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सम्राट को गृहमंत्री बनाने के लिए कैसे माने नीतीश:नेपाल हिंसा के बाद लिखी स्क्रिप्ट, शाह के साथ 2 बैठक; क्राइम कंट्रोल पर सबसे लंबी बात

बिहार की नई सरकार में सबसे बड़ा राजनीतिक मैसेज किसी मंत्रालय ने दिया है तो वो है गृह विभाग। ये विभाग 20 साल से नीतीश कुमार के पास रहा और अब सम्राट चौधरी को सौंपा गया है। ये सिर्फ विभाग की अदला-बदली भर नहीं है, बिहार में पॉवर ट्रांसफर की तरफ इशारा भी है। यह पॉवर ट्रांसफर अचानक नहीं हुआ है, लंबे समय से बीजेपी के भीतर यह मांग उठ रही थी कि राज्य में कानून व्यवस्था की जवाबदेही अब मुख्यमंत्री से हटकर पार्टी के हाथ आए। ताकि, यहां यूपी की तरह एक रोल मॉडल लागू किया जा सके। इसके लिए कई बार बिहार में योगी के पोस्टर तक लगाए गए। बड़ी बात है कि पॉवर का यह ट्रांसफर अचानक नहीं हुआ है। इसकी पटकथा दिल्ली में नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के साथ ही लिख दी गई थी। सितंबर 2025 में नेपाल में Gen-Z आंदोलन, सीमा पार तस्करी, चिकन नेक सुरक्षा, कट्टरपंथी नेटवर्क, अवैध हथियार कारोबार की संवेदनशीलता के चलते ये फैसला लिया गया। शाह से नीतीश की दो मुलाकात के बाद इस पर अंतिम मुहर लग गई। बिहार में सुरक्षा के किन मुद्दों पर नीतीश माने, किस तरह शाह ने उन्हें पूरी स्ट्रेटजी बताई और किस तरह का एक्शन आगे बीजेपी प्लान कर रही है…पढ़िए एक्सक्लूसिव रिपोर्ट अब जानिए कैसे हुआ यह फैसला…अमित शाह की बैठकों ने बदला गेम सूत्र बताते हैं कि यह फैसला 48 घंटे में नहीं लिया गया। बल्कि यह दो महीने की रणनीति का परिणाम है। चुनाव की घोषणा से पहले दिल्ली में सितंबर में गृह मंत्री अमित शाह, नीतीश कुमार और बीजेपी टॉप लीडरशिप के बीच महत्वपूर्ण बैठक हुई। बैठक में बिहार में बढ़ते साइबर-क्राइम, हथियार तस्करी और संगठित अपराध पर विस्तृत चर्चा हुई। इसमें रिपोर्ट दी गई कि 60% बड़े गैंग बॉर्डर इलाकों से चल रहे हैं। बैठक में यह भी माना गया कि बिहार का अगला राजनीतिक नैरेटिव विकास नहीं—सुरक्षा और शासन होने वाला है। ऐसे में बिहार की कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए त्वरित निर्णय लेने होंगे। इसके लिए जवाबदेह चेहरा भी तय करना होगा। इसी बैठक में सम्राट चौधरी को जवाब देह चेहरे के रूप में सामने लाया गया। क्योंकि वह बिहार में हार्ड लाइनर के रूप में जाने जाते हैं और लगातार बिहार में यूपी के योगी मॉडल को लागू करने की बात कहते रहे हैं। उन्होंने भी योगी की स्टाइल में ही डायलॉग दिया था-अपराधी या तो जेल में होंगे या कब्र में। इसके बाद ही नीतीश ने गृह मंत्रालय देने की सहमति जता दी। हालांकि आईपीएस के ट्रांसफर की पॉवर उन्होंने खुद अपने पास ही रखी है। बिहार में लॉ एंड ऑर्डर, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का दिया गया हवाला…4 पॉइंट में समझिए…
1. नेपाल में Gen-Z आंदोलन और बिहार की सीमा बिहार की 729 किमी लंबी खुली नेपाल सीमा दिल्ली के लिए हमेशा ‘सॉफ्ट ज़ोन’ रही है। 8-9 सितंबर 2025 की रात नेपाल पुलिस की फायरिंग में 21 युवाओं की मौत हो गई थी। इसके बाद नेपाल में Gen-Z का बेरोजगारी को लेकर आंदोलन उग्र हो गया था। पुलिस थानों, मंत्री आवासों और प्रशासनिक भवनों पर हमले हुए। भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने आशंका जताई कि इस अस्थिरता का असर सबसे पहले बिहार के सीमावर्ती जिलों सीतामढ़ी, अररिया, किशनगंज, मधुबनी पर पड़ सकता है। पहले भी नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता से बिहार में फेक करेंसी, ड्रग सप्लाई, मानव तस्करी और हथियार का नेटवर्क बढ़ता रहा है। इंटेलिजेंस ब्यूरो ने सितंबर की रिपोर्ट में चेतावनी दी कि अगले 18 महीनों में बिहार-नेपाल सीमा सबसे संवेदनशील रहेगी। इसलिए केंद्र एक आक्रामक, तेज-फैसला लेने वाला गृह मंत्री चाहता था, जो पुलिस मशीनरी को स्पीड पर चलाए। केंद्रीय गृह मंत्री से लगातार संपर्क में रहे और दिल्ली में होने वाली बैठकें अटेंड कर सके। दरअसल, नीतीश गृहमंत्री की बैठक में दिल्ली नहीं जाते हैं, वे प्रदेश से डीजीपी को ही भेजते रहे हैं। नेपाल से जुड़े इस मुद्दे में नीतीश संवेदनशीलता को जानते हैं इसलिए वे राजी हो गए।
