देश की पुरानी शिक्षा परंपरा को पुनर्जीवित करने के अपने मिशन को आगे बढ़ाते हुए राजगीर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय ने नई दिल्ली स्थित दत्तोपंत ठेंगड़ी फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न आयामों पर गहन रिसर्च करना है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी और फाउंडेशन के महानिदेशक विरजेश उपाध्याय की उपस्थिति में यह समझौता संपन्न हुआ है। इस साझेदारी के तहत दोनों संस्थान भारत की प्राचीन सभ्यता गत ज्ञान-परंपराओं के सामाजिक, कानूनी और आर्थिक पहलुओं पर संयुक्त रूप से रिसर्च करेंगे। पुराना और आधुनिक का संगम इस समझौते की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पुराना ज्ञान को केवल ग्रंथों और पुस्तकालयों तक सीमित रखने के बजाय उसे समकालीन शैक्षिक व्यवस्था और नीति-निर्माण में उपयोगी बनाने का प्रयास करेगा। विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि यह पहल भारत की बौद्धिक धरोहर को न केवल संरक्षित करेगी, बल्कि उसे नई पीढ़ी के लिए प्रासंगिक और उपयोगी भी बनाएगी। इस सहयोग का उद्देश्य सिर्फ अकादमिक रिसर्च तक सीमित नहीं है। दोनों संस्थान मिलकर ऐसे कार्यक्रम विकसित करेंगे, जो नवीन सोच को प्रोत्साहित करें और भारतीय ज्ञान परंपरा पर व्यापक बौद्धिक विमर्श को बढ़ावा दें। इसके माध्यम से विश्वविद्यालय अपने शैक्षणिक परिवेश को और समृद्ध बनाने की योजना बना रहा है। नालंदा की परंपरा को आगे बढ़ाना नालंदा विश्वविद्यालय, जो पुराना नालंदा महाविहार की गौरवशाली विरासत को पुर्नस्थापित करने के लिए स्थापित किया गया था, लगातार भारतीय ज्ञान और संस्कृति को वैश्विक मंच पर स्थापित करने के प्रयास में जुटा है। यह नया समझौता उस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह साझेदारी भारत की ज्ञान-विरासत को संरक्षित करने, उसका प्रसार करने और उसे वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने की उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत करेगी।
https://ift.tt/wA7hozf
🔗 Source:
Visit Original Article
📰 Curated by:
DNI News Live

Leave a Reply