मायावती 23 साल बाद फिर मंडलों में जाएंगी:चंद्रशेखर की तर्ज पर आकाश करेंगे यात्रा-सभाएं; पुराने चेहरों की होगी वापसी

लखनऊ में 9 अक्टूबर को कार्यकर्ताओं की भीड़ देखकर बसपा पूरे जोश में है। 69 साल की बसपा सुप्रीमो मायावती को नई उम्मीद दिख गई है। वह 23 साल बाद जमीन पर उतरकर मोर्चा संभालने की तैयारी में हैं। वह खुद 23 साल बाद मंडलों में जाकर कैडर के साथ कैंप करेंगी। इसके पहले 2002 तक मायावती मंडलों में जाती थीं। भतीजे आकाश आनंद भी सांसद चंद्रशेखर की तर्ज पर पूरे यूपी में घूमेंगे और सभाएं करेंगे। वहीं, प्रदेश से लेकर जिले लेवल पर पार्टी छोड़ चुके चेहरों को फिर से शामिल कराने की तैयारी है। मुस्लिम, अति पिछड़े, दलित और ब्राह्मण चेहरों पर ज्यादा फोकस किया जाएगा। इसको लेकर 16 अक्टूबर को मायावती ने प्रदेश कार्यालय में पदाधिकारियों की अहम बैठक बुलाई है। इसमें मायावती और भतीजे आकाश आनंद के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय होगी। बिहार चुनाव के बाद बुआ-भतीजे की जोड़ी यूपी फतह करने के लिए मैदान में उतरेगी। मायावती मंडलों में कैडर कैंप करेंगी। मायावती क्या नया मैसेज देना चाहती हैं… मायावती को लेकर उनके आलोचक कहते हैं कि वह सड़क पर उतर कर संघर्ष करने वाले नेताओं में नहीं हैं। इसके उलट दलित राजनीति के नए पोस्टर बॉय बनकर उभरे चंद्रशेखर लोगों के बीच अधिक सक्रिय रहते हैं। यही कारण है कि दलितों का एक बड़ा तबका चंद्रशेखर की ओर शिफ्ट होने लगा है। मायावती के न्यूट्रल होने पर बसपा कार्यकर्ता भी घर बैठा
मायावती के निष्क्रिय होने पर बसपा कार्यकर्ता भी मायूस होकर घरों में बैठ गया। नतीजा यह हुआ कि बसपा का कोर वोटबैंक बिखरने लगा। इसका फायदा भाजपा, सपा, कांग्रेस और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) को हुआ। 2024 में बसपा ने यूपी जैसे अपने जनाधार वाले प्रदेश में सबसे खराब प्रदर्शन किया। उसका वोट बैंक 2007 की तुलना में 21 फीसदी नीचे आ गया। बसपा के 79 लोकसभा प्रत्याशियों में से 69 की जमानत जब्त हो गई थी। उसका वोट 9.39% रह गया था। सिर्फ 10 प्रत्याशी ही 16 फीसदी से अधिक वोट पाकर जमानत बचाने में सफल हुए थे। लोकसभा चुनाव के बीच ही मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को अचानक एक भाषण पर कार्रवाई की थी। इससे सपा समेत महागठबंधन लोगों, खासकर दलितों के बीच ये संदेश फैलाने में सफल रही कि बसपा का भाजपा से कोई अंदरखाने डील हो गई है। 2024 में महागठबंधन की प्रमुख दल सपा ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा देकर दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। काफी हद तक इसमें वो सफल भी रही। दलितों के एक बड़े तबके ने सपा के पक्ष में मतदान किया। मायावती ने 9 अक्टूबर को रैली कर जवाब दिया
मायावती पर आरोप लगा कि अगर वह सक्रिय रहतीं, तो उनका कोर वोटबैंक नहीं बिखरता। बसपा की हमेशा से ताकत बड़ी रैली और जनसभाएं रही हैं। इसके बाद 9 अक्टूबर को मायावती ने बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर अपने समर्थकों को राजधानी लखनऊ बुलाकर सियासी आलोचकों को जवाब दिया। मायावती के इस कार्यक्रम में उमड़ी लाखों की भीड़ (बसपा का दावा 5 लाख लोग आए) से बसपा कार्यकर्ताओं का जोश 7वें आसमान पर है। खुद उत्साहित कार्यकर्ताओं के नारों के बीच मायावती ने ऐलान किया कि मैं वादा करती हूं कि अब आपके बीच ज्यादा आऊंगी। भतीजे आकाश को लेकर भी कहा कि जिस तरह से आप आकाश को पसंद कर रहे हैं, अब वो ज्यादा से ज्यादा आपके बीच रहेंगे। बसपा को मजबूत करने के लिए ये काम होंगे बूथ और भाईचारा कमेटियां बनेंगी
