मधुबनी के मिथिला चित्रकला संस्थान में दो दिवसीय विद्यापति कला उत्सव का शुक्रवार को समापन हो गया। यह उत्सव महाकवि विद्यापति की स्मृति और मिथिला की सांस्कृतिक चेतना को समर्पित था। कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक मंगलाचरण नृत्य से हुई, जिसमें संस्थान की छात्राओं बिन्दी और मेधा झा ने प्रस्तुति दी। उत्सव के दौरान हुई परिचर्चा में डॉ. विभा कुमारी ने महाकवि विद्यापति के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विद्यापति स्त्री-मन, लोकजीवन और समाज की भावनात्मक संरचना को गहराई से समझते थे। उन्होंने 15वीं शताब्दी में ही सती प्रथा जैसे सामाजिक मुद्दों पर रचनाएँ लिखकर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया था। डॉ. कैलाश कुमार मिश्र ने बताया कि कवि कोकिल विद्यापति ने लगभग सात राजाओं के साथ काम किया। उन्होंने अपने पिता गणपति ठाकुर से प्रेरित होकर पदावलियों की परंपरा को आगे बढ़ाया। डॉ. मिश्र ने यह भी उल्लेख किया कि सती प्रथा उन्मूलन का श्रेय अक्सर राजा राममोहन राय को दिया जाता है, लेकिन विद्यापति ने 14वीं शताब्दी के अंत में ही राजा गद्द सिंह की रानी विश्वास देवी को सती होने से रोककर इस कुप्रथा पर प्रभावी प्रहार किया था। कार्यक्रम में सागर सिंह और उनकी टीम ने अभिनव जयदेव विद्यापति नाटक का मंचन किया। दूरदर्शन दिल्ली से संबद्ध कलाकार सौम्या मिश्रा ने भी अपनी प्रस्तुति दी। संस्थान के छात्रों ने विद्यापति की कृतियों पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। विद्यापति पर आधारित चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं को समारोह में सम्मानित किया गया। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी प्रदान किए गए। मिथिला चित्रकला संस्थान के उपनिदेशक नीतीश कुमार ने उत्सव की सफलता पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि विद्यापति कला उत्सव मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने के साथ-साथ नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का भी एक सशक्त प्रयास है। कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए आचार्य पद्मश्री दुलारी देवी, पद्मश्री शिवन पासवान, डॉ. रानी झा, संजय कुमार जायसवाल, प्रतीक प्रभाकर, वक्ताओं और कलाकारों का आभार व्यक्त किया गया।
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