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बेगूसराय के काबर में शुगर-फ्री धान मधुराज की खेती:शुगर पेशेंट्स के लिए आशा की नई किरण, छत्तीसगढ़ की इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किया डेवलप

अपनी जैव-विविधता और विशाल वेटलैंड (आर्द्रभूमि) के लिए चर्चित बेगूसराय जिले का रामसर साइट काबर परिक्षेत्र अब कृषि नवाचार के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा है। यहां के प्रगतिशील किसान ने विशेष धान की किस्म ‘मधुराज-55’ की खेती सफलतापूर्वक शुरू कर दी है। जिसे शुगर-फ्री धान के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित यह किस्म कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Glycemic Index – GI) के कारण मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों के लिए एक वरदान साबित हो रही है। यह प्रयोग बेगूसराय के कृषि परिदृश्य में क्रांति ला सकता है। छौड़ाही प्रखंड के एकम्बा के किसान अनीश कुमार के द्वारा मधुराज धान की खेती की जा रही है। बेगूसराय के युवा किसान धान को नकदी फसल के रूप में देख रहे क्षेत्र के युवा और प्रगतिशील किसान अब इस धान को नकदी फसल के रूप में देख रहे हैं। अनीश कुमार बताते हैं कि पहले हमें लगता था कि चावल मधुमेह रोगियों के लिए दुश्मन है। लेकिन मधुराज ने यह सोच बदल दी है। इसकी खेती से हमें अच्छा मुनाफा मिलने वाला है और हम लोगों को स्वस्थ भोजन भी दे सकेंगे। इस विशेष धान के बीज शुरू में छत्तीसगढ़ से प्राप्त किए थे। लेकिन अब स्थानीय स्तर पर भी बीज उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। खासियत है कि यह कम पानी, कम उर्वरक और कम लागत में सामान्य धान की तुलना में अधिक उपज देता है। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है, तना छेदक और भूरा पत्ती लपेटक कीटों के प्रति सहनशील है। धान हाइब्रिड से बेहतर है, इसे रोपाई या सीधे बुवाई भी किया जाता है इसका तना मजबूत है, जिससे यह आंधी-तूफान में आसानी से नहीं गिरता है। यह धान हाइब्रिड से बेहतर है, इसे रोपाई या सीधे बुवाई भी किया जाता है, इसमें बीमारी की संभावना भी बहुत कम है। काबर झील परिक्षेत्र को एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक माना जाता है। इसकी मिट्टी और जलवायु मधुराज-55 जैसी विशिष्ट धान के लिए उत्कृष्ट है। इस क्षेत्र की मिट्टी में उच्च नमी और पोषक तत्वों की मौजूदगी धान की खेती के लिए आदर्श परिस्थितियां उपलब्ध कराती है। मधुराज-55 की पैदावार पारंपरिक किस्मों से थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन बाजार में इसकी प्रीमियम कीमत और स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए यह आर्थिक रूप से अधिक फायदेमंद है। सामान्य धान की तुलना में इसका जीआई 55 या उससे कम होता है। किसान अनीश कुमार ने बताया कि अब डायबिटीज मरीज को चावल से परहेज नहीं करना पड़ेगा। वह भी चावल खा सकते हैं मधुराज-55 जैसी किस्में शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद मानी जाती है। इसका दाना मध्य मोटा और उपज प्रति हेक्टर 50 क्विंटल तक हो सकती है। यह सुगंधित चावल है जो खाने में स्वादिष्ट लगता है। फसल की 6 फीट से ज्यादा ऊंचाई होती है इसकी खेती जैविक तरीके से बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। मधुराज-55 छत्तीसगढ़ का एक वैराइटी है। वहां से 4 किलो बीज मिला और हमने काबर परिक्षेत्र के अपने खेत में लगाया। काफी अच्छा फसल, इसका हाइट करीब 6 फीट से ज्यादा है। इसके बाद भी पौधे में स्ट्रेंथ इतना कि बांस के कोपड़ की तरह लगता था। मैंने बिहार के बेगूसराय में पहली बार लगाया और किसान हमारे यहां देखने आए। बड़ी संख्या में किसानों ने अगले वर्ष इस धान को लगाने का निर्णय किया। जिससे कि इस धान का एक्सटेंशन और भी बढ़ने की संभावना है। आसपास के किसान तो देखे ही, कृषि विभाग के अधिकारी भी आए। 5-6 वर्षों से हम गेहूं की एक वैरायटी लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स का सोनामोती और खपली लगाया। वह आज किसानों का चहेता बन गया। उसी तरह इस धान को भी किसान लगाएंगे। जिला कृषि पदाधिकारी अभिषेक रंजन ने बताया कि मधुराज धान की सबसे बड़ी खासियत है ग्लाइसेमिक इंडेक्स, जो सामान्य धान के मुकाबले काफी कम है। यह मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद होने के साथ वजन कम करने के लिए भी लाभदायक है। इसका स्वाद सामान्य धान और चावल जैसा ही है। छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों और किसानों के आपसी सहयोग से विकसित किया, जो अब पूरे भारत में मशहूर हो रहा है। शुगर पेशेंट जो चावल खाने से बचते हैं, उनके लिए बेहतर विकल्प इसकी उपज भी सामान्य धान के आसपास ही है, इससे किसानों को कई लाभ हो रहे हैं। हमारे छौड़ाही प्रखंड के एकम्बा पंचायत में विशेष रूप से इसकी उपज की जा रही है। वहां अच्छी उपज देखकर किसान प्रभावित हुए हैं और धीरे-धीरे यह पूरे जिले में फैल रहा है। आगे इसकी अच्छी खेती होने की संभावना है, क्योंकि किसानों के साथ-साथ आमजन के लिए भी लाभप्रद है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक पैमाना है जो बताता है कि कोई खाद्य पदार्थ कितनी तेजी से रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के स्तर को बढ़ाता है। कम जीआई वाले खाद्य पदार्थ रक्त शर्करा को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं, जो मधुमेह रोगियों के लिए बेहद सुरक्षित माना जाता है। इस कारण मधुराज का चावल उन लोगों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित विकल्प प्रदान करता है, जिन्हें अक्सर चावल खाने से परहेज करना पड़ता है। कुल मिलाकर कहें तो बिहार में पहली बार मधुराज धान की काबर परिक्षेत्र में खेती केवल कृषि मानचित्र पर ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में भी एक विशेष पहचान दिला रही है। यह पहल न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेगी, बल्कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विविधीकरण (Agricultural Diversification) का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी प्रस्तुत करेगी। यह प्रयोग यह दर्शाता है कि कैसे वैज्ञानिक अनुसंधान एवं प्रगतिशील किसानों का सहयोग मिलकर समाज के लिए लाभकारी और टिकाऊ कृषि समाधान प्रदान कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात है कि यह मधुमेह रोगियों के भोजन की थाली में चावल को फिर से शामिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।


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