सीवान में समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आने वाले आईसीडीएस कार्यालय में इन दिनों अधिकारियों की मनमानी के कारण नियम-कानूनों की अनदेखी हो रही है। जिला प्रोग्राम पदाधिकारी तरणि कुमारी पर आरोप है कि वे विभागीय दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर प्रखंड कार्यालयों का संचालन करा रही हैं, जिससे जिले के हजारों लाभार्थियों को मिलने वाली सुविधाएं बाधित हो गई हैं। दरअसल, समाज कल्याण विभाग ने जून 2025 में जिले के कई बाल विकास परियोजना पदाधिकारियों (सीडीपीओ) का तबादला और पदस्थापन किया था। स्थानांतरण आदेश जारी होने के बाद सीवान जिले के जिन प्रखंडों में नए पदाधिकारी भेजे गए, उन्होंने तो योगदान दे दिया, लेकिन सीवान से स्थानांतरित किए गए सीडीपीओ को अब तक विरमित (रिलीव) नहीं किया गया। पदाधिकारी के बिना संचालित हो रही परियोजनाएं विभागीय दबाव के बीच गोरेयाकोठी और मैरवा परियोजना के सीडीपीओ ने अक्टूबर 2025 में अपने नए जिले में योगदान तो दे दिया, लेकिन यहां किसी को प्रभार दिए बिना पद खाली छोड़ दिए गए। परिणामस्वरूप अक्टूबर 2025 से मैरवा, गुठनी और गोरेयाकोठी परियोजनाएं पूरी तरह से बिना पदाधिकारी के संचालित हो रही हैं। इन महत्वपूर्ण पदों के खाली रहने से 0 से 6 वर्ष के बच्चों तथा गर्भवती व धात्री महिलाओं को मिलने वाला पोषाहार, टेक होम राशन और अन्य लाभ महीनों से बाधित है। स्थानीय लाभार्थियों को लगातार परेशानी झेलनी पड़ रही है, वहीं कार्यालय में अधिकारी के अभाव में कर्मियों पर कोई निगरानी नहीं रहने के कारण मनमानी चरम पर है। प्रोग्राम पदाधिकारी बोली- फाइल प्रोसेस में है इस गंभीर लापरवाही को लेकर जब जिला प्रोग्राम पदाधिकारी तरणि कुमारी से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि “फाइल प्रोसेस में है, आदेश मिलते ही पदस्थापन हो जाएगा।” हालांकि, पद महीनों तक खाली रहने के कारण व्यवस्था क्यों ठप है, इस पर उन्होंने जिला पदाधिकारी द्वारा फाइल पर आदेश नहीं करने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया। यह सीवान आईसीडीएस कार्यालय में पहला विवाद नहीं है। विभागीय नियमों के उल्लंघन को लेकर पहले भी तरणि कुमारी को डीपीओ के पद पर पदोन्नति के कुछ दिनों बाद ही निलंबित किया गया था। इसके बावजूद पुनः पदस्थापना के बाद भी उन पर लगातार मनमानी, नियम उल्लंघन और पदस्थापना प्रक्रिया में देरी कराने के आरोप लग रहे हैं। लाभुकों और जनप्रतिनिधियों की मांग है कि जिले में लंबित पदस्थापन प्रक्रिया को अविलंब पूरा किया जाए तथा विभागीय अनियमितताओं की उच्चस्तरीय जांच हो, ताकि बच्चों और महिलाओं के हित में चल रही योजनाएँ सुचारू रूप से पुनः शुरू की जा सकें।
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