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सीवान में जयंती और स्थापना दिवस पर खानापूर्ति का आरोप:अंधेरे में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का पैतृक आवास, प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल

बुधवार का दिन सीवान के लिए बेहद खास था। एक ओर देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 141वीं जयंती, वहीं दूसरी ओर सीवान के स्थापना दिवस का 53वां साल। इन दोनों महत्वपूर्ण अवसरों को लेकर जिलेवासियों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा था, लेकिन जिला प्रशासन की लापरवाह और खानापूर्ति जैसी तैयारी ने लोगों के चेहरे से उत्साह गायब कर दिया। कार्यक्रमों की जो भव्यता और गंभीरता होनी चाहिए थी, उसकी जगह अव्यवस्था, अंधेरा और उपेक्षा ने लोगों में नाराजगी भर दी। सबसे बड़ा सवाल तब उठा, जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का पैतृक आवास जो जीरादेई में स्थित है, वह जयंती के दिन भी अंधेरे में डूबा रहा। स्थानीय लोगों ने बताया कि हर साल की तरह इस वर्ष भी उम्मीद थी कि प्रशासन इस ऐतिहासिक स्थल को रोशनी व सजावट से सजाएगा, लेकिन यहां तो खुद जिला पदाधिकारी डॉ. आदित्य प्रकाश और SP बिक्रम सिहाग अंधेरे में ही घूमते नजर आए। ‘समन्वय स्थापित कर जल्द कार्य कराया जाएगा’ जब उनसे सवाल पूछा गया, तो उन्होंने पुरातत्व विभाग का हवाला देकर जिम्मेदारी टाल दी और कहा कि “समन्वय स्थापित कर जल्द कार्य कराया जाएगा।” लेकिन सवाल यह उठता है कि जब उन्हें मालूम था कि बुधवार को जयंती है, तो एक दिन पहले भी इस स्थल को सजाने में क्या बाधा थी? स्थानीय लोगों का स्पष्ट कहना है कि जयंती के दिन भी राजेन्द्र बाबू उपेक्षित नजर आए। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से लोगों में नाराजगी जिला प्रशासन पर सवाल यहीं नहीं थमे। जयंती पर किसी बड़े जनप्रतिनिधि का पहुंचना भी लोगों के लिए सुकूनदायी नहीं रहा। ना तो स्थानीय विधायक पहुंचे, और ना ही सदर विधानसभा से विधायक और स्वास्थ्य सह विधि मंत्री मंगल पांडेय कार्यक्रम में दिखाई दिए। लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों की इस उदासीनता ने उनकी नाराजगी को और बढ़ा दिया। 53वें स्थापना दिवस पर गांधी मैदान में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया उधर, जिला के 53वें स्थापना दिवस को लेकर शहर के गांधी मैदान में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया था, लेकिन यहाँ भी तस्वीर कुछ खास नहीं रही। अन्य वर्षों की तरह न तो भव्य पंडाल बनाया गया था, और ना ही बैठने की समुचित व्यवस्था देखने को मिली। पंडाल में सजावट का नामोनिशान तक नहीं था। भीड़ जब स्थल पर पहुंची तो लोग फर्श पर बैठने को मजबूर हो गए। बाद में जब DM द्वारा कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया और लोगों की भीड़ जमीन पर बैठी दिखी, तब जाकर कुछ कुर्सियां मंगाई गईं। इस कुव्यवस्था ने प्रशासन की तैयारी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। ज्यादातर स्टॉलों पर केवल पैम्फलेट के अलावा कुछ नहीं था स्थापना दिवस पर लगभग 25 विभागों की योजनाओं की जानकारी देने के लिए स्टॉल लगाए गए थे। लेकिन ज्यादातर स्टॉलों पर केवल पैम्फलेट के अलावा कुछ नहीं था। कई स्टॉल पर उपस्थित कर्मियों की कमी साफ दिख रही थी। और तो और, जैसे ही जिला पदाधिकारी मैदान से निकले, वैसे ही विभागों ने अपने स्टॉल समेटने शुरू कर दिए। दर्शकों और आम नागरिकों ने कहा कि “अगर जनता को जानकारी देने के लिए स्टॉल लगाए गए थे, तो उद्घाटन के बाद अधिकारियों को वहीं रुककर लोगों की शंकाओं का समाधान करना चाहिए था, लेकिन सभी ने खानापूर्ति कर निकल लिया।” ‘दोनों कार्यक्रम मात्र औपचारिकता बनकर रह गए’ इन घटनाओं के बाद जिलेवासियों का कहना है कि चाहे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती हो या जिला स्थापना दिवस, दोनों कार्यक्रम मात्र औपचारिकता बनकर रह गए। प्रशासन ने इन ऐतिहासिक अवसरों को सम्मान देने की बजाय “निबटाने” का काम किया, जिससे लोग मायूस और नाराज हैं। जिले के लिए यह दोहरा उत्सव का दिन था, लेकिन प्रशासन की उदासीनता ने इसे फीका कर दिया। अब लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले वर्षों में जिला प्रशासन इन कार्यक्रमों को केवल खानापूर्ति नहीं, बल्कि पूरे सम्मान और व्यवस्था के साथ मनाएगा, ताकि जिले का गौरव बढ़े और ऐसे अवसर सिर्फ कैलेंडर की तारीख बनकर न रह जाएं।


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