बस्ती-सुल्तानपुर में दशहरे पर नहीं होता विसर्जन:दुर्गा प्रतिमाएं पूर्णमासी को विसर्जित होती हैं, 65 साल पुरानी है परंपरा
बस्ती और सुल्तानपुर जिलों में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन दशहरे के दिन नहीं, बल्कि शारदीय पूर्णिमा को किया जाता है। यह परंपरा देश के अधिकांश हिस्सों से अलग है। इस विशिष्ट प्रथा की शुरुआत लगभग 65 साल पहले पुरानी बस्ती के व्यवसायी स्वर्गीय कन्हैया लाल सेठ ने की थी। वर्ष 1960 में कन्हैया लाल सेठ ने पुरानी बस्ती में जिले की पहली दुर्गा प्रतिमा स्थापित की थी। यह प्रतिमा इतनी प्रसिद्ध हुई कि दर्शन के लिए आसपास के जिलों से भी लोग आने लगे। दशहरे के दिन अन्य आयोजनों के कारण कई श्रद्धालु मां दुर्गा के दर्शन नहीं कर पाते थे। इस समस्या को देखते हुए कन्हैया लाल सेठ ने पुरोहितों से परामर्श किया। सेठ के पोते अतुल सोनी के अनुसार, पुरोहितों ने सुझाव दिया कि दशहरे के बाद शारदीय पूर्णिमा को प्रतिमा का विसर्जन करना अधिक फलदायी होगा। ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा को चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है, जिससे विसर्जन में शामिल श्रद्धालुओं को विशेष लाभ मिलता है। इस परामर्श के बाद बस्ती में दशहरे के बजाय पूर्णिमा को प्रतिमाओं का विसर्जन होने लगा। सेठ परिवार के रिश्तेदारों ने सुल्तानपुर में भी इसी परंपरा की शुरुआत की। तब से बस्ती और सुल्तानपुर देश के ऐसे दो जिले बन गए हैं, जहाँ दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन दशहरे के बजाय पूर्णिमा को होता है। यह परंपरा आज भी निर्बाध रूप से जारी है और इन दोनों जिलों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है।
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