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भारत लौटी सुनाली बोली- बांग्लादेश में दो महीने भूखे-प्यासे भटके:BSF ने आंख पर पट्टी बांधकर भेजा, बोले- पीछे मुड़े तो गोली मार देंगे

यदि पुलिस घर आए और कहे कि आप बांग्लादेशी हैं। सामान समेटिए, आपको बांग्लादेश डिपोर्ट कर रहे हैं। अपने बचाव में आप आधार, राशन कार्ड दिखाएं, लेकिन पुलिस एक न सुने और आंख पर पट्टी बांधकर सीधे बांग्लादेश बॉर्डर भेज दे। ऐसा फरमान किसी की भी जिंदगी को पलभर में उजाड़ देगा। 26 साल की सुनाली खातून की जिंदगी ऐसे ही एक फरमान ने नरक बना दी थी। गर्भवती खातून के साथ उसके 8 साल के बेटे ने भी इस नरक को भोगा। शुक्र है कि 3 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय आधार पर सुनाली को भारत लाने का आदेश दिया। सुनाली अब पश्चिम बंगाल में हैं। कुपोषण का इलाज करा रही हैं। इनकी लड़ाई लड़ रहे पश्चिम बंगाल माइग्रेट बोर्ड के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम और सुप्रीम कोर्ट में वकील संजय हेगड़े ने भास्कर को सुनाली की पूरी कहानी बताई। BSF ने बांग्लादेश में धकेला, हम वहां दो महीने भूखे-प्यासे भटके पुलिस ने सुनाली, पति दानिश, बेटे साबिर, स्वीटी बीबी और उनके दो बेटों को 18 जून को दिल्ली के रोहिणी इलाके से उठाया था। पुलिस उस वक्त गृह मंत्रालय के आदेश पर बांग्लादेशियों को पकड़ रही थी। लेकिन, पुलिस ने मंत्रालय का सर्कुलर ठीक से पढ़ा ही नहीं था। सुनाली कबाड़ बीनती है। उसने पुलिस को आधार, वोटर आईडी दिखाए। 1952 के जमीन के कागजात और साबिर का जन्म प्रमाण पत्र दिखाया था। लेकिन, किसी ने गुहार नहीं सुनी। पुलिस ने सुनाली, साबिर, स्वीटी बीबी और तीन अन्य सदस्यों को गृह मंत्रालय की टीम को सौंपा था। यहां से बीएसएफ की टीम सभी को प्लेन से पश्चिम बंगाल में मालदा जिले की महादी सीमा चौकी पर ले गई थी। बीएसएफ की एक टीम ने रात के अंधेरे में इनकी आंखों पर पट्टी बांधी और बांग्लादेश बॉर्डर की ओर धकेल दिया था। चेतावनी दी कि पीछे मुड़े तो गोली मार देंगे। सुनाली बेटे और गर्भ को लेकर बांग्लादेश में शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेल रही थी। फिर बांग्लादेश पुलिस ने इन्हें भारतीय घुसपैठिया कहकर पासपोर्ट एक्ट और फॉरेनर्स एक्ट में गिरफ्तार किया, क्योंकि उनके पास भारतीय दस्तावेज थे। इन्हें चापैनवाबगंज की जिला जेल भेज दिया गया, जहां दो वक्त का खाना भी नहीं मिला। इससे सुनाली कुपोषण का शिकार हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने वापस लाने का आदेश दिया था सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा था कि वह नौ महीने की गर्भवती सुनाली खातून और उसके 8 साल के बच्चे को बांग्लादेश से वापस लाए। अदालत ने कहा था कि कानून को कभी-कभी इंसानियत के आगे झुकना होता है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था- सरकार सोनाली और उनके बेटे को भारत आने देगी। उन्होंने साफ किया कि यह अनुमति मानवीय आधार पर होगी । इससे नागरिकता से जुड़े मुद्दों पर सरकार का रुख प्रभावित नहीं होगा। टीएमसी ने इसे बड़ी जीत बताया टीएमसी ने इसे गरीब परिवार के लिए बड़ी जीत बताया था और सभी समर्थकों का धन्यवाद किया था। टीएमसी नेता समीरुल इस्लाम ने कहा कि सुनाली को कुछ महीने पहले सिर्फ इसलिए बांग्लादेश भेज दिया गया था क्योंकि वह बंगाली बोलती थी। यह दिखाता है कि गलत पहचान की वजह से एक गरीब महिला को कितना बड़ा नुकसान और परेशानी झेलनी पड़ी। ———— सुप्रीम कोर्ट की ये खबर भी पढ़ें… रोहिंग्याओं पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी,पूर्व जजों-वकीलों ने आपत्ति जताई:CJI सूर्यकांत को लेटर लिखा; कहा था- क्या घुसपैठियों को रेड कार्पेट वेलकम देना चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर को भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के कानूनी दर्जे पर सवाल उठाए थे। इसे लेकर पूर्व जजों, वकीलों और कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत को लेटर लिखकर आपत्ति जताई है।पूरी खबर पढ़ें


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