औरंगाबाद जिले में खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने और वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से चल रहे मृदा परीक्षण अभियान में तेजी आई है। जिला मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की ओर से इस साल कुल 6180 सैंपल के संग्रह का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। जिसमें फील्ड से 6003 सैंपल को इकट्ठा किया गया है। प्रयोगशाला को कुल 5623 नमूने प्राप्त हुए, जिनमें से 4369 का विश्लेषण पूरा हो चुका है। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि अब तक 4025 किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार औरंगाबाद ब्लॉक ने 440 नमूना संग्रह के लक्ष्य को शत-प्रतिशत पूरा करते हुए 440 नमूने जमा किए, जिनमें से 393 नमूनों का विश्लेषण किया जा चुका है। जबकि 234 किसानों को सॉइल हेल्थ कार्ड उपलब्ध करा दिया गया है। बारूण में 495 में से 473 नमूने संग्रहित हुए जबकि 293 नमूनों का परीक्षण पूरा हुआ है। 220 किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिया गया है। कुटुंबा, मदनपुर रफीगंज और नबीनगर प्रखंडों ने अपने लक्ष्य का शत प्रतिशत नमूने संग्रह कर सराहनीय प्रदर्शन किया है। गोह समेत अन्य ब्लॉकों में कार्य को संतोषजनक बताया गया है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि कुछ प्रखंडों में विश्लेषण की रफ्तार बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि सभी किसानों को रबी सीजन से पहले मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट और मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराया जा सके। बिना जानकारी उर्वरकों के इस्तेमाल से घट रही मिट्टी की उर्वरा शक्ति जिला मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के सहायक निदेशक (रसायन) दीपक कुमार ने बताया कि किसान वर्षों से परंपरागत तरीके से खेती करते आ रहे हैं। उर्वरकों का प्रयोग बिना वैज्ञानिक जानकारी के कर रहे हैं। अक्सर किसान पिछले वर्ष की तुलना में अधिक उर्वरक डालते हैं या पड़ोसियों को देखकर उसका उपयोग करते हैं। इससे खेती की लागत बढ़ती है। अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में लगातार कमी आती है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मृदा स्वास्थ्य जांच अभियान शुरू किया है। जिसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी मिट्टी की वास्तविक स्थिति, उसमें मौजूद पोषक तत्व और अगले सीजन में आवश्यक उर्वरक की मात्रा की वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराना है। किसानों से रासायनिक उर्वरक का प्रयोग कम करने और जैविक अथवा हरी खाद के उपयोग को बढ़ावा देने की अपील की। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को लगातार जागरूक भी किया जा रहा है। जानिए कैसे की जाती है मिट्टी की वैज्ञानिक जांच सहायक निदेशक ने बताया कि मिट्टी सजीव गुणों वाली संपत्ति है। सॉइल हेल्थ का मतलब है जैविक, भौतिक और रासायनिक तीनों गुणों का संतुलन बनाए रखना। इसके लिए संतुलित और आवश्यक मात्रा में ही उर्वरक का इस्तेमाल जरूरी है। किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने किसान सलाहकारों के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से लिए जाते हैं। इसके लिए किसान सलाहकारों को प्रशिक्षण दिया गया है। सैंपल लेने की प्रक्रिया में कई तकनीकी चरण शामिल हैं। मिट्टी का नमूना लेने के लिए किसान सलाहकारों को सॉइल सैंपल कलेक्शन ऐप के माध्यम से जीपीएस बेस्ड लोकेशन अपलोड करना पड़ता है। साथ ही किसान का फोटो अपलोड करना होता है। इसके बाद मिट्टी के नमूने को निर्धारित मानकों के अनुरूप पैक कर लैब भेजना होता है। लैब में पहुंचने के बाद मिट्टी की जांच विभिन्न पैरामीटर पर की जाती है। परीक्षण के बाद मृदा स्वास्थ्य कार्ड तैयार किया जाता है, जिसमें यह उल्लेख होता है कि मिट्टी में किस पोषक तत्व की कमी है और कितनी मात्रा में उर्वरक डालना चाहिए। कार्ड मिलने के बाद किसान अपने खेत में संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग कर उपज बढ़ा सकते हैं। pH और ऑर्गेनिक कार्बन सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर मिट्टी में दो पैरामीटर अत्यंत महत्वपूर्ण हैं pH और ऑर्गेनिक कार्बन। औरंगाबाद जिले की मिट्टी में pH 6.5 से 7.5 के दायरे में है जो सामान्य माना जाता है। हालांकि कुछ जगहों पर pH 7.5 के करीब पाया गया है, लेकिन यह अभी चिंताजनक स्तर पर नहीं पहुंचा है। अगर यह 8.5 के आसपास पहुंच जाए तो मिट्टी को सुधारने की आवश्यकता होती है। जिले में कहीं-कहीं जैविक कार्बन की कमी देखी जा रही है, जिसे जैविक खाद और हरी खाद के उपयोग से बढ़ाया जा सकता है। विश्व मृदा दिवस पर जागरूकता अभियान कृषि विभाग की ओर से 5 दिसंबर यानी आज शुक्रवार को विश्व मृदा दिवस के अवसर पर जिला मुख्यालय और सभी प्रखंड कृषि कार्यालयों में विशेष जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया। इसमें किसानों को मिट्टी की सेहत, उर्वरक प्रबंधन और जैविक खेती के महत्व से अवगत कराया जाएगा। जिले में जारी मृदा परीक्षण अभियान से हजारों किसानों को लाभ पहुंचा है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिलने के बाद किसान वैज्ञानिक तरीके से उर्वरक का उपयोग कर लागत घटा सकते हैं और उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। विभाग के अनुसार शेष बचे नमूनों के विश्लेषण को तेजी से पूरा किया जाएगा ताकि इस रबी सीजन में सभी किसान वैज्ञानिक खेती के लाभ उठा सकें।
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