कांशीराम पुण्यतिथि पर हुए कार्यक्रम के चलते एक महीने से बूथ कमेटियां बनाने से जुड़ी गतिविधियों को रोक दिया गया था। सभी को कार्यक्रम की तैयारियों में लगा दिया गया था। अब कार्यक्रम के सफल होने के बाद एक बार फिर मायावती संगठन के कील-कांटे दुरुस्त करने में जुट गई हैं। इसी के चलते उन्होंने 16 अक्टूबर को लखनऊ स्थित प्रदेश मुख्यालय पर पार्टी पदाधिकारियों की अहम बैठक बुलाई है। बसपा के एक सोर्स ने बताया कि इस बैठक की रणनीतियां बेहद गोपनीय रखी गई हैं। मायावती इस बैठक में जहां बूथ कमेटियों को शत-प्रतिशत पूरा करने का निर्देश देंगी। वहीं, खुद और आकाश के कार्यक्रम की रूपरेखा तय करेंगी। बैठक में जिला और मंडल स्तर तक के पदाधिकारियों को बुलाया गया है। सभी पदाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि उनके यहां बूथ कमेटियां कितनी बन चुकी हैं। बूथ कमेटियों के साथ ही भाईचारा कमेटियों के गठन का भी निर्देश दिया गया है। 2007 में इसी तरह बूथ स्तर पर भाईचारा कमेटियों का गठन किया गया था। सोशल इंजीनियरिंग को बढ़ावा
भाईचारा कमेटियों में दलित, मुस्लिम, ओबीसी, और न्यायप्रिय सवर्ण समाज के लोगों को शामिल किया जा रहा है। मायावती ने जिस तरीके से कार्यक्रम में अपने मंच पर दलित, ओबीसी, मुस्लिम, ब्राह्मण और ठाकुर चेहरों की नुमाइंदगी करने वाले नेताओं को जगह देकर सोशल इंजीनियरिंग की झलक दिखाई है। कुछ इसी तरह की झलक भाईचारा कमेटियों भी देखने को मिलेगी। मायावती संगठन, तो आकाश बनाएंगे पार्टी के पक्ष में माहौल
16 अक्टूबर को बसपा की इस अहम बैठक में मायावती और उनके भतीजे आकाश आनंद की यूपी में भूमिका भी तय होगी। मायावती जहां खुद संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी संभालेंगी, वहीं आकाश को पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का जिम्मा सौंपा जाएगा। मायावती हर मंडल में कैंप लगाएंगी। वहां पार्टी के वर्करों के साथ बैठक करेंगी। इन बैठकों में बामसेफ और बहुजन वालिंटियर फोर्स के सदस्य भी शामिल रहेंगे। वहीं, आकाश आनंद की प्रदेश भर में मंडल और जिला स्तर पर यात्राएं और सभाएं होंगी। आकाश आनंद की युवा दलितों में लोकप्रियता को भी भुनाने की कोशिश होगी। पार्टी को उम्मीद है, इससे चंद्रशेखर की तरफ आकर्षित दलित युवाओं को फिर से बसपा के पक्ष में मोड़ा जा सकेगा। आकाश आनंद युवा हैं। यूपी में सक्रिय करने के बाद उनके सहयोग के लिए कुछ और युवा नेताओं की एक टीम भी बन सकती है। इसमें सतीश चंद्र मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा भी नजर आ सकते हैं। इसके अलावा पार्टी के कुछ और युवा चेहरों को भी टीम में जगह मिल सकती है। अप्रैल- 2026 से पार्टी में बड़े चेहरों को शामिल कराने का चलेगा अभियान
