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आज के समय में बड़ा वह है जिसके आने से हर छोटा व्यक्ति भी बड़ा बन जाए: स्वामी प्रभंजनानंद शरण

भास्कर न्यूज|नवादा शहर स्थित गांधी इंटर विद्यालय प्रांगण में जारी आठ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिकता से सराबोर वातावरण में कथा का वाचन किया गया। कथा शुरू होने से पूर्व पूरे परिसर में आध्यात्मिक आभा का अद्भुत दृश्य दिखाई दिया। वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्मचारी विद्वानों द्वारा वेद मंत्रोच्चार के बीच पूजा-अर्चना की शुरुआत हुई। इसके बाद मुख्य यजमान राजेश कुमार श्री एवं उनकी धर्मपत्नी रीना शर्मा ने भागवत कथा की आरती कर कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। मुख्य कथा व्यास श्रदेय डॉ. स्वामी प्रभंजनानंद शरण जी महाराज ने तीसरे दिन की कथा में समाज और जीवन के गूढ़ संदेशों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि समाज में बड़ा वह नहीं जिसके आगे सब छोटे दिखें, बल्कि बड़ा वह है जिसके आने से हर छोटा व्यक्ति भी बड़ा बन जाए। उन्होंने कहा कि मानव जीवन की समस्याओं का समाधान बाहर नहीं, बल्कि मन के भीतर छिपा होता है। जब मन का दर्पण निर्मल हो जाता है, तब जगत भी स्वच्छ दिखने लगता है। मन की शुद्धि के लिए सत्संग सर्वश्रेष्ठ उपाय है और गुरु चरणों की धूल भी मन को निर्मल करती है। उन्होंने कहा कि श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि अर्थात मन स्वच्छ हो तो परमात्मा सहज ही दृष्टिगोचर हो जाता है। अपने प्रवचन के दौरान महाराज श्री ने शिव तत्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि शिवलिंग किसी धातु या पत्थर का प्रतीक नहीं, बल्कि अनादि प्रकाश का स्वरूप है, जहां से समस्त सृष्टि उत्पन्न होकर लय को प्राप्त होती है। भक्ति जब ज्ञान में रूपांतरित होती है, तब साधक अपने भीतर ही कैलास का अनुभव करने लगता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत महापुराण अत्यंत पवित्र ग्रंथ है, जो वैकुंठ लोक का मार्ग प्रशस्त करता है। इसमें भगवान कृष्ण की उपासना, तत्वज्ञान और भक्ति के रहस्यों का अद्भुत वर्णन मिलता है। यह ग्रंथ मानवता का संचार कर प्रभु चरणों में भक्ति का दीप प्रज्वलित करता है। उन्होंने कहा कि किसी महापुरुष के केवल संग से यदि विचार शुद्ध होने लगें, तो समझना चाहिए कि वही सच्चे महात्मा हैं। महाराज श्री ने जीवन का गूढ़ संदेश देते हुए कहा कि असत्य चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, अंततः सत्य की ही विजय होती है। रावण दहन सिर्फ एक पुतले का दहन नहीं, बल्कि हमारे भीतर बसे अहंकार, क्रोध और लोभ के नाश का प्रतीक है। सत्संग हमें सिखाता है कि धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता, उसकी विजय शाश्वत रहती है।


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