27 जुलाई 2004- सुबह के 6 बज रहे थे। बिहार की राजधानी पटना में पुलिस काफी मुस्तैद थी। तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुछ ही देर में यहां पहुंचने वाले थे। उन्हें बाढ़ में डूबे इलाकों का दौरा करना था। केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और मुख्यमंत्री राबड़ी देवी तैयारियों में जुटे थे। पटना के बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी में रहने वाला 15 साल का ऐश्वर्य रोज की तरह स्कूल के लिए निकला। वह डीपीएस पटना में 11वीं में पढ़ता था। बस स्टैंड पहुंचने ही वाला था, तभी उसे लगा कि एक आदमी उसका पीछा कर रहा है। कुछ ही देर में दो और लोग पीछे लग गए। डरा सहमा ऐश्वर्य बस स्टैंड पहुंच गया। तभी एक सफेद मारुति वैन वहां आकर रुकी। कार से दो युवक निकले। एक ने दूसरे के कान में बोला- ‘यहां तो बहुत सारे बच्चे हैं। उनके घर वाले हैं। लगता है काम नहीं हो पाएगा।’ दूसरे ने उसे डांटते हुए कहा- ‘अबे @#$%@# तू इतना जल्दी डर गया। बंदूक निकालो और उसे जबरन उठा ले चलो। जो बीच में आएगा उसकी खोपड़ी उड़ा देंगे।’ दोनों ने दौड़कर ऐश्वर्य को दबोच लिया। जबरन गाड़ी में बैठाया और बंदूक लहराते हुए तेजी से बेली रोड की तरफ चल दिए। वहां खड़े स्कूली बच्चे भागने लगे। अफरा-तफरी मच गई। इसी बीच एक शख्स दौड़ता हुआ ऐश्वर्य के घर पहुंचा और उसकी मां से बोला- ‘कुछ लोग आपके बेटे को बस स्टैंड से उठा ले गए।’ ऐश्वर्य की मां बदहवास होकर बस स्टैंड की ओर भागी। वहां भीड़ लगी थी और ऐश्वर्य का एक जूता पड़ा हुआ था। वह छाती पीटकर रोने लगी- ‘ उसे बचा लो। उसे कोई कुछ कर ना दे।’ कुछ ही देर में पटना के अलग-अलग थानों की पुलिस वहां पहुंच गई। ऐश्वर्य के पिता बिजनेसमैन थे और मां एक कॉलेज में लेक्चरर। पुलिस ने सारे रिकॉर्ड खंगाले। परिवार की पहले से किसी से कोई रंजिश नहीं थी। पुलिस ने FIR तो दर्ज कर ली। पुलिस को आभास हो गया था कि इस बच्चे के साथ अब बुरा होने वाला है। IPS अमित लोढ़ा तब नालंदा के SP थे। वे अपनी किताब ‘बिहार डायरीज’ में लिखते हैं- ‘पटना उन दिनों अपराध की राजधानी बना हुआ था। रोज किसी न किसी का अपहरण होता रहता था। हालात इतने बुरे थे कि एक रिक्शे वाले ने एक लाख रुपए में घर बेचा तो पड़ोसी ने उसका अपहरण कर लिया। अपहरण में जोखिम कम था और फायदा ज्यादा। इसका सीधा-साधा हिसाब था- शिकार की आदतों को समझो, सही वक्त तय करो और अनजाने टारगेट को अगवा कर लो। फिर शिकार के घर फोन कर दो। मजबूरन परिवार वाले फिरौती की रकम डर के मारे दे ही देते थे। उस रोज मैं एक ऑपरेशन के सिलसिले में रातभर जगा था। सुबह मैंने पटना के IG को फोन किया- सर, पिछले हफ्ते जिस बैंक मैनेजर का अपहरण हुआ था, उसे छुड़ा लिया गया है। उधर, से उन्होंने गाली के लहजे में कहा- बिहार को क्या होता जा रहा है। मैं तो अगवा लोगों की गिनती भूल गया था। मैं खुद पायजामा पहने पटना की सड़कों पर एक लड़के को ढूंढने में लगा हूं। अभी कोई 20 मिनट पहले ही DPS के एक बच्चे को उठा लिया है।’ अमित लोढ़ा लिखते हैं- ‘मैंने पटना-नालंदा हाईवे पर सभी थानों में फोन किया और खुद सोने चला गया। कुछ ही देर बाद मेरा फोन बजा। उधर से नागरनौसा के एसएचओ मिथिलेश की आवाज आई- ‘सर, हमने मारुति वैन बरामद कर ली है। ड्राइवर को भी पकड़ लिया है, लेकिन वो बच्चा और अपराधियों का कुछ पता नहीं चल रहा।’ वैन की तलाशी करो, कुछ है तो नहीं उसमें? एसएचओ मिथिलेश- ‘सर एक स्कूल बैग मिला है।’ मैंने तुरंत पटना के आईजी को फोन कर बताया कि बच्चे का सुराग मिला है। मैं खुद नागरनौसा के लिए निकल गया। सोच रहा था कि अपराधी पटना से नागरनौसा करीब 80 किलोमीटर तक कैसे आ गए। उन्हें कहीं रोका क्यों नहीं गया। पुलिस ने ठीक से बैरिकेडिंग की होती तो शायद वैन को पटना जिले में ही रोक लिया जाता। कुछ देर में मैं नागरनौसा पहुंच गया। मैंने वहां एक आदमी को देखा। उसके कपड़े फटे हुए थे और वह बेहद परेशान दिख रहा था। ये आदमी उस वैन का ड्राइवर था। डीआईजी शिवेंद्र भगत उससे सख्ती से पूछताछ कर रहे थे। वह आदमी चिल्ला रहा था ‘साहब, मैं बेगुनाह हं। मैं ड्राइवर हूं। मुझे अपहरण के बारे में नहीं पता।’ मैंने शिवेंद्र सर से बोला- ‘मुझे ड्राइवर से बात करने दीजिए। फिर मैंने उससे सवाल-जवाब शुरू किया।’ ‘देखो सच सच बता दो, बच्चे को कहां छुपाए हो?’ ड्राइवर कहने लगा- ‘साहब, मैं ड्राइवर हूं। मेरा बॉस किराए पर गाड़ी देता है। कल हमारे दफ्तर में दो लोग आए और बोले कि उनके भतीजे को पटना से नालंदा में अपने गांव ले जाना है। उन्होंने मारुति वैन मांगी। आज सुबह मुझे बोरिंग रोड चौराहे पर इंतजार करने को कहा। कुछ देर बाद, वे लोग बेहोशी की हालत में एक लड़के को लेकर आए। वह स्कूल ड्रेस में था। उन्होंने बताया कि ये बीमार है। किसी ने नजर लगा दी है। वे पूजा करवाने जा रहे हैं। मुझे शक तो हुआ, लेकिन लगा कि हो सकता है कोई नजर लग गई हो। कई बार मैं लोगों को ओझा के पास ले गया हूं। सो मैंने ज्यादा सोचा नहीं और नालंदा की ओर चलता गया। जब नागरनौसा पहुंचा, तो उन दोनों ने कहा कि गाड़ी रोको, एक रिश्तेदार से मिलना है। शाम को फिर गाड़ी ले लेंगे। उन्हें उतारकर मैं थोड़ा आगे बढ़ा था कि पुलिस ने गाड़ी पकड़ ली। मुझे बस इतना ही पता है साहब।’ ड्राइवर कुर्सी पर बैठा था। पसीने से भीगा, आंखें नीचे झुकी हुईं। आईएसपी अमित लोढ़ा ने कुर्सी पीछे खिसकाई। कुछ सेकेंड तक ड्राइवर को देखा। फिर बोले,’तुम्हारे पास उन आदमियों के नंबर हैं क्या?’ ड्राइवर ने सिर हिलाया,’न-नहीं साहब…’उसकी आवाज कांप रही थी। ‘डर मत,’ लोढ़ा का लहजा थोड़ा नरम हुआ, ‘नहीं मारूंगा।’ उन्होंने हाथ आगे बढ़ाया- ‘मोबाइल दो।’ ड्राइवर ने कांपते हुए फोन आगे किया। लोढ़ा ने कॉल लॉग खोला। एक-एक नंबर स्क्रीन पर चमक रहा था। ‘इनमें से कौन सा?’ लोढ़ा ने पूछा, आंखें ड्राइवर पर टिकी रहीं। ड्राइवर ने धीरे-धीरे उंगली उठाई और स्क्रीन पर एक नंबर की ओर इशारा किया। ‘सर… आज सुबह इसी नंबर से कॉल आया था। उस आदमी ने कहा था- ‘बोरिंग रोड चौराहे पर सुबह 6:40 बजे पहुंच जाना।’ ड्राइवर स्क्रीन पर एक नंबर की ओर इशारा करते हुए बोला- ‘सर, आज सुबह इस नंबर से कॉल आया था। उस आदमी ने मुझे बोरिंग रोड चौराहे पर सुबह 6:40 बजे पहुंचने को कहा था।’ SP लोढ़ा को इस अपहरण केस की जांच का जिम्मा मिल चुका था। उधर, पटना में सियासी बवाल मच गया। राबड़ी देवी सरकार के खिलाफ बीजेपी और जदयू प्रदर्शन कर रहे थे। स्कूली बच्चे और उनके पेरेंट्स ने मोर्चा खोल दिया था। स्कूल वाले भी विरोध में उतर गए थे। इधर, अपहरण करने वाले ऐश्वर्य की आंख पर कपड़ा बांधकर खेतों के बीच से घसीटते हुए ले जा रहे। बेचारे ऐश्वर्य को कुछ सूझ नहीं रहा था। उसने हिम्मत करके पूछा- ‘अंकल कहां ले जा रहे मुझे? मैंने क्या बिगाड़ा है आप लोगों का?’ तभी एक ने उसके गाल पर जोर का तमाचा जड़ते हुए कहा- ‘@#$@#$ जरा भी चिल्लाया तो गोली तेरी छाती के आरपार हो जाएगी।’ कुछ देर बाद ऐश्वर्य फिर बोला- ‘पर अंकल मैंने किया क्या है?’ और वह रोने लगा। एक लंबे कद के आदमी ने उसे बीच खेत में बैठाया। फिर बहुत प्यार से बोला- ‘देख बेटा। तुम्हारा बाप बहुत अमीर है। वह हमें पैसे दे देगा और हम तुझे छोड़ देंगे।’ और उन्होंने पैसे नहीं दिया तो… कांपते हुए ऐश्वर्य बोला। उस आदमी ने कहा- ‘तब तो बेटा तुम्हें ठिकाने लगाना पड़ेगा। हम पाल पोसकर तुम्हें बड़ा तो करने नहीं जा रहे।’ रोते हुए ऐश्वर्य बोला- ‘तुम लोग मेरे पापा को जानते नहीं हो। तुम्हारे पीछे पुलिस लग गई होगी। बहुत जल्द तुम लोग मारे जाओगे।’ अपहरण करने वाले हंसने लगे। इधर, IPS लोढ़ा दफ्तर पहुंच चुके थे। उन्होंने रिलायंस टेलिकॉम कोलकाता के मैनेजर को कॉल किया- ‘घोष बाबू, मुझे 94xxxx3654 की कॉल डिटेल भेज दो। अर्जेंट है।’ कुछ देर बाद घोष ने कॉल करके बताया- ‘उस नंबर का सिर्फ एक बार इस्तेमाल किया गया था, वैन ड्राइवर को कॉल करने में।’ IPS सोचने लगे- ‘इसका मतलब है यह सिम केवल बच्चे के परिवार को कॉल करने के लिए लिया गया था।’ फिर उन्होंने कहा- ‘घोष बाबू, क्या आप मुझे IMEI नंबर बता सकते हैं?’ ‘एक मिनट, सर,’ घोष बाबू ने कहा। IMEI यानी इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी। यह 15 अंकों का सीरियल नंबर होता है, जो हर मोबाइल फोन में होता है। इसकी मदद से फोन को ट्रेस किया जा सकता है। SP लोढ़ा ने घोष से कहा कि वह तुरंत IMEI नंबर डालकर देखें कि क्या कोई दूसरा सिम इस मोबाइल पर चलाया गया था? ‘इस आदमी ने पहले इस मोबाइल पर दूसरा सिम काम में लिया था। वो सिम कार्ड 94xxxx6381 भी हमारी कंपनी का ही है,’ खुश होकर घोष ने कहा। ‘क्या आप चेक कर सकते हैं कि वह नंबर अभी भी काम में लिया जा रहा है या नहीं?’ SP ने भी उतने ही जोश में पूछा। ‘हां, वो नंबर अभी भी काम कर रहा है।’ इसका मतलब वे दूसरे सिम से बाकी लोगों को कॉल कर रहे थे।’ SP लोढ़ा ने उस नंबर का पिछले 48 घंटों का कॉल रिकॉर्ड मंगवाया। फिर प्रिंट आउट निकालकर उन नंबरों पर गोला बना दिया, जो ज्यादा बार इस्तेमाल किए गए थे। थोड़ी देर बाद एक पुलिस अफसर संजय, SP लोढ़ा से बोला- ‘सर, आपने जो इस नम्बर पर गोला बनाया है, यह तो मेरे जासूस श्याम का नम्बर है।’ ‘सच कह रहे हो?’ SP ने पूछा। संजय- ‘हां, सर, मैं रोज ही श्याम से बात करता हूं।’ SP- ‘फौरन श्याम को उठाकर ले लाओ। उसके सारे अड्डों पर छापा मारना।’ कुछ देर बाद, SP के दफ्तर के बाहर एक जीप रुकी। संजय चहकते हुए बोल पड़ा- ‘सर, मिल गया।’ सामने एक दुबला-पतला आदमी खड़ा था। वह नशे में लग रहा था। ‘यह किसका नम्बर है?’ एक नंबर दिखाते हुए एसपी लोढ़ा ने उससे पूछा। ‘सर, मैं नहीं जानता- आप क्या कह रहे हैं?’ संजय ने धक्का दिया और श्याम जमीन पर गिर पड़ा। ‘तुमने 10 घंटों में इस नम्बर पर चार बार बात की है। नाटक मत करो। बाप हैं हम तुम्हारे, ‘संजय ने श्याम के मोबाइल की स्क्रीन की ओर इशारा करते हुए कहा। श्याम बोल पड़ा- ‘साहब सुखु साव ने मुझे फोन किया था।’ सुखु पटना का खतरनाक किडनैपर था, जो फिरौती मिलने के बाद शिकार को मार देता था। सुखु ने ही श्याम को एक मारुति वैन का इंतजाम करने के लिए कहा था। हालांकि, श्याम को पता नहीं था कि सुखु ने किसी बच्चे का अपहरण किया है। ‘सुखु अपने आप आएगा या तुम उसे कॉल करोगे? क्या तुम उसे जानते हो? कैसा दिखता है वो?’ SP लोढ़ा ने सख्त लहजे में उससे सवाल पूछना शुरू किया। श्याम ने डरते हुए कहा- ‘साहब, मैं सुखु से पटना की बेऊर जेल में दो साल पहले मिला था। हम दोनों वहां बंद थे। उसके बाद मैंने उससे सिर्फ फोन पर ही बात की है, लेकिन देखूंगा तो पहचान लूंगा। वह लंबा और हट्टा-कट्टा है, एकदम गंजा। उसने मुझे कल सुबह 8 बजे बस स्टैंड के पास बुलाया है।’ SP लोढ़ा लिखते हैं- ‘मैंने घड़ी देखी। रात के 1:40 बज रहे थे। संजय और मैं अगले दिन उससे मिलने के लिए तय जगह पर पहुंचे। मैं बेचैनी से सुबह होने का इंतजार करने लगा। 30 जुलाई की सुबह 6:30 बजे संजय का कॉल आया। ‘सर, पकड़ लिया।’ मैं चप्पल में ही घर से निकल गया। अपनी गाड़ी की बजाय एक प्राइवेट गाड़ी ले ली, ताकि किसी को शक न हो। कुछ ही देर में मैं संजय के पास पहुंच गया। देखा संजय कीचड़ से नहाया हुआ है। सुखु हट्ठा-कट्टा था, उसे पकड़ने के चक्कर में संजय का ये हाल हो गया था। हमने सुखु को गाड़ी में बैठाया और चल दिए। मैं सुखु से लगातार सवाल कर रहा था, लेकिन वो कोई जवाब नहीं दे रहा था। मेरे साथी DSP आदिल जफर ने उसे जोर से थप्पड़ मारा। सुखु बोल पड़ा- ‘मार दो साहब, वैसे भी मरना ही है मुझे।’ फिर हमें खुफिया सूचना मिली कि अपहरण करने वालों ने बच्चे को इस्लामपुर थाने के एक गांव में छिपाकर रखा है। हम फौरन उस गांव की तरफ चल पड़े। वहां पहुंचते ही एक पुराना सा घर दिखा। एक आदमी बंदूक ताने खड़ा था। मैं समझ गया कि ये वही घर हो सकता है। तभी उस आदमी ने फायरिंग शुरू कर दी। हमने फौरन छुपने के लिए आड़ लिया और गाड़ी से निकल गए। इधर से भी जवाबी फायरिंग होने लगी। कुछ देर बाद उस आदमी की बंदूक की गोलियां खत्म हो गईं। वह बचने के लिए भागा, तभी हमारे एक साथी की गोली उसके सीने के आर-पार हो गई। इधर, कार में अकेला सुखु भागने की कोशिश करने लगा। हमारे एक साथी से उसकी रिवॉल्वर छीनने लगा। इसी दौरान एक गोली सुखु के फेफड़े को चीरते हुए निकल गई। उसका काम-तमाम हो गया। हम फौरन उस घर में पहुंचे। धक्का देकर दरवाजा खोला तो एक कोने में वो बच्चा था। उसके हाथ पैर बंधे हुए थे। वह हमें देखते ही सहम गया। फिर मैंने बताया- देखो डरो मत। मैं अमित लोढ़ा नालंदा का एसपी हूं। हमने तुम्हें बचा लिया है। अपहरण करने वाले मारे जा चुके हैं। अपहरण से बढ़िया कोई नौकरी नहीं है आजकल ऐश्वर्य बोला- थैंक्यू अंकल… स्कोर क्या हुआ है? स्कोर? सर एशिया कप में भारत और श्रीलंका के बीच आज मैच हो रहा है न… मैं हंस पड़ा। नहीं पता बेटा, पर अब तुम घर जाकर मैच के हाइलाइट्स देख सकते हो।’ इस तरह करीब तीन दिन बाद ऐश्वर्य वापस अपने घर पहुंच गया। बाद में उसने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया- ‘उन लोगों ने मेरी यूनिफॉर्म उतारकर मुझे बनियान और गमछा पहना दिया था। ताकि मैं गांव वालों जैसा लगूं। गांव ले जाते वक्त साफ-साफ धमकी दी थी कि अगर चिल्लाया तो गोली मार देंगे। मैं डरकर कुछ नहीं बोला। वो लोग मुझे ले जाकर एक गाय वाले घर में बंद कर दिया। मैं बार-बार उनसे कह रहा था कि मुझे छोड़ दो, तो उन लोगों ने कहा कि घबराओ नहीं, पैसे मिलते ही तुम्हें छोड़ देंगे। मैंने उनसे पूछा कि ये सब करते क्यों हो। तो वे लोग कहने लगे कि हम भी पढ़े-लिखे हैं। ग्रेजुएट हैं। सरकारी नौकरी मिल नहीं रही और प्राइवेट से खर्चा चलाना बस की बात है नहीं, तो अपहरण करने लगे। इसमें ठीक-ठाक कमाई हो जाती है। अपहरण से बढ़िया कोई नौकरी नहीं है आजकल।’ चार साल बाद 2 को उम्रकैद की सजा, फिर कभी RJD का CM नहीं बना 4 साल बाद दिसंबर 2008 में पटना हाईकोर्ट ने इस केस में दो आरोपियों विजय कुमार और अबोध नीलकमल को दोषी माना और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों पर 5-5 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 2000-2004 के बीच हुई अपहरण की घटनाओं से राजद को बहुत नुकसान हुआ। बीजेपी और जदयू ने लगातार इसे मुद्दा बनाया। फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में राजद को इसका खासा नुकसान झेलना पड़ा। पिछले चुनाव के मुकाबले उसकी 40 सीटें कम हो गईं। राजद को 75 सीटें ही मिलीं, जो बहुमत से 37 कम थीं। बीजेपी को 55 और जदयू को 37 सीटें मिलीं। किसी भी दल या गठबंधन के पास बहुमत नहीं होने की वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। 6 महीने बाद यानी अक्टूबर 2005 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार बीजेपी और जदयू गठबंधन ने 242 में से 143 सीटें जीत लीं। राजद 54 सीटों पर सिमट गई।
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