दादा मियां को हर साल चढ़ती है सरकारी चादर:लखनऊ में 118 साल से मनाया जा रहा उर्स, 4 दशक से धूनी रमा रहे अशोक

लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित दरगाह दादा मियां को कौमी एकता का केंद्र माना जाता है। इसके सबसे बड़े उदाहरण अशोक हैं जो 40 साल से यहां धूनी रमा रहे हैं। दरगाह पर जिलाधिकारी लखनऊ की ओर से हर साल उर्स पर सरकारी चादर चढ़ाने के लिए आती है। बीते दिनों दरगाह का 118वां वार्षिक उर्स मनाया गया। इस्लाम के तीसरे महीने (रबीउलअव्वल) में यह उर्स होता है। इसमें दरगाह पर हजारों की संख्या में लोग यूपी समेत विभिन्न राज्यों से आते हैं। दरगाह पर उर्स के दौरान प्रतिदिन 20 हजार लोगों का लंगर लगता है। राजनीतिक पार्टियों के लोगों का भी यहां जमावड़ा लगता है। दरगाह के बारे में विस्तार से पढ़िए… दरगाह के सज्जादानशीन शबाहत हसन शाह ने बताया कि यह 118वां सालाना उर्स का अवसर है। हजरत ख्वाजा मोहम्मद नबी राजा शाह का यह उर्स मनाया गया। वह देश आजाद होने के पहले से फौज में सेवाएं देते थे। मगर जब उन्हें गुरु मिल गए तो सामान्य जीवन को छोड़कर अध्यात्म की दुनिया की तरफ बढ़े और इस्लाम और मानवता की सेवा में लग गए। 3 तस्वीरें देखिए… ब्रह्मलीन हुए 118 साल हो गए शबाहत हसन शाह ने कहा कि दादा मियां के ब्रह्मलीन हुए 118 वर्ष पूरे हो गए। उर्स उसी तिथि में मनाया जाता है जब सूफी- बुजुर्ग यह दुनिया छोड़कर जाते हैं। इन्होंने बताया कि दादा मियां मुख्य रूप से रामपुर के रहने वाले थे। मगर मृत्यु के 5 वर्ष पूर्व लखनऊ आ गए और यहां पर कौमी एकता का संदेश दिया। लोगों की भलाई के लिए काम करने लगे। फिर जब 5 वर्षों के बाद उनका देहांत हुआ तो यहीं पर उनकी मजार बना दी गई। ‘सूफी – संतों का धर्म मानवता’ शबाहत हसन ने कहा कि दादा मियां से विभिन्न धर्म और जाति के लोग जुड़े हुए हैं। विदेश में भी आपके चाहने वालों की काफी संख्या है। उर्स में आने वाले लोग दरगाह पर चादर, फूल चढ़ाकर और भोजन वितरण करते हैं। सूफी – संत किसी धर्म से बंधे नहीं होते हैं बल्कि यह मानवता की सेवा के लिए होते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में म्यूजिक बहुत अहम है। इसलिए सूफी संतों ने कव्वाली और मौसिकी को शामिल किया ताकि अपनी बात इसके माध्यम से पहुंचा सके। अशोक 40 साल से दरगाह की कर रहे हैं सेवा दरगाह की सेवा करने वाले अशोक ने बताया कि विगत दिनों 40 साल से लगातार दरगाह पर आते हैं। उर्स के अवसर पर पहली चादर चढ़ती है। इसके अलावा प्रतिदिन दरगाह पर आने वाले लोगों को लोबान की धूनी देते हैं। उर्स में 24 घंटे सेवाएं देते हैं। दरगाह पर हर धर्म के लोग आते हैं। यहाँ आने वाले सभी लोगों को फायदा मिलता हैं। किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता यहां सबको आना चाहिए। प्रतिदिन 20 हजार लोग करते हैं लंगर दरगाह पर सेवाएं देने वाले आरिफ ने बताया कि 16 सालों से लगातार दरगाह पर आना जाना है। यहीं के शिष्य है शबाहत हसन शाह गुरु हैं। उन्होंने बताया कि दरगाह ने हमेशा लोगों जोड़ने का संदेश दिया है। यहां जो व्यक्ति एक बार आ जाता है फिर यहीं का हो जाता है। उर्स के दौरान दरगाह पर लगभग 20 हजार लोग प्रतिदिन भोजन करते हैं। सभी धर्मों का ध्यान रखते हुए भोजन में विशेष रूप से शाकाहारी पकवान ही बनता है।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर