर अपने कृत्यों को अंजाम देने लगे हैं। हवा साफ करने का आंदोलन था, पर उद्देश्य था हिडमा को महिमामंडित करना! यह वही हिडमा है जिसने दर्जनों जवानों की हत्या की, जो सुकमा, दंतेवाड़ा, बस्तर समेत कई क्षेत्रों में रक्तरंजित घटनाओं का मुख्य साजिशकर्ता रहा, और जिसे हाल ही में आंध्र प्रदेश में सुरक्षाबलों ने एक साहसी मुठभेड़ में ढेर कर दिया। उसके समर्थन में नारे लगाना केवल कानून के खिलाफ नहीं, बल्कि भारतीय संविधान, भारतीय सुरक्षा बलों और भारत के अस्तित्व के खिलाफ खड़ा होना है।
रविवार को जो नारे लगे, वे केवल एक अपराध नहीं, एक विकृत और देशविरोधी मानसिकता का खुला प्रदर्शन था। यह मानसिकता भारत को भीतर से तोड़ने की कोशिश करती है। यही कारण है कि देश के नागरिक जब मंगलवार को इंडिया गेट पर आए तो उनके हाथों में तख्तियां नहीं, बल्कि आक्रोश और प्रतिरोध का संकल्प था— “हम दिल्ली पुलिस के साथ हैं।” ”जिस घर से हिडमा निकलेगा उस घर में घुसकर मारेंगे।” यह नारे सरकार के समर्थन के लिए नहीं, राष्ट्र की सुरक्षा और सम्मान के लिए थे।
उधर, दिल्ली पुलिस ने 22 लोगों को गिरफ्तार कर यह स्पष्ट कर दिया कि कानून इन तत्वों की अराजकता के आगे नहीं झुकेगा। पेपर स्प्रे के साथ पुलिस पर हमला करने की घटना बताती है कि यह आंदोलन योजनाबद्ध था और नक्सल समर्थक अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। यह समय है जब इस संगठित अर्बन नक्सली गठजोड़ को कड़ी से कड़ी सजा मिले ताकि भविष्य में कोई भी देशद्रोही तत्व “प्रदूषण” या किसी भी सामाजिक मुद्दे की आड़ में भारत-विरोधी गतिविधियाँ न कर सके।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरे प्रकरण ने यह दिखा दिया कि भारत का आम नागरिक अब केवल दर्शक बनकर बैठने वाला नहीं। वह अब हर शहर, हर चौराहे और हर मंच पर राष्ट्र-विरोधी विचारधारा को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। अर्बन नक्सलियों का नारा— “हर घर से हिडमा निकलेगा”, भारत को डराने की कोशिश थी। और राष्ट्रवादी जवाब, “जिस घर से हिडमा निकलेगा, उस घर में घुसकर मारेंगे”, ”दिल्ली पुलिस तुम लट्ठ बजाओ हम तुम्हारे साथ हैं” भारत की चेतावनी है।
यह चेतावनी सिर्फ नक्सलियों को नहीं, उन छुटभैये नेताओं, तथाकथित “सोशल एक्टिविस्टों”, विदेशी फंडिंग पर पलने वाले संगठनों और विश्वविद्यालयों में बैठे छद्म-वैचारिक गैंगों को भी है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके देश-विरोधी एजेंडा चलाते हैं। ऐसे लोगों को समझना होगा कि भारत सहनशील है पर निर्बल नहीं। भारत शांतिप्रिय है पर कायर नहीं। भारत लोकतांत्रिक है, पर देशद्रोह की अनुमति देने वाला राष्ट्र नहीं। इंडिया गेट की दो तस्वीरें जिसमें एक तरफ हिडमा समर्थक और दूसरी तरफ राष्ट्रवादी नागरिक हैं, यह स्पष्ट संदेश देती हैं कि यह लड़ाई अब विचारधारा की नहीं, राष्ट्र की आत्मा की है। इस लड़ाई में जीत हमेशा उसी की होगी जो भारत के साथ खड़ा है।
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