मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ विपक्षी सांसदों के महाभियोग नोटिस का देश के 56 पूर्व जजों ने विरोध किया है। पूर्व जजों ने खुले पत्र में कहा कि यह कदम जजों पर राजनीतिक-वैचारिक दबाव बनाने और डराने की कोशिश है। पूर्व जजों ने कहा कि सांसदों के आरोप मान भी लिए जाएं, तब भी किसी जज को उसके विचारों या फैसलों के आधार पर महाभियोग की धमकी देना न्यायपालिका की आजादी पर हमला है। उन्होंने कहा कि आज एक जज को निशाना बनाया गया तो कल पूरी न्यायपालिका पर असर पड़ सकता है। उन्होंने याद दिलाया कि इमरजेंसी में भी कुछ जज राजनीतिक असहमति के कारण निशाने पर आए थे, लेकिन न्यायपालिका ने तब भी स्वतंत्रता बनाए रखने की लड़ाई लड़ी थी। जजों को सिर्फ संविधान और अपनी शपथ के अनुसार काम करना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक दबाव में। जस्टिस स्वामीनाथन ने 4 दिसंबर को मंदिर और दरगाह से जुड़े मामले में हिंदुओं के पक्ष में फैसला दिया था। इसके बाद 9 दिसंबर को प्रियंका गांधी वाड्रा समेत इंडिया गठबंधन के 100 से ज्यादा सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। जजों के साझा बयान में कहा गया कि लेटर महाभियोग न्यायपालिका की ईमानदारी की रक्षा करने के लिए है, न कि जजों पर दबाव डालने या बदला लेने के लिए इस्तेमाल करने। पूर्व जजों ने सभी संस्थानों, सांसदों, वकीलों और आम लोगों से अपील की कि वे इस कदम का विरोध करें और इसे आगे न बढ़ने दें। पूर्व जजों ने यह भी बताया कि हाल के वर्षों में कई पूर्व चीफ जस्टिस जैसे दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एसए बोबडे और डीवाई चंद्रचूड़ के साथ-साथ मौजूदा CJI जस्टिस सूर्यकांत को भी उस समय निशाने पर लिया गया जब उनके फैसले कुछ राजनीतिक समूहों को असहज लगे। उनके अनुसार यह प्रवृत्ति महाभियोग और सार्वजनिक आलोचना को दबाव के औजार की तरह उपयोग करने की ओर इशारा करती है, जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। मंदिर के फैसले से शुरू हुआ विवाद मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने एक राइट-विंग एक्टिविस्ट की याचिका पर 4 दिसंबर को सुनवाई करते हुए एक मंदिर और दरगाह से जुड़े मामले में हिंदुओं के पक्ष में फैसला दिया था। जस्टिस स्वामीनाथन ने सुब्रमनिया स्वामी मंदिर के अधिकारियों को दूसरे पक्ष के विरोध के बावजूद दीपथून पर शाम 6 बजे तक दीपक जलाने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद तमिलनाडु सरकार काफी भड़क गई थी और आदेश मानने से ही इनकार कर दिया। इसी के बाद से ही विरोध शुरू हुआ था। जस्टिस स्वामीनाथन के आदेश को तमिलनाडु सरकार ने लागू करने से मना कर दिया। सरकार ने इसके पीछे कानून-व्यवस्था बिगड़ने का हवाला दिया था। इसी को आधार बनाकर महाभियोग लाने का तर्क दिया गया। अपने फैसले में जज ने स्पष्ट कहा था कि दीपथून पर दीप जलाने से दरगाह या मुसलमानों के अधिकारों पर कोई असर नहीं होगा। जानें पूरा विवाद तिरुपरनकुंद्रम तमिलनाडु राज्य के मदुरै शहर से 10 किमी दूर दक्षिण में स्थित भगवान मुरुगन के छ: निवास स्थानों में से एक है। थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित सुब्रमण्यस्वामी मंदिर का इतिहास छठी शताब्दी तक जाता है। यहां की ऊपरी चोटी पर लंबे समय से कार्तिगई दीपम जलाया जाता जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजी शासन के समय इस पर कुछ लोगों ने कब्जा करने की कोशिश की थी। 17वीं शताब्दी में सिकंदर बधूषा दरगाह का निर्माण हो गया। इसके बाद से ही विवाद शुरू हो गया।
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