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खेती : कृषि विवि पूसा के डॉ. एसके सिंह ने दी मिर्च की फसल में लगने वाले विल्ट रोग के प्रबंधन की जानकारी, वैज्ञानिक तकनीक…

मिर्च के पौधे पर विल्ट रोग का प्रकोप। भास्कर न्यूज | बेतिया/ पूसा मौजूदा समय में खेतों में मिर्च की फसल लगी है और किसान मिर्च से उत्पादन भी प्राप्त कर रहे हैं। मिर्च की फसल में लगने वाला विल्ट रोग काफी खतरनाक और विनाशकारी रोग होता हैं। इस रोग से ग्रसित मिर्च के पौधे बंझे हो जाते है जिससे उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो जाता हैं। मिर्च उत्पादक किसान वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर ससमय विल्ट रोग का प्रबंधन करते हुए मिर्च से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। ये जानकारी डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि पूसा के पादप रोग विभाग के हेड डॉ. एसके सिंह ने दी है। उन्होंने बताया कि मिर्च सबसे महत्वपूर्ण सब्जी और मसाला फसलों में से एक है। मिर्च सोलेनेसी परिवार और जीनस कैप्सिकम से संबंधित है। मिर्च को हरे व पके दोनों तरह के फल में उगाया जाता है जो एक अनिवार्य मसाला भी है। यह पाचन उत्तेजक के साथ-साथ इसका प्रयोग सॉस, चटनी, अचार व अन्य प्रकार के भोजन में स्वाद और रंग के लिये किया जाता है। भारत दुनिया में मिर्च का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों देश है। हालांकि मिर्च कई तरह के रोगों और कीटों के लिए अतिसंवेदनशील भी माना जाता है जो इसके उत्पादन में प्रमुख बाधा बन जाती हैं। इन रोगों में से एक रोग फुसैरियम विल्ट है जो पिछले एक दशक में फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम के कारण मिर्च की खेती में एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। भारत में फुसैरियम ऑक्सीस्पोरम और फुसैरियम सोलेनी फुसैरियम की सबसे प्रचलित प्रजातियां हैं जो मिर्च के मुरझाने की बीमारी से जुड़ी हुई हैं। इस रोग के रोगजनक आमतौर पर शुष्क मौसम की स्थिति और रोग के विकास के लिए अनुकूल मिट्टी की नमी के साथ ही मिट्टी से पैदा होते है। इस रोग के लक्षणों में पत्ती एपिनेस्टी, हरित हीनता, परिगलन, विलगन और मिर्च के पेड़ों का मुरझाना शामिल हैं। यह रोग मिर्च के पौधें के विकास की सभी अवस्थाओं में यथा फूल आने और फल लगने दोनों अवस्था में अधिकतम गंभीरता के साथ प्रकट होता हैं। उन्होंने बताया कि विल्ट एक मृदा जनित रोग है जिसे रसायनों के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है। यह रोग दूषित मिट्टी के खेतों से बाहर निकलने, हवाओं, सिंचाई के दौरान पानी का इस खेत से उस खेत में हो जाने आदि के द्वारा बीजाणुओं के प्रसार से फैलता है। समय से प्रबंधन करने से नहीं होगा पौधे को नुकसान कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि दुनिया भर में मिर्च के जर्मप्लाज्म में विल्ट रोगजनक के खिलाफ अभी तक सीमित प्रतिरोधी स्रोत ही उपलब्ध हैं। इसी कारण से इस रोग को शश्य, जैविक और रासायनिक साधनों द्वारा और प्रतिरोध के लिए जर्मप्लाज्म-लाइनों की स्क्रीनिंग द्वारा ही प्रबंधित किया जा सकता है। किसान मिर्च के रोगरोधी किस्में जैसे अर्का लोहित, पूसा ज्वाला, पंत सी-2, जवाहर 218 आदि को लगाकर इस रोग से छुटकारा पा सकते है। उन्होंने बताया कि ट्राइकोडर्मा विरिडे और ट्राइकोडर्मा हर्जियानम को मिर्च में फ्यूजेरियम विल्ट के खिलाफ शक्तिशाली बायोकंट्रोल एजेंट के रूप में पाया गया है। इसके अलावे रोगग्रस्त पौधों पर अर्क नीम और लहसुन का तेल भी फ्यूजेरियम विल्ट रोग के प्रबंधन के लिए एक प्रभावी उपाय हैं। विल्ट रोग का रासायनिक प्रबंधन व एकीकृत रोग प्रबंधन कर सकते हैं कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि रासायनिक प्रबंधन अक्सर पौधे की बीमारी की समस्या से निपटने का सबसे व्यवहार्य साधन होता है। यह अक्सर किसी भी अन्य उपाय की तुलना में अधिक किफायती और प्रभावी होता है। उन्होंने बताया कि किसान मिर्च की बुआई से पहले कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी या कैप्टान 50 डब्लूपी या थीरम 75 डीएस जैसे कवकनाशी दवाओं के 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किग्रा मिर्च के बीज को उपचारित करने के बाद ही इसकी बुआई करें।इसके अलावे कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी (0.1 प्रतिशत) या बेनेट (0.05प्रतिशत) या कैप्टान (0.2 प्रतिशत) जैसी दवाओं के घोल में भी बीज को डुबोकर रोपाई करने से मुरझाने वाले इस बीमारी को प्रबंधित किया जा सकता हैं। एकीकृत रोग प्रबंधन में किसान कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) में सीडलिंग की रूट डिप सहित विभिन्न उपचारों का एकीकरण, वर्मीकम्पोस्ट के अलावा कवकनाशी दवाएं जैसे साफ (कार्बेन्डाजिम और मैनकोज़ेब) या रोको एम की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर पौधों की ड्रेंचिंग कर तथा ट्राइकोडर्मा विरिडे का मिट्टी में प्रयोग कर मिर्च में लगने वाले फ्यूजेरियम विल्ट रोग को काफी हद तक प्रबंधित कर सकते हैं।


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