छठ के बाद सूर्योपासना का छह मासिक रविवार का व्रत आज रविवार को शुरू होगा। आज अग्रहण शुक्ल तृतीया में मूल नक्षत्र के साथ धृति योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवियोग का संयोग बन रहा है। इस व्रत का नहाय-खाय शनिवार को सुकर्मा योग में हुआ। देवोत्थान एकादशी और सूर्य के वृश्चिक राशि में गोचर के बाद शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले रविवार से इस रविव्रत का आरंभ होता है। संतान के सलामती के लिए महिलाएं करतीं हैं यह व्रत इस व्रत की महत्ता भी छठ पर्व जैसी है। छठ महापर्व की तरह इस व्रत में भी व्रती महिलाएं एक दिन पहले नहाय-खाय करती हैं। फिर अगले दिन पवित्रता से ठेकुआ, सोहारी, खीर, पूड़ी समेत अन्य पकवान तैयार किया जाता है। इस दौरान बांस के डाला में ऋतुफल, पकवान, पान-सुपारी, फूलमाला, बधी-माला, मौली, धुप-दीप, अरिपन, सिंदूर रखकर घर के खुले आंगन, छत या बालकनी में सूर्यदेव की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद अर्घ्य देकर सुख-समृद्धि और संतान की सलामती की कामना करते है। इस तरह महिलाएं छह महीने के इस महा-रविवार के व्रत का संकल्प लेती हैं। संतान की सलामती के लिए उत्तम है रवि व्रत आचार्य राकेश झा ने बताया, ‘रविवार व्रत की महत्ता भी छठ की तरह है। इस पर्व से भी चर्म रोग, रक्त विकार से निदान और संतान सुखादि के लिए उत्तम माना गया है। सूर्य उपासना में रविवार के व्रत का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस दिन व्रती गंगा नदी स्नान या घर में भी स्नान जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर भगवान भास्कर को अर्घ्य देती है।’ उन्होंने बताया कि छठ व्रत कर चुके या व्रत कर रहे या संतान प्राप्त महिलाएं इस व्रत को करती है। व्रती महिलाएं रविवार को अर्घ्य देने के बाद एक ही बार प्रसाद स्वरूप खीर, फल आदि ग्रहण करेंगी। यह व्रत अगहन से शुरू होकर छह मास बाद वैशाख में खत्म होता है।
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