मायावती की कोशिश पार्टी को एक बार फिर से 2007 की स्थिति में लौटाने की है। उस दौर में बसपा के पास ओबीसी में अति पिछड़ों में पहचान रखने वाले कई चेहरे थे। लेकिन, जैसे-जैसे बसपा कमजोर होती गई, ये चेहरे भी पार्टी का साथ छोड़ते गए। मायावती ने मौजूदा समय में जहां कई नए चेहरों को आगे बढ़ाने की कोशिश की है। वहीं पार्टी से दूर हो चुके कुछ पुराने नेताओं की घर वापसी की भी रणनीति बनाई गई है। मायावती ने भतीजे आकाश और अपने समधी अशोक सिद्धार्थ की पार्टी में वापसी के साथ ही ये कहा था कि माफी मांगकर पार्टी में लौटने वाले पुराने नेताओं को पूरा सम्मान मिलेगा। पार्टी के एक सोर्स ने बताया कि अप्रैल 2026 में अति पिछड़ों में अलग-अलग जातियों की राजनीति करने वाले दो चेहरे बसपा जॉइन करेंगे। कुछ दलों का बसपा में विलय भी होगा। वहीं, कुछ छोटी पार्टियों के साथ बसपा का गठबंधन होगा, लेकिन चुनाव में सिंबल बसपा का ही रहेगा। पंचायत चुनाव को लेकर क्या होगी बसपा की रणनीति
पंचायत का चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़ा जाता। बसपा की पहले से ये घोषित रणनीति रही है। वह धनबल और बाहुबल वाले इस चुनाव से खुद को दूर रखती रही है। इस बार भी ऐसा ही होगा। हालांकि, रणनीति में थोड़ा-सा बदलाव करने की बात कही जा रही है। बसपा समर्थित लोगों को चुनाव लड़ने के संकेत दिए गए हैं। साथ ही उनका समर्थन भी पार्टी संकेतों के जरिए कार्यकर्ताओं को देगी। पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाले कई नेताओं को बाद में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी मौका मिल सकता है। संभावित प्रत्याशियों को विधानसभा प्रभारी बनाया जाएगा
बसपा अप्रैल, 2026 में प्रदेश की सभी 403 विधानसभाओं में संभावित प्रत्याशियों की घोषणा करेगी। हालांकि, उनके नाम विधायक प्रत्याशी की बजाय विधानसभा प्रभारी के तौर पर होगा। इसकी हर 3 महीने में समीक्षा होगी। विधानसभा प्रभारी की लोकप्रियता, सक्रियता और कार्यकर्ताओं के फीडबैक के आधार पर परीक्षण भी होगा। अगर किसी प्रभारी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं मिला, तो उसे बदल दिया जाएगा। बसपा की रणनीति है कि चुनाव लड़ने वाले चेहरों को क्षेत्र में तैयारी करने का पर्याप्त मौका मिले। जनहित के मुद्दों पर वह लोगों के बीच सक्रिय रहे, जिससे चुनाव में उसके जीत की गारंटी अधिक रहे। ——————– ये खबर भी पढ़ें- यूपी में 22% दलित वोटर कितने निर्णायक, बसपा-सपा में होड़, भाजपा का वाल्मीकि दांव…कांग्रेस खुद को बता रही पुराना घर यूपी के सियासी दलों में 22 फीसदी दलित वोट को लेकर जोर-आजमाइश हो रही है। सपा-बसपा में जहां दलितों को अपने पाले में लामबंद करने की होड़ मची है। वहीं, भाजपा ने भी वाल्मीकि जयंती पर पहली बार सार्वजनिक अवकाश घोषित कर बड़ा दांव चला। कांग्रेस का पहले से दावा रहा है कि दलितों का परंपरागत घर वही है। प्रदेश में आरक्षित 86 सीटों में दलितों के लिए 84 रिजर्व हैं। लेकिन, यूपी की 150 सीटों पर दलित निर्णायक प्रभाव रखते हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि 2027 विधानसभा में जिसके पाले में दलित जाएंगे, सत्ता की कुंजी उसके पास ही होगी। ऐसे में भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा दलित वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए क्या-क्या दांव चल रहे हैं? पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

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