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अमेरिका का नया ‘C5’ दांव: चीन, रूस, भारत, जापान संग नई वैश्विक धुरी की तैयारी

वॉशिंगटन की सत्ता गलियारों में इन दिनों एक नए कूटनीतिक मंच की चर्चा तेज है, जिसे अनौपचारिक तौर पर ‘कोर 5’ या ‘C5’ के नाम से जाना जा रहा है। मौजूद जानकारी के अनुसार, यह विचार अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी के अप्रकाशित संस्करण में शामिल है, जिसमें अमेरिका द्वारा पारंपरिक G7 ढांचे से आगे बढ़ते हुए प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ नए प्रकार की सहभागिता का मॉडल प्रस्तावित किया गया है।
बता दें कि अमेरिकी मीडिया संस्थान डिफेंस वन और पॉलिटिको ने इस प्रस्ताव का ज़िक्र किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रस्तावित C5 में चीन, रूस, भारत और जापान जैसे चार बड़े राष्ट्र शामिल होंगे, जो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी, सैन्य क्षमता और आर्थिक प्रभाव वाले देशों में गिने जाते हैं। गौरतलब है कि जिस मसौदे की चर्चा हो रही है, उसने 100 मिलियन से अधिक आबादी वाले उन देशों को प्राथमिकता दी है जो क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति को स्वतंत्र रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस मंच के तहत नियमित शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना है, जिनके एजेंडा को थीमैटिक रखा जाएगा। पहले प्रस्तावित शिखर सम्मेलन का केंद्र बिंदु मध्य पूर्व में सुरक्षा और स्थिरता बताया गया है, जिसमें इज़राइल और सऊदी अरब के बीच संबंध सामान्य करने जैसे मुद्दे भी शामिल किए जा सकते हैं। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मॉडल अमेरिका की उस नई रणनीति की झलक है जिसमें वह यूरोप-केंद्रित गठबंधनों पर निर्भरता कम कर व्यापक और उभरती शक्तियों के साथ सीधी बातचीत पर अधिक जोर देना चाहता है।
विश्लेषकों के अनुसार, C5 का विचार अमेरिकी विदेश नीति में एक व्यावहारिक और लेन-देन आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जहां समान विचारधारा वाली साझेदारियों के बजाय साझा हितों और प्रत्यक्ष बातचीत को प्राथमिकता दी जा रही है। रिपोर्ट्स यह भी संकेत देती हैं कि अमेरिका यूरोप में अपनी भूमिका को कुछ हद तक पुनर्परिभाषित करने की तैयारी में है और भविष्य में उन देशों के साथ अधिक सहयोग कर सकता है जिनके पास अपने क्षेत्र में निर्णायक प्रभाव छोड़ने की क्षमता है।
पॉलिटिको के मुताबिक, राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से जुड़े पेशेवर इस अवधारणा को अमेरिकी रणनीतिक सोच के अनुरूप मानते हैं, क्योंकि यह उन वैश्विक केंद्रों से सीधे वार्ता को बढ़ावा देता है जिनकी स्थिति अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। बता दें कि इस पूरे विचार का उद्देश्य व्यापक वैश्विक मुद्दों जैसे मध्य पूर्व सुरक्षा, तकनीकी प्रतिस्पर्धा, वैश्विक शासन मॉडल और शक्ति संतुलन पर संवाद और सहयोग को मजबूत करना है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की जटिल परिस्थितियों के बीच यह प्रस्ताव अमेरिका की बदलती प्राथमिकताओं और नई कूटनीतिक संरचनाओं की खोज को दर्शाता है, जो आने वाले समय में भू-राजनीतिक समीकरणों को नए रूप में प्रभावित कर सकती हैं।


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