देवीपाटन शक्तिपीठ में माता सती का वाम स्कंध गिरा था:नेपाल सीमा से सटे इस मंदिर में अखंड ज्योति और धूना जलता है

बलरामपुर जिले की तुलसीपुर तहसील में स्थित देवीपाटन शक्तिपीठ आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। सिरिया नदी के किनारे स्थित इस मंदिर में माता सती का वाम स्कंध पट सहित गिरा था। इसी कारण इसे पाटेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है। मंदिर में युगों से अखंड दीप जल रहा है। बाबा भैरवनाथ के मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ द्वारा स्थापित धूनी निरंतर प्रज्वलित है। गुरु गोरक्षनाथ ने यहीं तपस्या कर इस स्थान को सिद्धपीठ का दर्जा दिलाया। मंदिर के उत्तर में आकाश भैरव, बटुक भैरव और काल भैरव की प्रतिमाएं स्थापित हैं। श्रद्धालुओं की यात्रा माँ पाटेश्वरी और बाबा भैरव के दर्शन के बाद ही पूर्ण मानी जाती है। महाराजा कर्ण द्वारा निर्मित सूर्यकुण्ड में रविवार को स्नान और पूजा से चर्म रोगों से मुक्ति मिलने की मान्यता है। मंदिर परिसर में नवदुर्गा की प्रतिमाएं विराजमान हैं। शारदीय और चैत्र नवरात्रि में लाखों श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करते हैं। भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित यह मंदिर दोनों देशों के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। वर्तमान में शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जा रही है, जिन्हें शांति की देवी माना जाता है। गर्भगृह में स्थापित अखंड ज्योति और समाधि स्थल पर विराजमान पिंडी माँ की चमत्कारी शक्ति की प्रतीक मानी जाती है। मंदिर के पूर्व दिशा में सफेद रंग का शिवलिंग ‘नर्मदेश्वर’ तथा काला रंग का ‘चन्द्रेश्वर’ भी दर्शकों को पौराणिक काल की गहराइयों में ले जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यहीं पर एक साधु ने घोर तपस्या कर समाधि ली थी, और उन्हीं की तपस्थली पर माँ की पिंडी स्वरूप में स्थापना हुई। मंदिर के उत्तरी हिस्से में स्थित गद्दी पीठ पर आज भी दशहरे के दिन महंथगण परंपरा अनुसार विराजमान होते हैं।देवीपाटन शक्तिपीठ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, आस्था और परंपरा का जीवंत संगम है, जहाँ हर भक्त को माँ की कृपा की अनुभूति अवश्य होती है।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर