2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल के लोगों के लिए एक आम रात की तरह ही शुरू हुई थी। सभी लोग सोने गए थे, अगली सुबह की रोजमर्रा की जिंदगी सोचते हुए… लेकिन बहुतों के लिए वह सुबह कभी नहीं आई।
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