शरद पूर्णिमा आज, पृथ्वी के सबसे नजदीक होगा चंद्रमा:चंद्रमा की किरणों से खीर में अमृत टपकने की मान्यता, रात में खुले आसमान के नीचे रखेंगे खीर
आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जा रहा है। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो रात भर जागकर (कोजागरी) उनकी पूजा करते हैं, उनपर माता लक्ष्मी विशेष कृपा बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, ऐसे में इस रात को खुले आसमान के नीचे दूध-चावल से बनी खीर रखी जाती है, मान्यता है इससे खीर में चंद्रमा की किरणों से अमृत टपकता है और खीर अमृत के समान औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है। स्वामी नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय के सामवेदाचार्य ब्रजमोहन पाण्डेय ने बताया कि सामवेद में कहा है, “हे चंद्रदेव पूर्णिमा के रात्रि में अपनी शीतल ओस बूंदों से हिरण्यनेमयः स्वर्ण की परिधिवाले स्वर्णमयी पात्र में बनाकर रखे हुए पायस यानी खीर को अमृत तत्व प्रदान करें।” इस अमृत को सूर्योदय के पूर्व ग्रहण करने से धन यश की प्राप्ति होती है। आचार्य अवनीश पाण्डेय ने कहा कि ऋग्वेद प्रथम मण्डल के सूक्त 91 में कहा गया है कि “तवं न: सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायतः। न रिष्येत्वावतः सखा।।” यानी हे राजा सोमदेव आप जिसकी रक्षा करते हैं वह कभी नष्ट नहीं होता। आप दुष्टों से हर प्रकार से हमारी रक्षा करें। शरद पूर्णिमा पर कौन से मंत्र का जाप करें ? धार्मिक दृष्टि से शरद पूर्णिमा की रात बेहद पवित्र मानी जाती है। इस दौरान चंद्रमा और शिव जी के मंत्रों का विशेष जाप करके उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। ऐसा करने से शरद कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है, मन शांत और स्थिर होता है। चंद्र मंत्र मानसिक शांति और शीतलता का कारक है। धन, धान्य, संपत्ति की वृद्धि के लिए भी कुबेर मंत्र का जाप करना चाहिए। सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व जगदगुरु नारायणाचार्य स्वामी शांडिल्य महराज ने बताया कि सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का बहुत अधिक धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। उन्होंने बताया कि सनातन संस्कृति में अश्विन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को आनंद व उल्लास का पर्व माना जाता है। इस पर्व का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व भी है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शंकर एवं मां पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है जिसकी भव्य आभा होती है। धरती पर अमृत वर्षा करती है प्रकृति उन्होने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात में 10 से मध्यरात्रि 2 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारे करती हैं। इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं। उन्होंने बताया कि कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है। कहा कि ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है।”
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