2. चिकन नेक: बांग्लादेश और पूर्वी भारत बिहार में राष्ट्रीय सुरक्षा का बफर स्टेट सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसे चिकन नेक कहा जाता है। भारत के पूर्वोत्तर को देश से जोड़ने वाला 22 किमी का संकरा इलाका है। अगर भारत की सुरक्षा का नक्शा बनाएं तो बिहार उसका बैक सपोर्ट है। 2023–24 में बांग्लादेश से धार्मिक कट्टरपंथी संगठनों, नकली नोट रैकेट और रोहिंग्या घुसपैठ के मामले बढ़े। और ये घुसपैठ बिहार के रास्ते ही हो रही थी। केंद्र को राज्यों के सहयोग की जरूरत थी, जहां गृह विभाग सब कुछ तय करता है। राजनीतिक रूप से भी बीजेपी यह चाहती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का क्रेडिट उसे अकेले मिले। सम्राट चौधरी राष्ट्रवाद के चेहरे हैं, उनके भाषणों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, सुरक्षा नियमित विषय रहते हैं। उनके आने के बाद बिहार ATS, STF और केंद्रीय एजेंसियों के समन्वय को तेज किया जा सकता है। यही वजह है कि बीजेपी समर्थक नेताओं ने कहा, बिहार अब सिर्फ राज्य नहीं—नेशनल सिक्योरिटी बेल्ट बन गया है। अब बीजेपी इसे सीधे सेंट्रल से हैंडल करेगी। 3. बिहार नं-1 लॉ-एंड-ऑर्डर स्टेट बनाने का लक्ष्य बीजेपी जानती है कि उद्योग, FDI और स्टार्टअप तब तक नहीं आएंगे जब तक अपराध का ग्राफ नहीं गिरता। 2022 NCRB के अनुसार बिहार में क्राइम पेंडेंसी रेट 88% है। सम्राट चौधरी कई बार कैबिनेट बैठक में कह चुके हैं पुलिस काम करेगी, बहाने नहीं। उनकी पॉलिटिक्स सीधी है, या तो अपराध कम करो या हटो। एनसीआरबी के अनुसार बिहार हिंसक अपराधों में आगे है। यह हत्या व हत्या-प्रयास में लगातार देश के शीर्ष 5 राज्यों में गिना जाता है। बिहार में अपराध का स्वरूप ज़्यादा गंभीर है, यही उसकी सबसे बड़ी चुनौती है। इस इमेज को खत्म करने के लिए सम्राट चौधरी को बड़ा चेहरा बनाया गया है। नीतीश ने भी सहमति जताई और लक्ष्य यह रखा गया कि लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने के मामले बिहार को नंबर वन स्टेट बनाया जाए ताकि 2029 तक इसका मैसेज दिया जा सके। 4. सम्राट ‘हार्ड-लाइनर’ हैं इसी बात पर नीतीश को मनाया गया नीतीश कुमार प्रशासनिक, संयमित और संस्थागत शासन चलाते हैं। बीजेपी ने यह तर्क दिया कि अब सोशल मीडिया ट्रोल-ड्रिवन नैरेटिव और हिंसक अपराधों से निपटने के लिए अब ‘हार्ड-लाइन’ छवि वाली पॉलिटिक्स की जरूरत। बीजेपी ने यही प्रस्ताव नीतीश के सामने रखा। इसके लिए सम्राट की वर्किंग के उदाहरण भी दिए गए, जिसमें उन्होंने पंचायत राज मंत्री पद पर 4 महीने में 263 भ्रष्टाचार के आरोपी सस्पेंड किए। प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए पोस्टर वॉर, सड़क आंदोलन, पगड़ी राजनीति से बीजेपी को आक्रामक बनाया। डिप्टी सीएम रहते हुए फील्ड-इंस्पेक्शन, नाइट-पेट्रोलिंग की। इस हिसाब से बीजेपी ने सम्राट को एक्टिव शासक के रूप में प्रजेंट किया। जिस पर नीतीश को भी यह समझ में आया कि उम्र के हिसाब से अब हार्ड पॉलिटिक्स उन पर सूट भी नहीं करेगी। इसीलिए नीतीश विभाग छोड़ने को तैयार हो गए। हालांकि इसमें भी नीतीश ने बुद्धिमानी कि अगर लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ा तो अब जवाबदेह बीजेपी होगी। जबकि आईपीएस के ट्रांसफर की जिम्मेदारी उन्होंने खुद अपने पास रखी। इससे यह तो स्प्ष्ट हो गया कि नीतीश भले ही गृह विभाग दे दिया है लेकिन बिना उनकी मर्जी से सम्राट बड़े फैसले नहीं ले पाएंगे। रेगुलर लॉ एंड ऑर्डर में वह आक्रामक फैसले ले सकते हैं।


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