राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोलते हैं, तो विश्व के नेता ध्यान से सुनते हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि भारत की ताकत सामने आ रही है और देश को उसका उचित स्थान मिल रहा है।
आरएसएस की स्थापना के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि किसी को जयंती या शताब्दी समारोह जैसे महत्वपूर्ण अवसरों का जश्न मनाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए, बल्कि दिए गए कार्य को निर्धारित समय के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
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आरएसएस प्रमुख ने कहा, “संघ यही करता आया है। संघ ने चुनौतियों का सामना करते हुए और कई तूफानों से जूझते हुए भले ही 100 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम आत्मचिंतन करें कि पूरे समाज को एकजुट करने के काम में इतना समय क्यों लगा।”
उन्होंने कहा कि आमतौर पर माना जाता है कि जब भारत आगे बढ़ता है, तो वैश्विक समस्याएं हल हो जाती हैं, संघर्ष कम हो जाते हैं और शांति कायम होती है।
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भागवत ने कहा, “यह बात इतिहास में दर्ज है और हमें इसे फिर से साकार करना होगा। यह समय की मांग है। मौजूदा वैश्विक परिस्थितियां भारत से इसकी मांग करती हैं और इसीलिए संघ के स्वयंसेवक पहले दिन से ही इस मिशन को पूरा करने के संकल्प के साथ काम कर रहे हैं।”
आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बलिदानों पर प्रकाश डालते हुए भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों ने उन्हें दिए गए मिशन को पूरा करने की अपनी यात्रा कई बाधाओं और चुनौतियों के बीच शुरू की थी।
उन्होंने संघ के शुरुआती महीनों और वर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि उनके काम से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।
भागवत ने कहा, “उन्होंने (संघ के स्वयंसेवकों ने) सफलता के बीज बोए और अपना जीवन समर्पित करके परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया। हमें उनका आभारी होना चाहिए।’’
वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते कद का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख ने कहा, “प्रधानमंत्री (मोदी) को वैश्विक स्तर पर इतने ध्यान से क्यों सुना जा रहा है? उन्हें इसलिए सुना जा रहा है, क्योंकि भारत की ताकत अब उन जगहों पर प्रकट होने लगी है, जहां उसे उचित रूप से प्रकट होना चाहिए। इसने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है।”
सभा को एक किस्सा सुनाते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एक बार उनसे कहा गया था कि संघ 30 साल देरी से आया है।
भागवत ने कहा, “मैंने जवाब दिया कि हम देरी से नहीं आए। बल्कि, आपने हमें देरी से सुनना शुरू किया।”
उन्होंने कहा कि जब संघ संवाद और सामूहिक कार्य की ताकत की बात करता है, तो इसका तात्पर्य पूरे समाज से होता है।
भागवत ने कहा, “हमारी नींव विविधता में एकता में निहित है। हमें साथ मिलकर चलना होगा और इसके लिए धर्म आवश्यक है।”
उन्होंने कहा, “भारत में सभी दर्शन एक ही स्रोत से उत्पन्न हुए हैं। चूंकि, सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, इसलिए हमें सद्भाव के साथ आगे बढ़ना होगा।
News Source- PTI Information
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