लखनऊ के रवींद्रपल्ली में मां के सामने धुनुची डांस:दुल्हन की तरह सजकर पहुंचीं महिलाएं, बदरीनाथ धाम की तरह बना पंडाल

लखनऊ में नवरात्रि के अवसर पर चारों तरफ दुर्गापूजा की धूम मची है। गली-मोहल्लों में पंडाल सजे हुए हैं। भक्त मां दुर्गा की भक्ति में लीन हैं। इसी कड़ी में गोमतीनगर के रवींद्रपल्ली में मां के सामने महिलाओं ने धुनुची डांस किया। इस दौरान सभी महिलाएं दुल्हन की तरह सजकर पहुंचीं थी। यहां का पंडाल बदरीनाथ धाम की तर्ज पर पंडाल बनाया गया है। धुनुची डांस के दौरान पंडाल में मनमोहक दृश्य देखने को मिले। पंडाल की अलौकिक सज्जा और भव्यता भक्तों और कलाप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। ढाक की थाप पर 2 घंटे से अधिक धुनुची डांस किया गया। धुनुची में हिस्सा लेने वाले युवक, युवतियां और महिलाएं ग्रुप और सोलो डांस करते हुए नजर आए जिसके दृश्य बेहद अद्भुत रहे। धुनुची डांस की 4 तस्वीरें… धुनुची से देवी मां प्रसन्न होती हैं धुनुची डांस के बारे में जानकारी देते हुए तनुश्री भट्टाचार्य ने बताया कि एक बेहद अनूठा नृत्य है। पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ जिसे दुर्गा पूजा के दौरान खासतौर से किया जाता है। यह एक पारंपरिक नृत्य है जिसमें नर्तक एक धुनुची नामक बर्तन को अपने सिर पर संतुलित करते हुए नृत्य करते हैं। धुनुची मिट्टी का बना एक बर्तन होता है, जिसमें धूप, नारियल की जटाएं और अन्य हवन सामग्रियां जलाई जाती हैं, जिससे लुभावनी खुशबू आती है। दुर्गा पूजा में महिलाएं दुल्हन की तरह सजकर आती हैं जिससे दुर्गा मां बहुत प्रसन्न होती है। नवरात्रि शक्ति का प्रतीक है धुनुची डांस के बाद अपूर्वा ने कहा कि नवरात्रि में मां अपने मायके आती हैं। उनको खुश करने के लिए हम लोग धुनुची करते हैं। सालभर इसका इंतजार रहता है। ये अवसर होता है जब मां को बुलाते हैं, उनके साथ नाचते-गाते हैं। मैं बचपन से धुनुची कर रही हूं और अभ्यास करते-करते बहुत अच्छे से करने लगी हूं। नवरात्रि के खास मौके को हम शक्ति का प्रतीक मानते हैं। शिव-शक्ति स्वरूप को बखूबी हम नवरात्रि में देखते हैं। इस पर्व की विशेषता है की शक्ति के साथ शिव का भी आभास कर पाते हैं। हम महिला और पुरुष किसी प्रतिस्पर्धा में नहीं है। हमारा अपना-अपना अस्तित्व है। एक-साथ जुड़कर जगत की संरचना को चलाएं। 42 वर्षों से सज रहा है दुर्गा पूजा पंडाल समिति के सदस्य देवांशु चौधरी ने बताया कि दुर्गाउत्सव की तैयारी कई महीने पहले शुरू कर दी जाती है। 1984 से लगातार आयोजन कर रहे है हैं। इस वर्ष 42वां आयोजन है। इस वर्ष बद्रीनाथ मंदिर के तर्ज पर पंडाल को सजाया गया है। शाम ढलते ही यहां का नजारा पूरी तरह बदल जाता है। झिलमिलाती रोशनी, बारीक कारीगरी और पारंपरिक कलाकृतियों का अद्भुत संगम मां दुर्गा की प्रतिमा के आसपास देखने को मिलती है। पंडाल की ऊंचाई 45 फीट और चौड़ाई 75 फिट है जो देखने में बेहद आकर्षित है 5 दिनों तक लगातार सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रसाद वितरण होता है जिसमें हजारों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं।

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