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जल संरक्षण-अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में दी जाएगी जानकारी:राजगीर के नेट-जीरो कैंपस में तैयार होंगे पर्यावरण योद्धा, 5 दिन चलेगा कार्यक्रम

जलवायु परिवर्तन आज सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। ऐसे में जब पूरी दुनिया कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक लाने की होड़ में लगी है, बिहार का ऐतिहासिक राजगीर शहर इस दिशा में एक अहम कदम उठाने जा रहा है। प्राचीन नालंदा की विरासत को आगे बढ़ा रहा नालंदा विश्वविद्यालय अब आधुनिक भारत को एक नई सौगात देने की तैयारी में है। 25 से 29 दिसंबर के बीच यहां शुरू होने वाला ‘एक्जीक्यूटिव सर्टिफिकेट कोर्स इन नेट-जीरो स्ट्रैटजी’ न सिर्फ एक शैक्षणिक पहल है, बल्कि यह देश को ऐसे दूरदर्शी नेताओं की फौज तैयार करने का संकल्प है जो ‘नेट-जीरो इंडिया’ के सपने को साकार कर सकें। इस पांच दिवसीय आवासीय कार्यक्रम की खासियत यह है कि यह सिर्फ सैद्धांतिक ज्ञान देने तक सीमित नहीं है। सरकारी अधिकारियों, कॉर्पोरेट जगत के अनुभवी पेशेवरों और युवा नेतृत्वकर्ताओं के लिए डिजाइन किए गए इस कोर्स में प्रतिभागियों को जल संरक्षण, ऊर्जा दक्षता और अपशिष्ट प्रबंधन की वास्तविक चुनौतियों से रूबरू कराया जाएगा। कोर्स का आयोजन स्थल खुद में एक अनूठा प्रयोग है। नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर भारत के उन चुनिंदा कैंपसों में से एक है जो नेट-जीरो के सिद्धांतों पर चलता है। यहां प्रतिभागी न केवल क्लासरूम में बैठकर सीखेंगे, बल्कि कैंपस के वास्तविक संचालन को भी करीब से देख और समझ सकेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस होगा प्रशिक्षण सेंटर फॉर नेट जीरो एजुकेशन और एनवायर्नमेंटल डिज़ाइन सोलूशन्स के सहयोग से संचालित इस कार्यक्रम में आधुनिक तकनीकों का भरपूर उपयोग किया जाएगा। एआई-आधारित सस्टनेबिलिटी टूल्स, डिजाइन थिंकिंग वर्कशॉप और केस स्टडीज के माध्यम से प्रतिभागियों को यह सिखाया जाएगा कि वे अपने-अपने संगठनों में पर्यावरण अनुकूल नीतियों को कैसे धरातल पर उतार सकते हैं। कोर्स में नवीकरणीय ऊर्जा और स्मार्ट ग्रिड के एकीकरण, जल संरक्षण और पुनर्चक्रण की आधुनिक तकनीकों, संसाधनों के पुनः उपयोग और संस्थानों के लिए नेट-जीरो रोडमैप तैयार करने जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं। कुलपति ने रखा सांस्कृतिक बदलाव पर जोर नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी का मानना है कि नेट-जीरो लक्ष्यों को हासिल करना आज की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो केवल तकनीकी जानकारी तक सीमित न रहे, बल्कि संस्थानों के कामकाज और संस्कृति में व्यावहारिक परिवर्तन ला सके। उनका यह कथन साफ करता है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई केवल नई तकनीकों को अपनाने से नहीं जीती जा सकती, बल्कि इसके लिए संस्थागत सोच और कार्य-संस्कृति में मूलभूत बदलाव लाना होगा। बिहार बन सकता है ज्ञान केंद्र विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार, इच्छुक पेशेवर और अधिकारी आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से पंजीकरण करा सकते हैं। यह पहल बिहार को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक प्रमुख ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।


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